हरियाणा : इस रफ्तार से कहां पहुंच पाएगी कांग्रेस!
punjabkesari.in Friday, Oct 03, 2025 - 05:36 AM (IST)

कांग्रेस चाहे तो अपनी पीठ खुद थपथपा सकती है कि हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधायक दल नेता का फैसला एक साथ कर दिखाया, पर इसमें लगा लगभग साल भर का समय उसकी अंतर्कलह भी बयान करता है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस विधायक दल के नेता यानी नेता प्रतिपक्ष भी होंगे, जबकि राव नरेंद्र सिंह नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष। हरियाणा में पिछले साल 5 अक्तूबर को विधानसभा चुनाव हुए थे। चंद महीने पहले लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटें जीत लेने के चलते माना जा रहा था कि कांग्रेस 10 साल बाद हरियाणा की सत्ता में वापसी कर सकती है, लेकिन एक प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से वह भाजपा से मात खा गई। भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का करिश्मा कर दिखाया।
भाजपा ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 37 पर अटक गई। एक बार फिर सत्ता-सिंहासन दूर छिटक जाने के पीछे कांग्रेस की अंतर्कलह ही मुख्य कारण रहा। चुनाव के दौरान भी कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों और विरोधियों में बंटी नजर आई। एक हुड्डा समर्थक की टिप्पणी से खफा होकर कांग्रेस की बड़ी नेत्री शैलजा तो कई दिन तक चुनाव प्रचार से भी दूर रहीं। इससे भाजपा को कांग्रेस में दलित अपमान को मुद्दा बनाने का मौका भी मिल गया। बेशक कुछ योगदान ‘इंडिया’ गठबंधन में सहयोगी ‘आप’ का भी रहा, जो सीट बंटवारे पर बात न बनने के कारण अलग चुनाव लड़ी।
माना जा रहा था कि इस बार भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही कांग्रेस विधायक दल के नेता होंगे। आखिर विधायक दल में उन्हीं के समर्थक सबसे ज्यादा जीत कर आए थे। बेशक विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को टिकट वितरण समेत हर मामले में ‘फ्री हैंड’ भी दे रखा था। विधानसभा चुनाव नतीजों के सप्ताह भर बाद हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षकों ने जब एक-एक कर विधायकों से बात की तो लगभग अढ़ाई दर्जन विधायक हुड्डा के समर्थन में थे, लेकिन अंतर्कलह के चलते सत्ता फिर छिटक जाने से खफा आलाकमान ने नेता के चयन का फैसला टाल दिया।
इस बीच चुनावी हार के चलते प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर भी इस्तीफे का दबाव बढऩे लगा, जिनकी हुड्डा की पसंद के चलते ही ताजपोशी हुई थी। माना गया कि अब आलाकमान किसी एक नेता को ‘फ्री हैंड’ देने की बजाय सभी गुटों में संतुलन के साथ आगे बढ़ेगा, पर नए प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता के नामों से साफ हो गया है कि खासकर जाट समुदाय पर मजबूत पकड़ के चलते वह हुड्डा को नजरअंदाज नहीं कर पाया। कांग्रेस के साथ जाट समुदाय के समर्थन और उन पर हुड्डा की पकड़ के मद्देनजर यह फैसला तो पहले भी लिया जा सकता था।
एक स्वाभाविक फैसले में भी साल भर का समय लगा कर आलाकमान ने न सिर्फ राज्य में कांग्रेस की फजीहत कराई, बल्कि खुद की निर्णय क्षमता पर भी सवाल उठाने का मौका दिया। राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति का संकेत यह अवश्य है कि प्रदेश अध्यक्ष के मामले में सिर्फ हुड्डा की नहीं चली। पुराने कांग्रेसी रहे नरेंद्र सिंह लगभग दो दशक पहले पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के साथ जनहित कांग्रेस में चले गए थे। 2009 में जनहित कांग्रेस के टिकट पर नारनौल से विधायक भी बने लेकिन जब कांग्रेस बहुमत से चूक गई तो हुड्डा के इशारे पर अपनी पार्टी तोड़ कर 4 अन्य विधायकों के साथ लौट आए। हुड्डा ने उन्हें मंत्री भी बनाया। इसलिए मानना चाहिए कि हुड्डा ने उनके नाम का विरोध तो नहीं किया होगा लेकिन राव नरेंद्र सिंह के पक्ष में गुटबाजी से दूर रहना भी गया है। इसलिए उनका विरोध शायद शैलजा और रणदीप सिंह सुर्जेवाला जैसे नेताओं ने भी नहीं किया होगा।
रणनीतिक रूप से भी दक्षिणी हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष बनाना सही दाव माना जा सकता है। दशकों बाद अहीरवाल के किसी नेता को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इससे ओ.बी.सी. वर्ग में उसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी, जो नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से भाजपा के साथ और भी ज्यादा एकजुट हो गया है। वैसे राव इंद्रजीत सिंह के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद से कांग्रेस दक्षिणी हरियाणा में हाशिए पर ही नजर आ रही है लेकिन एक बार कांग्रेस छोड़ चुके नेता को प्रदेश अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी दे देना चौंकाता भी है। अहीरवाल के यादव समुदाय से ही कैप्टन अजय सिंह यादव और राव दान सिंह भी आते हैं लेकिन उनकी पहचान क्रमश: हुड्डा विरोधी और हुड्डा समर्थक गुट से जुड़ी है।
लगभग दो दशक बाद कांग्रेस ने हरियाणा में गैर दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। पहले फूल चंद मुलाना, फिर अशोक तंवर, शैलजा और उदयभान प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान कांग्रेस जाट और दलित के समीकरण से राजनीति करती रही, जबकि अल्पसंख्यक और ओ.बी.सी. वोट भी उसे मिलते रहे। हरियाणा में दलित कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। हालांकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी दलित समुदाय से ही आते हैं लेकिन हरियाणा के दलितों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए पार्टी को कुछ और साफ संदेश देना होगा, वर्ना भाजपा की सेंधमारी से बच नहीं पाएगी।
वैसे नए प्रदेश अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह के लिए भी प्रदेश संगठन बना पाना आसान नहीं होगा। हुड्डा के फिर नेता प्रतिपक्ष तथा राव नरेंद्र सिंह के नए प्रदेश अध्यक्ष बनने के बावजूद यह अंतर्कलह थमने वाली नहीं है। हरियाणा में प्रदेश से ले कर जिला-शहर स्तर तक संगठन बनाना दरअसल राहुल गांधी की निर्णय क्षमता की भी परीक्षा होगी, जो अपने करीबी समझे जाने वाले दिग्गजों को भी भाजपा में जाने से नहीं रोक पाए और पुराने विधायक दल नेता की ही फिर ताजपोशी करने में भी जिन्हें साल भर लग गया। यह रफ्तार सत्ता की दौड़ में कांग्रेस की बेहतर संभावनाओं का संकेत तो हरगिज नहीं देती।-राज कुमार सिंह