नेतृत्वहीन भटक रहे ‘पंजाब से बाहर के सिख’

Thursday, Feb 06, 2020 - 05:03 AM (IST)

पंजाब और दिल्ली से बाहर रहने वाले सिख बीते एक लम्बे समय से जिस राजनीतिक स्थिति में से गुजर रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे उनके पास कोई ऐसा नेतृत्व नहीं जो स्थानीय राजनीतिक हालात के अनुसार उनकी समस्याओं को समझ और उनके समाधान के लिए उन्हें योग्य मार्गदर्शन दे सके। जिस कारण वे बहुत ही ङ्क्षचताग्रस्त होने के साथ ही दुविधा में फंसे हुए हैं। वे इस बात को लेकर भी परेशान और दुखी हैं कि मास्टर तारा सिंह के बाद उन्हें आज तक कोई भी ऐसा नेता नहीं मिल पाया, जो बदल रहे समय के साथ देश में हो रहे राजनीतिक परिवर्तनों, विभिन्न राज्यों के स्थानीय राजनीतिक हालात में हो रहे बदलावों का समाधान करवाने में उनका मार्गदर्शन करने के साथ ही उन्हें सहयोग भी दे सके। 

उनकी यह मान्यता है कि मास्टर तारा सिंह के बाद पंजाब के अकाली नेताओं की ओर से पंजाब से बाहर के राज्यों में बस रहे सिखों का स्थानीय राजनीतिक हालात के अनुसार नेतृत्व करने के स्थान पर उन्हें पंजाब आधारित अपने हितों के अनुसार इस्तेमाल करने की कोशिश की जाती है। उन्हें विवश किया जाता है कि वे अपने स्थानीय हितों की अनदेखी कर, उनकी कीमत पर पंजाब में उनके (अकालियों के) हितों के आधार पर उनके द्वारा अपनाई जाती चली आ रही नीतियों का ही अनुसरण करें। 

पंजाब के अकाली नेताओं ने कभी न तो यह महसूस किया और न ही यह सोचने-समझने की कोशिश की कि समय के साथ देश के राजनीतिक हालात इतने बदल गए हैं कि पंजाब से बाहर के हर राज्य के स्थानीय राजनीतिक हालात एक-दूसरे से बिल्कुल ही मेल नहीं खा रहे। जिस कारण, हर राज्य के स्थानीय हालात के अनुसार पनप रही समस्याएं अपनी-अपनी हैं, जिन्हें लेकर उन राज्यों में रह रहे सिखों और अन्य पंजाबियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिस कारण वे यह महसूस करने को विवश हो जाते हैं कि इन कठिनाइयों से उन्हें वही मुखी उभार सकता है, जो देश के विभिन्न राज्यों के स्थानीय हालात को अच्छी तरह समझ, उनके समाधान के लिए उनका नेतृत्व करने का सामथ्र्य रखता हो। कई दशकों से चली आ रही, उनकी यह ऐसी आवश्यकता है जो पूरी नहीं हो पा रही। 

भटके अकाली नेता
शिरोमणि अकाली दल के मुखियों ने गुरुद्वारों की सेवा-सम्भाल करने और स्थापित मर्यादाओं को बहाल रखने में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सहयोग करने के स्थान पर, उस पर अपनी पकड़ बना उसे अपनी राजनीतिक सत्ता-लालसा को पूरा करने के लिए सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सत्ता पर कब्जा कर, उसे अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने की चाहत ने अकाली दल के नाम पर कई दुकानें खुलवा दी हैं। इसके साथ ही असली अकाली दल और पंथक जत्थेबंदी होने की परिभाषा भी बदल कर यह निश्चित कर दी गई कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सत्ता पर जिसका कब्जा है, वही असली पंथक जत्थेबंदी है। बाकी सभी जापानी और पंथ-विरोधी दल हैं। इसी परिभाषा के आधार पर यह भी कहा जाने लगा कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर जिस अकाली दल का कब्जा है, वही असली शिरोमणि अकाली दल है और उस शिरोमणि अकाली दल पर जिसका कब्जा है, वही और उसके पैरोकार ही सिख हैं, बाकी सब कांग्रेसी और सिख धर्म के दुश्मन। 

कैप्टन ने बादल उलझाए
पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई अधीन लटकते चले आ रहे ‘हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ के गठन के मुद्दे में पंजाब की पिछली अकाली-भाजपा सरकार द्वारा पेश किए गए पक्ष के विरुद्ध अपनी सरकार का पक्ष पेश कर, शिरोमणि अकाली दल (बादल) के लिए नई सिरदर्दी पैदा कर दी है। बताया गया है कि जुलाई 2014 में हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने हरियाणा के सिखों की लम्बे समय से लटकती चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर हरियाणा के ऐतिहासिक गुरुद्वारों का प्रबंध स्थानीय सिखों को सौंपने के लिए ‘हरियाणा सिख गुरुद्वारा कमेटी’ का गठन किए जाने का कानून बना दिया था। 

इससे पहले कि इस कानून के तहत ‘हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ के गठन की प्रक्रिया आरंभ होती, शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने यह कहते हुए इस कानून को चुनौती दे दी कि अनबंटे पंजाब (पंजाब-हरियाणा) के सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंध के लिए संसद द्वारा कानून बनाकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन किया गया है, इसलिए इसमें फेरबदल किसी राज्य की सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता। इसके समर्थन में उस समय की प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने भी अपना पक्ष पेश कर दिया। जिसके चलते यह मामला लगातार लटकता चला आ रहा है। अब इसकी अगली सुनवाई 18 फरवरी को होनी है। 

इसी बीच बताया गया है कि पंजाब की कैप्टन सरकार ने पिछली बादल सरकार द्वारा पेश किए गए पक्ष के विरुद्ध, यह पक्ष पेश कर दिया कि कोई भी प्रदेश सरकार अपने क्षेत्र में स्थित गुरुद्वारों के प्रबंध आदि से संबंधित कानून बना सकती है। जिससे माना जाता है कि हरियाणा के ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंध के लिए हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन से संबंधित हरियाणा सरकार द्वारा बनाया गया कानून मान्यता प्राप्त कर जाएगा और हरियाणा स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारों का प्रबंध शिरोमणि कमेटी के हाथों से निकल  हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के हाथों में आ जाएगा। यही कारण है कि इस स्थिति को बनने से रोकने के लिए शिरोमणि अकाली दल (बादल) नई रणनीति बनाने में जुट गया है।

वर्तमान स्थिति
बताया जाता है कि इस समय हरियाणा में 7 ऐतिहासिक गुरुद्वारे और श्री गुरु ग्रंथ साहिब भवन शाहपुर है, इनके साथ ही लगते लगभग 2 दर्जन अन्य गुरुद्वारे हैं और सैक्शन-87 के तहत 22 गुरुद्वारे और भी हैं, जिनका प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा नियुक्त मैनेजर करते हैं। हरियाणा के सिखों की शिकायत है कि इन गुरुद्वारों की करोड़ों रुपए की आय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पंजाब ले जाती है, हरियाणा के सिखों के हितों के लिए वह कुछ भी खर्च नहीं करती। यहां तक कि इन गुरुद्वारों के प्रबंध के लिए भी सारे कर्मचारी पंजाब से ही भेजे जाते हैं। यहां यह बात भी ध्यान देने वाली है कि हरियाणा में सिखों की आबादी लगभग 45 लाख है। 

...और अंत में
पुरानी बात है कि जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल (बादल) की ओर से अमरीकी दूतावास पर धरना देने आए अकालियों में से कुछेक के साथ बात हुई तो उनसे पूछे बिना रहा न गया कि पंजाब में तो आप स्वयं ही अपनों की पगडिय़ां उछालते कोई शर्म महसूस नहीं करते तो फिर दूसरों की ओर से ऐसा किए जाने का विरोध करने क्यों भागे चले आते हो? इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि क्या तुम चाहते हो कि हम अपना यह अधिकार किसी अन्य को सौंप दें?-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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