गौरक्षा के नाम पर हो रही ‘बेवकूफियों’ को सख्ती से रोके सरकार

punjabkesari.in Saturday, Jul 22, 2017 - 11:37 PM (IST)

गौरक्षा के नाम पर होने वाली हत्याओं की वीरवार अरुण जेतली द्वारा और उसके कुछ दिन पूर्व नरेन्द्र मोदी द्वारा दो-टूक शब्दों में निंदा से उन उचक्कों को एक कड़ा संदेश जाना चाहिए जो गौरक्षा के नाम पर हत्याएं और अंग-भंग करने का काम कर रहे हैं। ऐसे कुकृत्य कदापि स्वीकार्य नहीं हैं। कोई भी सभ्य समाज ऐसे पाश्विकव्यवहार की अनुमति नहीं दे सकता। अपने प्राइवेट आपराधिक तथा अन्य प्रकार के एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए गऊ माता का आश्रय लेने वाले ऐसे गुंडों के विरुद्ध कानून की सम्पूर्ण शक्ति प्रयुक्त की जानी चाहिए। सच्चे गौ भक्त गऊ माता के नाम पर दूसरों की हत्या नहीं करते। 

इसके साथ-साथ यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि आनुवांशिक रूप में मोदी सरकार के विरुद्ध नफरत  से भरे हुए आलोचकों और उनके साथ कतारबद्ध निहित स्वार्थों को भी यह समझना चाहिए कि हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यताओं में गऊ का एक खास महत्व है। इस तथ्य को मान्यता देते हुए ही संविधान निर्माताओं ने सर्वसम्मति से भावी पीढिय़ों का मार्गदर्शन करते हुए गऊओं को बचाने और उनकी सम्भाल करने की बात कही थी तथा दुधारू गायों और उनके बछड़े-बछडिय़ों के वध की विशेष तौर पर मनाही की थी। ऐतिहासिक कारणों के चलते हिंदुओं के लिए गौरक्षा सदा से ही प्राथमिकता का विषय रहा है। वैसे आधुनिक दौर में गऊ पर आस्था के कुछ बिंदुओं को रद्द किया जा सकता है-बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार सूअर का मांस खाने पर प्रतिबंध को आधुनिक समय में रद्द किया गया है। 

कुछ भी हो, सभ्यता से संबंधित वैधता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। गौ माता शताब्दियों से न केवल हिंदुओं बल्कि समस्त भारतीयों के लिए पवित्र दर्जा रखती आ रही है। मैं यहां 1967 के लोकसभा चुनाव का स्मरण कराना चाहूंगा जब राजनीतिक तौर पर गहरी जड़ें जमा चुकी कांग्रेस को पहला बड़ा आघात लगा था। इसका एकमात्र कारण यह था कि कुछ ही माह पूर्व संसद भवन के समक्ष जब हजारों साधुओं और संतों ने गौवध पर मुकम्मल प्रतिबंध पर मांग करते हुए घेराबंदी कर ली थी तो पुलिस ने उन पर गोली चलाई थी। जिसमें बीसियों लोग मारे गए थे, हालांकि सरकारी रिपोर्टों में इन आंकड़ों को काफी घटाकर बताया गया था। शायद यही कारण है कि अति आधुनिक मानसिकता वाला कोई कांग्रेस नेता भी सार्वजनिक रूप में गौवध का समर्थन नहीं करता। बेशक कोई गौमांस भक्षण करता हो लेकिन सार्वजनिक रूप में इसकी उपलब्धता और खपत की वकालत करना घोर बेवकूफी भरा कदम होगा। 

देश के कुछ छोटे-छोटे इलाकों में जहां खुलेआम गौमांस भक्षण किया जाता है वहां भी ऐसा स्थानीय लोगों की विशेष सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं के कारण ही होता है। मैं अपने बचपन में अक्सर देखा करता था कि पारिवारिक हवेली के खुले प्रांगण में एक या दो गाय लम्बे रस्से और खूंटे से बंधी चरा करती थीं। जब गाय बूढ़ी हो जाती तो उसे नजदीक की गऊशाला में छोटी सी धनराशि देकर श्रद्धापूर्वक भेज दिया जाता था और उसके स्थान पर जवान दुधारू गाय तुरंत घर के आंगन का शृंगार बन जाती थी। लेकिन अब यह देखकर दुख होता है कि ऐसी गौशालाएं न केवल बंद हो गई हैं बल्कि उनके प्रबंधक इनकी जमीन को हथियाने के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे हैं क्योंकि गत कुछ दशकों दौरान इन जमीनों की कीमत बहुत बढ़ चुकी है। बेचारी बूढ़ी और लावारिस गाय कूड़े के ढेरों पर दिखाई देती हैं। 

मेरा ऐसा कहने का तात्पर्य यह है कि गऊओं की हत्या करने और गऊओं की रक्षा करने के मुद्दे पर उलझने की बजाय धर्मार्थ गौशालाओं के ताने-बाने को नए सिरे से ऊर्जावान बनाने की जरूरत है जैसा कि संयुक्त पंजाब तथा पश्चिमी यू.पी. में व्यापक रूप में होता था। उस दौर में आढ़तिए भी अपने आढ़त के एक रुपए में से एक पैसा गौशालाओं के लिए अलग से निकाला करते थे। आजकल तो एफ.सी.आई. के भ्रष्ट तंत्र के चलते पंजाब में से आढ़तिए लगभग गायब ही हो गए हैं। इसी बीच राज्यसभा में गौरक्षकों के मुद्दे पर हुई बहस ने इसके आलोचकों का दम्भ और पाखंड एक बार फिक बेनकाब कर दिया है। 

कपिल सिब्बल ने बहुत आग उगलते हुए प्रधानमंत्री पर दोहरे और तिहरेपन का आरोप लगाया। अपनी बात कहने के बाद उन्होंने फटाफट पैसा कमाने के लिए कचहरी की ओर भागने की जल्दी की। उनका यह रवैया और अन्य आलोचकों की उपस्थिति का स्तर यह दिखाता था कि मोदी विरोधी ब्रिगेड इस मुद्दे पर चर्चा के लिए गम्भीर नहीं बल्कि केवल हंगामा ही खड़ा करना चाहता है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी गौरक्षा के मुद्दे पर सरकार के विरुद्ध लड़ाई को इसकी परिणति तक नहीं ले जाना चाहती क्योंकि यह जानती है कि देश का आम मतदाता यदि अपने दिमाग से नहीं तो अपने दिल से गौ को पवित्र मानता है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी कम्युनिस्टों के पाले में पूरी तरह खड़े होने से झिझकती है जिन्होंने कुछ ही दिन पूर्व केरल में गौहत्या और गौ मांस भक्षण का उत्सव मनाया था। 

वैसे भी गत 3 वर्ष दौरान चुनावों में बुरी तरह पराजित होने के बाद यह पार्टी खुद को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोप से बचाने के प्रति काफी सजग हो गई लगती है। यही कारण है कि गौरक्षा के नाम पर हुई हत्याओं और पिटाई का यह आक्रामक ढंग से विरोध करने से डरती है। लेकिन सरकार को अभी गौ रक्षा के नाम पर हो रही बेवकूफियों को कड़ाई से रोकना होगा क्योंकि व्यवस्था को दुरुस्त करने के इसने जितने भरसक प्रयास किए हैं उन उपलब्धियों पर ये बेवकूफियां 
पानी फेरे जा रही हैं।    
 


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