जी.एस.टी. के कारण मुसीबतों में घिरा देश का व्यापारिक ढांचा

Thursday, Dec 07, 2017 - 03:46 AM (IST)

आज जब जी.एस.टी. और नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम आदमी की जिंदगी को लहूलुहान कर दिया है, उस समय जमीनी हकीकतों से आंंखें मूंदकर केन्द्र सरकार विदेशी रेटिंग एजैंसियों के माध्यम से खुद को ‘सही’ ठहरा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जी.एस.टी. कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी केवल भाजपा या केन्द्र सरकार की ही नहीं बल्कि समस्त राजनीतिक दलों व प्रादेशिक सरकारों की भी है। 

वास्तव में ङ्क्षहदुस्तान में राजनीतिक लोगों और नौकरशाही का मानना है कि व्यापारी चोर है और वह टैक्स की चोरी करता है, जबकि ऐसी अवधारणा बनाना ही गलत है। मध्यवर्ग का व्यापारी दिग्गज कम्पनियों और ग्राहकों के बीच एक महत्वपूूर्ण कड़ी है। बेशक कितने भी बड़े डिपार्टमैंटल स्टोर क्यों न खुल जाएं, डैबिट, क्रैडिट कार्डों व आनलाइन शापिंग का प्रचलन क्यों न बढ़ जाए- आज भी ग्राहक अपने जान-पहचान वाले दुकानदार के पास खुद जाकर माल खरीदना पसंद करता है। मध्यवर्गीय व्यापारी को अपनी आंखों की किरकरी समझने की बजाय उस पर भरोसा करने की जरूरत है। 

बिना तैयारी, बिना प्रशिक्षण, बगैर किसी ट्रायल के सभी राजनीतिक पार्टियां और सरकारों द्वारा यह सोच कर रातों-रात जी.एस.टी. बिल पारित कर दिया गया कि टैक्स इकट्ठा करने की प्रणाली व्यापारियों से छीन कर कम्प्यूटरों के हवाले कर दो ताकि रातों-रात पैसों की बरसात हो जाए और फिर इस पैसे  को अपने वोट बैंक के लिए प्रयुक्त किया जाए। आज भारतीय जनता पार्टी इस संबंध में हर कठिनाई को ‘शुरूआती दिक्कत’ बताकर पल्ला झाड़ रही है, जोकि पूरी तरह गलत है। क्या हम कभी भी ऐसी कार तैयार करके किसी को चलाने के लिए सौंप सकते हैं जिसके चारों टायर अलग-अलग आकार के हों और अंदर जाने का रास्ता भी खिड़की की बजाय छत में से निकलता हो, ड्राइवर की सीट पर बैठकर आगे देखने की बजाय पीछे दिखाई देता हो, ए.सी. ठंडी हवा की बजाय आग उगलता हो, तेल का पता ही न हो कि कौन-सा प्रयुक्त करना है। ऊपर से हम ग्राहक को कहें कि आप इसे न केवल खरीदें बल्कि इसे चलाएं भी; आपको जो भी दिक्कत आएगी वह हर महीने मीटिंग में दूर कर दी जाएगी। 

मैं सीधे तौर पर प्रत्येक राज्य सरकार के वित्त मंत्रालय से लेकर केन्द्रीय वित्त मंत्री, नीति आयोग, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार से पूछना चाहता हूं कि यदि उन्हें इन दिक्कतों और इतने बड़े नुक्सान का पूर्वानुमान नहीं था तो उन्होंने इसे लागू करने का फैसला ही क्यों लिया? टैलीविजन पर जी.एस.टी. की चर्चा के बीच भाजपा के प्रवक्ता ने राज्य सरकार को टैक्स की राशि न जारी होने का ठीकरा कम्प्यूटर साफ्टवेयर के सिर फोड़ा था। मुझे हैरानी इस बात की है कि कम्प्यूटर से उस समय बढिय़ा कारगुजारी की उम्मीद की जा रही है जब कम्प्यूटर इंजीनियर को खुद नहीं पता कि इस साफ्टवेयर में लोड क्या करना है। आखिर बदलाव तो हर रोज थोक के भाव हो रहे हैं। अमृतसर में भाजपा से कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू ने ङ्क्षहद समाचार पत्र समूह को विधिवत साक्षात्कार देते हुए यह माना कि वह गलतफहमी में जी.एस.टी. लागू करवा बैठे। 

आने वाले दिनों में स्थिति और भी बदतर हो जाएगी। इसका कारण यह है कि जी.एस.टी. के अंतर्गत टैक्स की राशि प्रदेश सरकार को सीधी मिलने की बजाय केन्द्र सरकार के माध्यम से हासिल होनी है। इस राशि को केन्द्र सरकार जब चाहे रोक सकती है- कारण कुछ भी बताया जा सकता है, जैसे कि कम्प्यूटर की गड़बड़, प्रदेश और कांग्रेस सरकार का लेन-देन का झगड़ा अथवा केन्द्र व राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सरकारों की आपसी रंजिश। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह 4-5 बार कह चुके हैं कि केन्द्र से टैक्स की राशि न मिलने के कारण प्रदेश सरकार आॢथक दिक्कतों का सामना कर रही है। इससे आगे प्रदेश सरकार के समक्ष 4 साल बाद उस समय बहुत बड़ा आर्थिक संकट खड़ा होगा जब जी.एस.टी. के कारण होने वाली क्षतिपूर्ति के संबंध में केन्द्र सरकार की गारंटी समाप्त होनी है। 

छोटे और मंझोले व्यापारी तथा आम नागरिक की ऐेसी दुर्दशा देखकर मन उदास हो जाता है। आज इतनी तरह के टैक्स होने के बावजूद लोगों को न तो स्वास्थ्य सुविधाएं, न शैक्षणिक सुविधाएं, न सुरक्षा और न ही 24 घंटे निरंतर बिजली उपलब्ध होती है। वाहनों पर 40-50 प्रतिशत से भी अधिक टैक्स लगाने के बावजूद प्रत्येक कार वाले को प्रति किलोमीटर एक रुपया टोल टैक्स देना पड़ता है। पैट्रोल-डीजल पर ही  एक रुपए प्रति लीटर अलग से टैक्स लगाकर क्यों नहीं टैक्स बैरियरों से छुटकारा दिलाया जाता? आज हमारे देश का व्यापारिक ढांचा बुरी तरह मुसीबतों में घिर चुका है। बहुत से अर्थशास्त्रियों और विद्वानों ने इन दिनों में नए टैक्स ढांचे के विषय पर अपनी-अपनी राय दी है। 

जरूरत इस बात की है कि वित्त मंत्री जिद छोड़कर जी.एस.टी. के सरलीकरण की ओर ध्यान दें। फिलहाल जो बातें सबसे अधिक तकलीफ दे रही हैं उन्हें तुरंत हल किया जाए। एच.एस.एन. कोड अभी अनिवार्य न किए जाएं क्योंकि हजारों-लाखों आइटमों में से अच्छे-भले व्यक्ति को भी एच.एस.एन. कोड ढूंढने पर नहीं मिल रहा। 1.50 करोड़ रुपए की सीमा तक किसी कारोबार के लिए एच.एस.एन. कोड जरूरी नहीं-केवल इस आदेश से ही काम नहीं चलेगा। मान लें कोई व्यापारी 1.50 करोड़ से कम कमाई करता है वह छोटे टैम्पो में माल लादकर बिना एच.एस.एन. कोड के भेज रहा है और आगे से सेल टैक्स अधिकारी इस माल को रोक लेते हैं। ऐसी स्थिति में टैक्स विभाग को कैसे पता चलेगा कि इस व्यापारी का टर्नओवर ही 1.50 करोड़ रुपए से कम है?-रतन लाल अग्रवाल

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