‘जो पसीना बहाएगा, अंतत: वही लक्ष्य को पाएगा’
punjabkesari.in Tuesday, Sep 03, 2024 - 06:15 AM (IST)
राजनीतिक परिदृश्य पर खुद की संगठन आस्था से भी ऊपर उठकर निष्पक्ष भाव से सिस्टम विश्लेषक के नाते लिखते समय स्मरण आया कि आजकल हरेक शोभे में स्मार्ट वर्क पर निर्भरता जरूरत से ज्यादा जोर देकर इसको आगे बढ़ाकर मंजिल हासिल करने का एकमात्र मंत्र साबित करने की भरसक कोशिश हो रही है, क्या व्यवहारिकता में सार्थक भाव से राजनीतिक दलों के सिस्टम में यह जैसा दिखाने की चेष्ठा होती है वैसा वास्तव में है भी? सिस्टम कोई भी गलत नहीं होता असल में उसमें विचरण करने वाले बहुसंख्यक किरदार उसकी व्यवहारिकता के असर द्वारा सकारात्मक व नकारात्मक भाव को उजागर करते हैं जिसको अक्सर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बता सैद्धांतिक मूल्यों के शोषण का अधिकार दे दिया जाता है?
ज्यादातर दल इस बीमारी के इस समय बुरी तरह शिकार हैं जबकि जो सैद्धांतिक मूल विचारक संगठन संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के परोधा होने का दम भरते हैं, को स्मार्ट वर्क के साथ-साथ हार्ड वर्क की अहमियत को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि सिद्धांत रहेंगे तो ही व्यवस्था परिवर्तन के मूलमंत्र को पाना संभव होगा क्योंकि सत्तासीन होना उसका ध्येय नहीं बल्कि मात्र माध्यम होना चाहिए? अगर समय की तीव्र चक्की में पिसने से बचकर सैद्धांतिक मूल्यों पर प्रयासरत खड़े रहने की चेष्ठा प्रबल रही तो इस समय विचारक विरोधाभास के चलते कट्टर विरोधी वामदल व भाजपा को मूल विचारक सोच के साथ इस दृष्टि से समकक्ष कुछ हद तक साथ खड़ा किया जा सकता है क्योंकि दोनों दलों का मूल कार्यकत्र्ता अपने सिद्धांत से कतई समझौता नहीं करता? एक भारतीय जनता पार्टी लेकिन दूसरी कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया कहलाती है, अंतर स्पष्ट नजर आता है? कैडर दोनों के अपनी-अपनी मूल विचारधारा से निकले हैं लेकिन एक राष्ट्र से जोड़ती है व दूसरी प्रराष्ट्र के भाव में विभाजित करती है। इसी तरह स्मार्ट वर्क अगर खुद की कामनाओं से ऊपर उठकर संगठनवर्धक हो तो सोने पे सुहागा अंतत: निष्काम हार्ड वर्क को स्मार्ट वर्क के गुण से युक्त कर अपनाने में बुराई क्या है? यही वर्गीकरण कार्यकत्र्ता के स्वभाव को उजागर कर उसकी भूमिका तय करता है।
स्मार्ट वर्क का स्मार्ट स्वार्थ तर्क: आजकल सभी दलों में हो रही उठापटक व ‘आया राम गया राम’ पद्धति के चलते, स्मार्ट वर्क अचूक हथियार बन गया है। कमोबेश व्यक्ति केंद्रित दलों में सैद्धांतिक दलों की बनिस्बत स्मार्ट वर्क से खुद का अभेद्य किला बनाना आसान समझा जाता है क्योंकि जवाबदेही संगठन की बजाय व्यक्ति विशेष तक ही सीमित होती है। दरअसल इस स्मार्ट वर्क की प्रभाशा में अर्थ व स्वार्थ के भाव आंतरिक तौर पर जुड़े होने कारण समय की नजाकत देख उनसे भी सामयिक समझौते कर लेते हैं जिन्होंने उनकी दुनिया से विदाई के सपने संजोए होते हैं, लेकिन इसके अभाव कारण सच्चे समॢपत कोसों दूर कर दिए जाते हैं, घोर विरोधी अपने व दल हितैषी बेगाने हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि सभी दलों में कार्यरत संगठनकत्र्ताओं की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होती। लेकिन व्यक्ति दल मूल्यों व आत्मिक संतुष्टि को सर्वोपरि मान संगठन रीति-रिवाज अनुसार बिना क्रैडिट लेने की होड़ में पड़े चुपचाप सफलतापूर्वक संगठनकत्र्ता का धर्म निभाता रहता है व हार्ड वर्क को ही स्मार्ट वर्क समझ बैठता है, दरअसल यही युक्ति उसकी महत्वाकांक्षा होती है जिसका वह दिल से कायल होता है। लेकिन अनुपात अनुसार व्यक्ति केंद्रित दलों के बनिस्बत सैद्धांतिक दलों में यह संख्या शत-प्रतिशत तो नहीं लेकिन काफी अधिक होती है क्योंकि व्यक्ति पूजक को खुद-खुशामद में ही खुदा दिखता है लेकिन सैद्धांतिक दलों को परमवैभव तक लेकर जाने के जुनून के चलते अक्सर कार्यकत्र्ता की नीयत में ‘स्मार्ट वर्क युक्त हार्ड वर्क’ में ही खुद को निष्पक्ष आंकलन से ढूंढना होता है जैसा भाजपा संगठन ने मोदी जी में ढूंढा जो डिजिटिलाइजेशन दौर में स्मार्ट वर्क प्रेरित हार्ड वर्क की सार्थकता संग संगठन के साथ-साथ देश को भी परम वैभव तक ले जाने के जुनून तक अडिग दिखे। क्योंकि संगठन युक्त स्मार्ट वर्क को लागू करने के लिए हार्ड वर्क ही अंतिम पथ है?-डी.पी. चंदन