जी.एस.टी. को ‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’ बनाने के लिए अभी लम्बा फासला तय करना होगा

Tuesday, Oct 10, 2017 - 01:35 AM (IST)

जी.एस.टी. का कार्यान्वयन शायद पहला अवसर था जब संसद ने किसी टैक्स सुधार का जश्न मनाया था। 30 जून की आधी रात को यह एक अविस्मरणीय घटना थी और लोग इसके बारे में खुश थे। अब यह एहसास प्रबल होता जा रहा है कि जी.एस.टी. के जश्न की तुलना में जी.एस.टी. की यात्रा अधिक महत्वपूर्ण है। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो 100 दिन की अवधि को बेशक आत्मचिंतन के लिए बढिय़ा मील का पत्थर माना जा सकता है तो भी यह जी.एस.टी. की सफलता पर कोई अंतिम निर्णय सुनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। 

केवल टैक्सटाइल क्षेत्र के एकमात्र अपवाद को छोड़कर उद्योग जगत ने जी.एस.टी. को व्यापक रूप में समर्थन दिया है। देश भर में या तो इसका कोई विरोध नहीं हुआ या बिल्कुल मामूली-सा विरोध हुआ है। केवल थोड़े से मामलों को छोड़कर (जहां टैक्स में उल्लेखनीय बढ़ौतरी हुई है) उपभोक्ता के दृष्टिकोण से न तो आपूर्तियों में कोई कमी आई और न कीमतों में कोई वृद्धि हुई। ऐसे समाचार आ रहे हैं कि एक से दूसरी जगह उत्पादों की ढुलाई अधिक सुगम और सक्षम हो गई है, जिसका तात्पर्य यह है कि उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों तक पहुंच में सुधार आया है। जी.एस.टी. परिषद की 22वीं मीटिंग में ई-वे बिलों को अप्रैल, 2018 तक स्थगित किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है। 

पुरानी टैक्स प्रणाली से जी.एस.टी. की ओर बदलाव की प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल और सुगम ही रही है, फिर भी कुछ चुनौतियां और ङ्क्षचताएं टाली नहीं जा सकी हैं। छोटे और मंझौले उद्यम जी.एस.टी. कानूनों और इनके अनुपालन की जटिलता से जूझ रहे हैं। शायद इनमें से अधिकतर को यह उम्मीद ही नहीं थी कि जी.एस.टी. इतनी जल्दी साकार हो जाएगा, इसीलिए इन उद्यमों ने इस संबंधी कोई तैयारियां करने का काम स्थगित कर रखा था। पंजीकृत विक्रेताओं से खरीद करने तथा इनपुट क्रैडिट की उपलब्धता के लिए चालान का मिलान करने जैसे मामलों में लागू होने वाले रिवर्स चार्ज से संबंधित कुछ विधानकारी प्रावधानों का अर्थ यह निकला है कि बड़े-बड़े उपभोक्ताओं की गैर-पंजीकृत एवं छोटे विक्रेताओं के साथ लेन-देन करने में रुचि कम होने लगी थी। 

जी.एस.टी. परिषद ने गैर-पंजीकृत सप्लायरों से की जाने वाली खरीद पर रिवर्स चार्ज प्रक्रिया लागू किए जाने को स्थगित कर दिया है जोकि सही दिशा में उठाया गया एक अतिरिक्त कदम है। वैसे स्थगित करने की बजाय इस प्रावधान को निरस्त ही कर दिया जाना चाहिए था। निर्यात उद्योग को भी जी.एस.टी. ने कुछ इस तरह की पीड़ा पहुंचाई है क्योंकि निर्यात प्रोत्साहन कुछ मामलों में कम हो गया था और इनपुट टैक्स का रिफंड हासिल करने की प्रक्रिया/समय सारिणी के मामले में स्पष्टता की कमी है। निर्यातकों को बड़े निर्यात आर्डरों के लिए की गई खरीद पर जी.एस.टी. छूट का मार्च, 2018 तक बढ़ाया जाना बहुत बड़ी राहत है। 

उलझनों में कमी
मुनाफाखोरी रोकने के प्रावधानों के संबंध में ढेर सारी उलझनें थीं। कुछ राज्यों ने तो कम्पनियों से अंधाधुंध ढंग से जी.एस.टी. लागू होने से पहले और बाद की उत्पाद कीमतों के बारे में जांच-पड़ताल करनी शुरू कर दी है। यदि जी.एस.टी. परिषद बहुत तेजी से इस समस्या का संज्ञान नहीं लेती और अति उत्साही अधिकारियों पर नकेल लगाने के लिए उचित स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं करवाती तो बिना वजह ही कई तरह की मुकद्दमेबाजी शुरू हो जाएगी। 

जी.एस.टी. लागू होने के प्रथम कुछ महीनों के दौरान पहले ही काफी सारी मुकद्दमेबाजी देखने में आई है और बहुत-सी कम्पनियों ने क्षतिपूर्ति शुल्क के अधिभार से लेकर जी.एस.टी. रिटर्न भरने में आने वाली तकनीकी कठिनाइयों जैसे मुद्दों तक पर संबंधित अदालतों में पहुंच की है क्योंकि जी.एस.टी. की परिकल्पना एक सरल और विवेकपूर्ण टैक्स व्यवस्था में ही की गई थी इसलिए जी.एस.टी. परिषद को मुकद्दमेबाजी को न्यूनतम स्तर पर लाने तक के तरीके खोजने होंगे। 

जैसे-जैसे जी.एस.टी. अपने पैर मजबूत करता जा रहा है, वैसे-वैसे यह चर्चा जोर पकड़ती जा रही है कि ‘कारोबार करने की सुगमता’, जोकि जी.एस.टी. का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, की ओर वांछित तवज्जो दी गई है। जी.एस.टी. की प्रक्रिया और दस्तावेजों के संबंध में ढेर सारी जरूरतें पूरी करनी पड़ती हैं जिनमें से एक यह है कि सेवाएं निर्यात करने वालों को एक बांड या शपथ पत्र भरकर देना पड़ता है।

जी.एस.टी. लागू होने से पहले इसकी कोई जरूरत नहीं हुआ करती थी। सबसे अधिक समस्या तो है तकनीकी चुनौतियों की। इसके अलावा जी.एस.टी. नैटवर्क भी अभी इतना मुस्तैद नहीं हुआ है कि बहुत अधिक सौदेबाजियों और आंकड़ों का तेजी से प्रसंस्करण कर सके। दुनिया भर के किसी भी देश में कभी आई.टी. आधारभूत ढांचे को भारत जैसे बड़े स्तर पर आंकड़ों और प्रक्रियाओं से निपटने की जरूरत नहीं पड़ी। इसलिए स्वाभाविक ही है कि नए-नए प्रयोगों को परखने के लिए कुछ समय लगेगा और उसके बाद ही सही ढंग से कार्यान्वयन हो सकेगा। 

इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए जी.एस.टी. परिषद ने प्रथम कुछ महीनों के लिए ‘संक्षिप्त रिटर्न फाइङ्क्षलग’ का जुगाड़ किया है और विस्तृत रिटर्न फाइलिंग को स्थगित कर दिया है। जी.एस.टी. की सफलता मजबूत तकनीकी ढांचे पर निर्भर है और इसके कार्यान्वयन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के साथ-साथ इन चुनौतियों से निपटने  के मामले में अधिक लचकदार रवैया अपनाना होगा। जी.एस.टी. परिषद जमीनी स्थितियों की लगातार मॉनीटरिंग कर रही है और उद्योग जगत को दरपेश समस्याओं का संज्ञान ले रही है। यह अपने आप में बहुत उत्साहवद्र्धक बात है। फिर भी एक बात तय है कि जी.एस.टी. को ‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’ बनाने के लिए अभी बहुत लंबा फासला तय करना होगा। 

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