पैसों की कमी से जूझ रही भारत में उच्च शिक्षा

Monday, Jan 29, 2024 - 07:07 AM (IST)

हाल ही में पंजाब के जालंधर जिले के एक वुमेन कॉलेज को न्याय प्रणाली द्वारा शिक्षाविदों को वेतन इत्यादि से जुड़े, कई वर्षों के बकाया, कई करोड़ रुपए देने के आदेश दिए गए हैं। देश के अनेक कालेज उच्च शिक्षा के लिए पैसों की कमी के कारण समय पर वेतन तक देने में असमर्थ हैं हालांकि उत्तर भारत में छात्रों का विदेश जाने का रुख भी काफी हद तक जिम्मेवार है जिससे ऐसे संस्थानों के पास पैसे की तंगी हो गई है। इसके साथ ही काफी जगह पर उच्च शिक्षा संस्थानों में अकादमिक गुणवत्ता का गिराव भी छात्रों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है अनेक विश्वविद्यालयों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। 

इस समय देश में उच्च शिक्षा का एक व्यापक तंत्र मौजूद है। करीब 4.2 करोड़ से अधिक नामांकन के साथ हमारे देश में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की संख्या, दुनिया के तीन-चौथाई देशों की आबादी से भी अधिक है। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली न केवल बड़ी है बल्कि विश्व में इसमें सबसे अधिक विविधता भी है। इसे और पुख्ता और मजबूत बनाने की जरूरत है। देश में उच्च शिक्षा की हालत को बेहतर बनाने के लिए कुछ सुझाव है उच्च शिक्षा से जुड़ी कोई भी नीति बनाते समय बड़ी और विविध उच्च शिक्षा प्रणाली की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए। इसमें गुणवत्ता एक प्रमुख चुनौती है जो पिछले 40 वर्षों में निजी व्यावसायिक शिक्षा में बड़ी वृद्धि का प्रत्यक्ष परिणाम है। कई दशकों से हमने इस तंत्र में गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए नियमन के प्रयास किए हैं जो सफल नहीं रहे हैं। इसके कारण तलाशे जाने चाहिएं।
ऐसे में अच्छा होगा कि हम उच्च शिक्षा संस्थानों को खुद तय करने दें कि वे कौन का विषय पढ़ाएंगे, कितने छात्रों को दाखिला देंगे, क्या शुल्क लेंगे और कैसा पाठ्यक्रम अपनाएंगे? 

राज्य को अपनी भूमिका, संस्थानों की गुणवत्ता के आकलन तक सीमित रखनी चाहिए और सरकारी तथा निजी दोनों क्षेत्रों में शोध की फंडिंग में वृद्धि करनी चाहिए। इसके साथ ही मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान में निवेश बढ़ाना चाहिए। इतनी बड़ी और विविध उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए यह जरूरी है कि राज्य की भूमिका कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित हो। करीब 6,000 इंजीनियरिंग कॉलेज और 3,000 प्रबंधन संस्थान मुख्य रूप से राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों के अंतर्गत संचालित होते हैं। उनकी गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए मूल्यांकन और प्रमाणन कार्यक्रम, अनिवार्य तौर पर लागू करने की आवश्यकता है जो सार्वजनिक हो। क्यों न कॉलेजों को अपनी पसंद के क्षेत्रों, विषयों और छात्रों के साथ विस्तार का मौका दिया जाए ताकि वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करें। 

भारतीय छात्र अब विश्व स्तर पर 200 से अधिक देशों में पढ़ते हैं। उज्बेकिस्तान, फिलीपींस, रूस, आयरलैंड और किर्गिस्तान जैसे देशों में रुचि बढ़ रही है। मीडिया सूचनाओं के अनुसार कुल मिलाकर, 11.30 लाख से अधिक भारतीय छात्र वर्तमान में विदेशी कॉलेजों में पढ़ रहे हैं। दूसरी ओर 2021 में भारत में केवल 48,000 विदेशी राष्ट्रीय छात्रों का नामांकन हुआ, जिनमें पड़ोसी देशों से आने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक थी। देश के राज्यों को चाहिए कि विश्वविद्यालयों को प्रवेश, भर्ती और दी जाने वाली डिग्री से जुड़ी सभी पाबंदियों से मुक्त करके , उन्हें प्रतिस्पर्धा करने का मौका देना चाहिए। इससे उनकी पैसों की कमी का थोड़ा बहुत हल निकल सकेगा जैसा कि नई शिक्षा नीति 2020 में प्रस्तावित है पैसों की कमी से दो-चार हो रहे कुछ छोटे कॉलेज एक सिस्टम बना कर एकीकृत किए जा सकते हैं। 

देश के अनेक राज्यों द्वारा सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज के स्टाफ को पूर्ण सरकारी संस्थानों में एडजस्ट करना बेहतर साबित हो रहा है। राजस्थान हरियाणा इत्यादि अनेक राज्यों में इसके बेहतर परिणाम सुनने मे आ रहे हैं। इससे ऐसे फंड्ज की कमी का सामना कर रहे अनेक एडेड कॉलेज सैल्फ फाइनांस पद्धति पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं और अपनी वित्तीय हालत सुधार सकते हैं। एक कटु सत्य यह भी है कि राज्य सरकारों द्वारा उच्च शिक्षा से जुड़े प्रशासनिक भ्रष्ट आचरण पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। अंत में कहेंगे कि सभी स्तर पर संजीदा प्रयास किए जाएं कि देश में उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षक और छात्रों के स्वॢणम भविष्य के लिए सभी राज्यों में उच्च शिक्षा पैसे की कमी से न जूझे।-डा. वरिन्द्र भाटिया
     

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