सीरिया में हस्तक्षेप के पीछे रूस का छिपा उद्देश्य

punjabkesari.in Monday, Oct 12, 2015 - 02:08 AM (IST)

सीरिया संकट के संबंध में लम्बे समय से मूक-दर्शक बने हुए पुतिन ने अमरीका और पश्चिमी देशों की आलोचना की परवाह न करते हुए सीरिया में दृढ़ हस्तक्षेप शुरू कर दिया है।

10 दिन पूर्व क्रैमलिन ने बशर-अल-असद की सत्ता को बचाने व आई.एस.आई.एस. (आईसिस)  को आगे बढऩे से रोकने हेतु बमवर्षा शुरू की। हालांकि ईरान के ऊपर से सीरिया पर रूस प्रभावी ढंग से मिसाइलें दाग रहा है, फिर भी आईसिस एलेप्पो प्रांत के उत्तर-पूर्व में पकड़ मजबूत कर रहा है। 
 
इससे उत्तर की ओर तुर्की की सीमा के साथ एक महत्वपूर्ण मार्ग पर आईसिस का कब्जा होने का खतरा भी पैदा हो चुका है। जहां रूसी सेनाओं ने अपने हमलों का अधिकांश जोर राष्ट्रपति असद के विरुद्ध एकजुट हुए विद्रोही गुटों पर केंद्रित किया है, वहीं सीरिया अब 5 हिस्सों में बंट चुका है। 
 
पहला-सरकारी नियंत्रण वाला दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र जिसकी सीमाएं लेबनान व जोर्डन को छू रही हैं, दूसरा-विद्रोहियों के नियंत्रण वाला तुर्की की सीमा से लगता उत्तर-पश्चिमी व ईराक के निकट दक्षिण का कुछ क्षेत्र, तीसरा-कुर्द कब्जे वाला उत्तरी क्षेत्र जो तुर्की की सीमा के पार तक फैला है, चौथा-पूर्व में ईराक की सीमा के पार तक फैला आईसिस नियंत्रित क्षेत्र व पांचवां क्षेत्र वह है जिस पर विद्रोहियों या असंतुष्ट गुटों का मिश्रित नियंत्रण है।
 
नाटो सेनाओं से मिल कर एक ‘वार फ्री जोन’ बनाने के तुर्की के प्रयासों को भी झटका लगा है क्योंकि आईसिस नियंत्रित क्षेत्र में कार्यरत एक सीरियाई पत्रकार व जनरल हुसैन हानेदानी भी रूसी बमवर्षा में मारे गए हैं। 
 
ईरानी कमांडर जनरल हुसैन एलेप्पो प्रांत में आईसिस के खिलाफ लडऩे के लिए रैवोल्यूशनरी गाडर््स को प्रशिक्षित कर रहे थे। इससे तुर्की के लिए पहली बार अपनी जमीनी सेनाओं को भेजना भी कठिन हो चुका है।  हालांकि, रूसी लड़ाकू विमानों के अपने वायु क्षेत्र के अतिक्रमण पर तुर्की आपत्ति जता चुका है परंतु रूस रुकने का नाम नहीं ले रहा। 
 
सीरिया में रूसी सेनाओं का प्रवेश नाटो शक्तियों को परेशान करने वाली भड़काऊ कार्रवाइयों की सूची में नवीनतम है। इसका उद्देश्य अमरीका को मजबूर करना भी है कि वह रूस को अपने एक समान सहयोगी के रूप में स्वीकार करे ताकि यूक्रेन युद्ध के समय से विश्व राजनीति में अलग-थलग किए गए रूस को इस स्थिति से निकलने में मदद मिल सके। 
 
नाटो के साथ मिल कर इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध लडऩा रूस के लिए एक मौका है कि वह पश्चिम के साथ अपने मनमुटाव दूर कर सके लेकिन इसने अनेक रूसियों को भ्रमित कर दिया है जिन्हें पिछले एक वर्ष से यह बताया जा रहा था कि अमरीका एक शत्रु है परंतु अब नीति में पूर्णत: बदलाव लाकर व अमरीका की ओर से लड़ रहा है।
 
इससे पुतिन द्वारा सीरिया में युद्ध लडऩे से आॢथक समस्याओं, बेरोजगारी और खाद्यान्न के अभाव की समस्याओं की ओर से रूसियों का ध्यान बंट रहा है। यूक्रेन के युद्ध में तो रूसी सैनिक खुले तौर पर श्रेय नहीं ले सके परंतु यहां उन्हें पीड़ित सीरियनों की रक्षा करने के लिए जाने वाले हीरो की तरह दिखाया जा रहा है। 
 
दो सप्ताह पूर्व सिर्फ 18 प्रतिशत रूसी नागरिक सीरिया में रूसी हस्तक्षेप का समर्थन कर रहे थे और अब 46 प्रतिशत रूसी अपने सैनिकों के प्रति प्रशंसा के भाव व्यक्त कर रहे हैं जबकि यूक्रेन में रूसी सैन्य गतिविधियां विश्व समुदाय का ध्यान आकॢषत नहीं कर रहीं। 
 
सीरिया में रूसी सैनिक कार्रवाइयों ने अमरीका को अपनी सीरिया में खुले तौर पर हस्तक्षेप न करने की हिचकिचाहट भरी नीति बदलने के लिए भी विवश कर दिया है। अभी तक अमरीका के राष्टपति ‘ट्रेन एंड इक्विप’ कार्यक्रम की दिशा में ही काम कर रहे थे।
 
इसके अंतर्गत वे तीन सप्ताह के लिए प्रत्येक सैनिक को प्रशिक्षण के बाद सीरिया में लडऩे के लिए हथियारों से लैस करते थे लेकिन इस प्रकार बहुत कम सेना को ही तैयार किया जा सका था और इसके साथ-साथ वह मानवीय सहायता के तौर पर राहत भेजने के विषय में भी विचार कर रहा था। 
 
परंतु अब अमरीका भी शांति की स्थापना तक राष्टपति असद को राष्टपति के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है जबकि इसके साथ ही वहां सक्रिय हस्तक्षेप पर भी विचार किया जा रहा है। इस समय रूस और अमरीकी  दोनों के ही विमान सीरिया के ऊपर उड़ानें भर रहे हैं लेकिन यदि जल्दी कोई सांझी कार्य योजना तैयार नहीं की जाती तो इनके आपस में टकराने की घटनाओं को टाला नहीं जा सकता। 
 
सीरिया में लाखों लोग मारे जा चुके हैं और बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं किन्तु पश्चिमी देशों की स्वार्थी नीतियों से यह समस्या और उलझती जा रही है। 

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