हरियाणा के जाट फिर आंदोलन के रास्ते पर

punjabkesari.in Sunday, Jun 05, 2016 - 01:45 AM (IST)

(विजय विद्रोही): हरियाणा में जाट एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। अभी फरवरी में ही जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और पुलिस फायरिंग में 30 लोग मारे गए थे। इस बार जाट नेताओं का कहना है कि रेल ट्रैक और सड़क जाम से दूर रहेंगे। उधर हरियाणा सरकार ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी की है। पुलिस बल भारी संख्या में लगाया गया है लेकिन साथ ही यह खबर भी आ रही है कि चूंकि यू.पी. में अगले साल चुनाव हैं लिहाजा वहां जाट वोटों को देखते हुए हरियाणा के आंदोलनकारी नेताओं के साथ नरमी बरती जाएगी। तो आरक्षण के नाम पर राजनीति की शुरूआत यहीं से होती है। 

 
दूसरा सवाल उठता है कि आखिर जब भी कोई सरकार किसी जाति विशेष को आरक्षण देने की घोषणा करती है तो कुछ दिनों बाद ही राज्य के हाईकोर्ट से झटके की खबर क्यों आती है। हरियाणा में जाट आरक्षण को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का झटका, महाराष्ट्र में मराठों के आरक्षण को बाम्बे हाईकोर्ट का झटका, राजस्थान में गुर्जर आरक्षण को राजस्थान हाईकोर्ट का झटका। सवाल उठता है कि आरक्षण के नाम पर राज्य सरकारें क्यों ऐसा झुनझुना थमा देती हैं जिनकी झनझनाहट अदालत में खत्म हो जाती है। क्या है इसके पीछे की सियासत। 
 
हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान मारे गए 30 लोगों में से अकेले झज्जर के ही 13 लोग थे। इनमें से भी 8 जाट थे। इसी में एक था मेहराणा गांव का 24 साल का जयदीप जिसकी 20 फरवरी को झज्जर-रोहतक रोड पर भगत सिंह चौक के पास पुलिस फायरिंग में मौत हो गई थी। जयदीप को आज जाट समाज ने शहीद का दर्जा दिया है। जयदीप बारहवीं पास था। दो एकड़ जमीन थी। मुश्किल से 6 से 8 हजार रुपए की महीने में कमाई होती थी जिस पर पूरा परिवार पलता था। जयदीप की पत्नी सोनिया को आरक्षण पर लगी अदालती रोक की जानकारी है और उसे लगता है कि उसके पति की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। उसका कहना है कि उसे  सरकार से कोई मुआवजा नहीं, बस आरक्षण चाहिए था। 
 
झज्जर के ही अखेड़ी मदनपुर गांव का 24 साल का संदीप भी 20 फरवरी को भगत सिंह चौक में पुलिस फायरिंग में मारा गया था। उसे भी जाट समाज ने शहीद का दर्जा दिया है। गांव के लोगों का कहना है कि जाट समाज शहीद का दर्जा देकर अपनी राजनीति तो चमकाने में लगा है लेकिन मरने वालों के घरवालों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था नहीं कर रहा है। जाट नेता भी खापों की तरह अलग-अलग गुटों में बंधे हैं और आरक्षण के नाम पर श्रेय लेने की होड़ मची है।
 
हरियाणा सरकार ने इसी साल 29 मार्च को जाट समेत 6 जातियों को आरक्षण देने का कानून बनाया था। इसमें शैक्षणिक संस्थाओं में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया। इसी तरह सरकारी नौकरियों में पहली 2 श्रेणियों के पदों में 6 और तीसरी-चौथी श्रेणी के पदों में 10 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई। अभी लोग इसका लाभ उठा भी नहीं पाए थे कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए स्टे दे दिया। जाटों का कहना है कि आरक्षण उस जस्टिस के.सी. गुप्ता कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया जिसे सुप्रीमकोर्ट पहले ही रद्द कर चुका था। ऐसे में हरियाणा सरकार ने जाटों को मूर्ख बनाने का ही काम किया है।
 
भिवानी के मुरारी लाल गुप्ता ने अदालत में जनहित याचिका लगाते हुए जाटों समेत 6 जातियों को दिए गए आरक्षण को संविधान विरोधी बताया था। उनका कहना था कि पहले फरवरी 2014 में याचिका लगाई थी जिस पर हाईकोर्ट ने 27 जुलाई 2015 को जाट आरक्षण पर रोक लगाई थी लेकिन सरकार ने जाटों के दबाव में आकर असली तथ्यों को छुपाकर 29 मार्च 2016 को विधानसभा में बिल पास कर दिया जिसमें स्पैशल बैकवर्ड क्लास (सी) बना दिया। 
 
इस बिल को 12 मई 2016 को नोटिफिकेशन कर एक्ट का रूप दे दिया गया। दरअसल 2012 में महर्षि दयानंद वि.वि. के समाज शास्त्र के विभागाध्यक्ष खजान सिंह सांगवान ने एक सर्वे किया  था जिसे संदिग्ध बतातेे हुए सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। अदालत ने जस्टिस के.सी. गुप्ता कमीशन और गुरनाम सिंह की रिपोर्ट में भी भारी कमियां निकाली थीं। गुरनाम सिंह की रिपोर्ट तो 25 साल पुरानी है। यानि हरियाणा सरकार को भी पता था कि जो आरक्षण वह देने जा रही है उस पर अदालत की रोक लगना तय है, इसके बावजूद आरक्षण दिया गया। 
 
अब राजस्थान की बात करते हैं। यहां गुर्जर पिछले 10 सालों से आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस दौरान 2 बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही है और दोनों ने ही गुर्जरों के आरक्षण आंदोलन को वोट की राजनीति से जोडऩे में कोई कमी नहीं रहने दी। इस दौरान पुलिस फायरिंग में अलग- अलग जगह 72 गुर्जर मारे गए। 
 
गुर्जर राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं। जब जाटों को इस ओ.बी.सी. में शामिल किया गया तो गुर्जरों ने कहा कि सारा हिस्सा चूंकि प्रभावशाली जाट खा जाएंगे, लिहाजा गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) में शामिल किया जाए। यह बात 2007 की है। तब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इसके लिए चोपड़ा कमेटी बनाई जिसने केन्द्र से एस.टी. के लिए मापदंड बदलने को कहा। कुल मिलाकर गेंद केन्द्र के पाले में डाल दी गई । 
 
ताजा स्थिति यह है कि गुर्जरों समेत 4 जातियों को अलग से पांच फीसदी आरक्षण एस.बी.सी. के तहत मिला हुआ है। इसे भी राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी और सात महीनों से हो रही सुनवाई के बाद 23 मई 2016 को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वसुंधरा सरकार ने गुर्जर आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं सूची में शामिल करवाने का वायदा किया था। उसका कहना है कि ऐसा खत केन्द्र को भेजा जा चुका है लेकिन हाल ही में जयपुर आए केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने खत मिलने से इंकार किया।  दरअसल अगर किसी सरकार को किसी जाति को पचास फीसदी की हद पार करते हुए आरक्षण देना है तो उसे पिछड़ा वर्ग आयोग से जाति के पक्ष में रिपोर्ट मंगवानी चाहिए। जो यह बताए कि फलां जाति सामाजिक शैक्षणिक दृष्टि से कमजोर है । ऐसा हरियाणा और राजस्थान सरकारों ने नहीं किया इसलिए उन्हें अदालत में मुंह की खानी पड़ी। 
 
अब बात करते हैं महाराष्ट्र की। वहां कांग्रेस एन.सी.पी. सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जून 2014 में मराठों को 16 फीसदी आरक्षण नौकरी और शिक्षा में दिया एक अध्यादेश के रूप में। भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी तो उसने अध्यादेश को कानून का रूप दे दिया, लेकिन नवम्बर में बाम्बे हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उसने भी रोक हटाने से इन्कार कर दिया।  दरअसल 2000 में महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठों को आरक्षण के लायक नहीं माना था। उसका कहना था कि मराठे आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से खासे रसूखदार हैं।
 
अब बात गुजरात की। वहां हार्दिक पटेल की अगुवाई में पटेल खुद के लिए आरक्षण की मांग करते रहे हैं। पूरे गुजरात में पटेलों ने धरना-प्रदर्शन किया था और पुलिस से भी हिंसक झड़पें हुई थीं। यहां तक कि देशद्रोह का आरोप झेल रहे उनके नेता हार्दिक पटेल कई महीनों से गुजरात जेल में बंद हैं। आखिरकार गुजरात की आनंदी बेन सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक विधानसभा से पारित करवाया। इसे भी अहमदाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई है।                
 

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