प्रेस की आजादी पर पहरा

punjabkesari.in Saturday, May 05, 2018 - 03:37 PM (IST)

‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ में मीडिया की स्वतंत्रता, पारदर्शिता, मीडिया के लीगल फ्रेमवर्क, अवसंरचना की गुणवत्ता आदि मानकों को आधार बनाया जाता है। जाहिर है भारत इन सभी मामलों में फिसड्डी साबित हो रहा है। रिपोर्ट की मानें तो पत्रकारों के खिलाफ  घृणित भाषण और हिंसा के कारण भारत की स्थिति कमजोर हुई है।

रिपोर्ट ने पिछले वर्ष सितम्बर में गौरी लंकेश हत्याकांड का भी जिक्र किया है। रिपोर्ट के अनुसार इसी वर्ष अब तक तीन पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जबकि पिछले वर्ष भी तीन पत्रकारों की हत्या की गई थी। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में प्रेस की आजादी पर लगातार अंकुश लगने की बात कही जाती रही है। वर्ष 2009 में भारत 105 वें, 2010 में 122 वें तथा 2012 में 131 वें पायदान पर था और अब 138 वें। यह बताता है कि किस प्रकार धीरे-धीरे भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बंदिश लगाई जाती रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी फेसबुक पोस्ट के कारण एक युवक को गिरफ्तार कर लिया गया था। वर्ष 2012 में बाल ठाकरे पर टिप्पणी करने पर दो लड़कियों को गिरफ्तार करने का मामला भी बोलने के अधिकार को कुचलने जैसा था। इसी रिपोर्ट की मानें तो प्रेस की आजादी के गिरते स्तर के लिए सत्ता काफी हद तक जिम्मेदार है। 

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में जनप्रतिनिधियों की ऐसी जमात उभर रही है जो प्रेस की आजादी को कुचलना ज्यादा पसंद करती है। जनप्रतिनिधियों का यह वो वर्ग है जो मीडिया को लोकतंत्र का जरूरी अंग नहीं मानता है। इस रिपोर्ट में मौजूदा सत्ताधारी भाजपा को आड़े हाथों लिया जाना इसी का दूसरा पहलू है। रिपोर्ट में साफ  तौर पर कहा गया है कि ‘मोदी के राष्ट्रवादियों’ द्वारा पत्रकारों को प्रताडि़त किया जा रहा है, जिससे मीडिया अपना काम आजादी से नहीं कर पा रही है। -रिजवान अंसारी
 


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jyoti choudhary

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