गौमाता को धार्मिक व चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास

Thursday, Aug 11, 2016 - 12:46 PM (IST)

(पूनम आई कौशिश): हमारे हिन्दुत्व ब्रिगेड के लिए गौमाता पुन: एक सुविधाजनक राजनीतिक हथियार बनता जा रहा है। यह ब्रिगेड पुन: गौमाता के नाम पर अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ और गौ संरक्षण की बातें करने लगा है। उन्होंने समझ लिया है कि पवित्र गाय वोट लुभाने के लिए एक अच्छा मुद्दा बन सकती है। हालांकि इसके चलते विवाद भी पैदा हो सकते हैं। 

 
इस मुद्दे पर पिछले माह तब खूब शोर हुआ जब गुजरात के उना कस्बे में 4 दलित व्यक्तियों की इसलिए पिटाई कर दी गई कि वे एक मृत गाय की खाल उतार रहे थे और इस पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। स्वाभाविक रूप से सभी दलों के राजनेता इस घटना से राजनीतिक लाभ उठाने के लिए वहां पहुंचे और कांगे्रस, जद (यू) आदि सबने कहा कि लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता खतरे में हैं। 
 
इन गौरक्षकों ने अपने राजनीतिक माई-बाप भाजपा से प्रेरणा ली जो सम्पूर्ण देश में गौरक्षा कानून बनाने के लिए अभियान चला रही है और इस क्रम में गाय की रक्षा के लिए उठाए गए किसी भी कदम को वे उचित ठहरा रहे हैं चाहे ऐसा करने वाला कानून को अपने हाथ में क्यों न ले रहा हो। वस्तुत: उना की घटना इस क्रम में एक नई कड़ी है। गौरक्षक दल ने दलित समुदाय के लोगों को नंगा किया, कार से बांधा और उनकी पिटाई की। इससे पूर्व पिछले वर्ष दादरी में गौमांस खाने को लेकर एक मुस्लिम व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी जिसने देश में गाय की राजनीति पुन: शुरू कर दी थी। 
 
हिन्दू मतों पर निर्भर भाजपा से संरक्षण मिलने के कारण गाय की देखभाल और इसका संरक्षण अक्सर राजनीति में प्रभावी हो जाता है। इसलिए भाजपा ने गौरक्षा को हमेशा अपने राजनीतिक एजैंडे का अभिन्न भाग बनाया और हिन्दुओं को संतुष्ट करने के लिए इसे अपने चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया किन्तु फिलहाल गाय और गौमांस के बारे में जो बहस चल रही है उसका संबंध पवित्र गाय से नहीं अपितु प्रतिस्पर्धी राजनीति से है। हमारे नेतागणों ने गौमाता का पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में लाभ उठाने का निर्णय कर लिया है। 
 
राजनीतिक दृष्टि से उना की घटना का परिणाम भाजपा के लिए अप्रत्याशित हो सकता है क्योंकि राज्य भर के दलितों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया की है। बड़ी संख्या में दलितों ने विरोध प्रदर्शन किया और मृत गाय की खाल थानों तथा सरकारी  कार्यालयों के बाहर रखकर प्रदर्शन किया और कहा कि वे मृत गायों की खाल नहीं उतारेंगे। अब तक भाजपा दलितों को नहीं लुभा रही थी क्योंकि उसका मानना था कि उसे उनके वोटों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि राज्य में उनकी संख्या 8 प्रतिशत से कम है। 
 
तथापि हिन्दी भाषी क्षेत्र में चुनाव होने वाले हैं और यह मुद्दा पार्टी को दलितों से अलग-थलग कर सकता है और वे भाजपा विरोधी गुट में शामिल हो सकते हैं जिसमें मुस्लिम और दलित प्रमुख रूप से हैं। उना तथा इससे पूर्व हैदराबाद में दलित छात्र की आत्महत्या से हिन्दी भाषी क्षेत्र में दलित आंदोलन आगे बढ़ा और दलित राजनीति फिर से उभरी, जिसके चलते बसपा की मायावती उना की घटना और भाजपा नेता द्वारा उनके विरुद्ध की गई अपमानजनक टिप्पणी का उपयोग अपने लाभ के लिए कर रही हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जबकि मुलायम सिंह अपने मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर निर्भर हैं।  
 
कांग्रेस भी इस दलित आंदोलन का लाभ उठाने और कुछ जनाधार प्राप्त करने का प्रयास कर रही है। पार्टी ने गाय की राजनीति से भाजपा द्वारा वोट प्राप्त करने के एजैंडे को अस्वीकार कर दिया है। राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के अनुसार, ‘‘हम मतदाताओं को लुभाने के लिए गाय का उपयोग नहीं करते हैं। धर्म और राजनीति का घालमेल नहीं किया जाना चाहिए।’’ इस नेता ने इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण भी दिए कि प्राचीन भारत में हिन्दू भी गौमांस खाते थे। अब देखना यह है कि भाजपा इन घटनाक्रमों से किस प्रकार निपटती है। पहले मोदी और शाह ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी थी किन्तु पिछले 2 दिनों में मोदी ने इन तथाकथित गौरक्षकों को आड़े हाथों लिया और कहा कि गौरक्षा के बहाने दलितों पर हमला करने की बजाय वे उन (मोदी) पर हमला करें और राज्य सरकारों से कहा है कि वे ऐसे तत्वों की पहचान कर उन पर कार्रवाई करें और उनका ब्यौरा उन्हें भी दें। 
 
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे देश में गाय संरक्षण लंबे समय से एक जीवंत राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी इस मुद्दे पर लंबी बहस की। संविधान के अनुच्छेद 48 में प्रावधान है, ‘‘राज्य कृषि और पशु पालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा। विशेष रूप से गाय और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और भारवाही पशुओं की नस्ल सुधार और संरक्षण के लिए कदम उठाएगा और उनके वध पर प्रतिबंध लगाएगा।’’ गाय संरक्षण को राज्य के नीति निदेशक तत्वों में शामिल किया गया है किन्तु नीति निदेशक तत्वों के माध्यम से सम्पूर्ण देश में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए विधायी प्रावधान नहीं है और हिन्दू कट्टरवादी इसकी लंबे समय से मांग कर रहे हैं। 1966 के बाद इस संबंध में अनेक आंदोलन किए गए। 1966 में इस मुद्दे पर संसद का घेराव किया गया। उसके बाद की गई गोलीबारी में अनेक लोगों की जानें गईं। 
 
यह सच है कि गौमाता हिन्दुओं के लिए पवित्र है और उसे वे कामधेनु मानते हैं। गाय का प्रत्येक अंग उपयोगी है। गौमूत्र में औषधीय गुण हैं इसलिए हमारे धार्मिक कर्मकांड में गाय और गौमूत्र को महत्व दिया गया है। गत वर्षों में अनेक राज्यों ने इस संबंध में कानून बनाए हैं जिसके कारण गौहत्या अवैध घोषित की गई है। 
 
नि:संदेह कोई भी नेता किसी दूसरे व्यक्ति की थाली में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है किन्तु फिर भी वे गाय, बछड़ों के व्यापार के बारे में बोलने से चुप नहीं रहते हैं। कुछ राज्यों ने गौहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया है। कुछ में बूढ़ी और बीमार गायों को मारने की अनुमति दी गई है और कुछ राज्यों में प्रतिबंध हो या न हो, गौहत्या होती है तथा कुछ राज्यों में गौहत्या के लिए उपयुक्त प्रमाण पत्र चाहिए। तथापि गाय और गौमांस भक्षण का पवित्र गाय से कोई लेना-देना नहीं है। भगवा मंत्री, नेता, स्वामी और मुल्ला इस मुद्दे पर सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं। वे हिन्दुत्व को अपनी महत्वाकांक्षाओं और चुनावी लाभ के अनुरूप ढालने का प्रयास कर रहे हैं। 
 
विश्व के कुछ देशों में कुछ विशेष प्रकार के जानवरों की हत्या और उनके मांस के भक्षण पर प्रतिबंध है। सभी मुस्लिम देशों में सूअर के मांस पर प्रतिबंध है। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में सूअर का मांस लोकप्रिय है। आम धारणा के विपरीत पाकिस्तान में गौमांस लोकप्रिय नहीं है। वहां पर केवल बहुत गरीब लोग बड़ा गोश्त (मोटा मांस) को ही गौमांस कहते हैं जो सस्ता होता है। साथ ही अरब देशों में सूअर के मांस पर प्रतिबंध लगाने से कोई भी वहां भूखा नहीं मरा है। 
 
वस्तुत: गौमांस पर प्रतिबंध और गौ संरक्षण के बारे में संकीर्ण और धर्म आधारित बहस के चलते खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्तियां पैदा हो रही हैं और इससे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध असहिष्णुता और हिंसा बढ़ रही है और यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो हमारे समाज के छिन्न-भिन्न होने का खतरा है। 
 
हमारे राजनेताओं के एजैंडे  में केवल राजनीति और चुनाव होते हैं। इसलिए उन्हें अपने वोट बैंक बनाने के लिए इस आग से खेलने का कार्य बंद करना चाहिए। दोनों समुदायों को पारस्परिक सौहार्द से रहना चाहिए और भाजपा को भी अपने उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाना चाहिए जो केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद अति उत्साही बन गए हैं। हमारे नेताओं को समझना होगा कि भारत बहुसंख्यक  राज्य की बजाय लोकतांत्रिक देश है जिसमें अल्पसंख्यकों को कुछ बुनियादी अधिकार दिए गए हैं और यही धर्मनिरपेक्षता का सार है। यह विभिन्न समुदायों के बीच मतभेदों को आत्मसात करने वाला देश है न कि गौमांस पर उत्पात मचाने वाला। समय आ गया है कि विभाजनकारी राजनीति पर प्रतिबंध लगाया जाए। हमें याद रखना होगा कि गौ संरक्षक और गौमांस भक्षक दोनों ही भारत के लोग हैं। हमें सत्ता की खातिर गौमाता को एक धार्मिक और चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी आप इस ओर जरूर ध्यान दें।
 
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