जी.एस.टी. : सरकार को जनता से माफी मांगनी चाहिए
punjabkesari.in Sunday, Sep 14, 2025 - 04:39 AM (IST)

आखिरकार, केंद्र सरकार को सद्बुद्धि आ ही गई। 3 सितंबर, 2025 को सरकार ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर जी.एस.टी. दरों को तर्कसंगत और कम कर दिया। कर संरचना अब उस अच्छे और सरल कर के करीब है, जिसकी वकालत पिछले 8 वर्षों से कई राजनीतिक दल, व्यवसायी, संस्थान और व्यक्ति (जिनमें मैं भी शामिल हूं) करते रहे हैं। जब अगस्त 2016 में संसद में संविधान (122वां संशोधन) विधेयक पर बहस हुई थी, तब मैंने राज्यसभा में भाषण दिया था। प्रस्तुत हैं कुछ अंश :
सुसंगत रुख
‘‘मुझे खुशी है कि वित्त मंत्री ने स्वीकार किया है कि जी.एस.टी. लागू करने की सरकार की मंशा की पहली आधिकारिक घोषणा यू.पी.ए. सरकार ने की थी। 28 फरवरी, 2005 को बजट भाषण के दौरान लोकसभा में इसकी घोषणा की गई थी।’’
‘‘महोदय, चार प्रमुख मुद्दे हैं...
‘‘अब मैं विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण भाग पर आता हूं... यह कर की दर के बारे में है। मैं अभी मुख्य आर्थिक सलाहकार की रिपोर्ट के कुछ अंश पढ़ूंगा... कृपया याद रखें कि हम एक अप्रत्यक्ष कर पर विचार कर रहे हैं। अप्रत्यक्ष कर, परिभाषा के अनुसार, एक प्रतिगामी कर है। कोई भी अप्रत्यक्ष कर अमीर और गरीब दोनों पर समान रूप से पड़ता है... मुख्य आर्थिक सलाहकार की रिपोर्ट कहती है- ‘उच्च आय वाले देशों में, औसत जी.एस.टी. दर 16.8 प्रतिशत है। भारत जैसी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में, औसत 14.1 प्रतिशत है।’ इस प्रकार, 190 से अधिक देशों में किसी न किसी रूप में जी.एस.टी. लागू है। यह 14.1 प्रतिशत से 16.8 प्रतिशत के बीच है...
‘‘हमें करों को कम रखना होगा। साथ ही, हमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मौजूदा राजस्व की रक्षा करनी होगी। ... हम इसे ‘राजस्व तटस्थ दर’ (आर.एन.आर.) करते हैं। ...
‘‘सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों सहित विशेषज्ञों के साथ मिलकर 15 प्रतिशत से 15.5 प्रतिशत के आर.एन.आर. पर पहुंच कर सुझाव दिया कि मानक दर 18 प्रतिशत होनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने 18 प्रतिशत हवा से नहीं निकाला, यह 18 प्रतिशत आपकी रिपोर्ट से निकला है। ...
‘‘... किसी को तो जनता के लिए आवाज उठानी ही होगी। जनता के नाम पर, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस दर को आपके मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा अनुशंसित दर पर ही रखें, अर्थात मानक दर 18 प्रतिशत... रिपोर्ट के पैराग्राफ 29, 30, 52 और 53 पढि़ए। इनमें स्पष्ट रूप से तर्क दिया गया है...
18 प्रतिशत की मानक दर केंद्र और राज्यों के राजस्व की रक्षा करेगी, कुशल होगी, मुद्रास्फीति-रोधी होगी, कर चोरी से बचेगी और भारत के लोगों को स्वीकार्य होगी... अगर आप वस्तुओं और सेवाओं पर 24 प्रतिशत या 26 प्रतिशत कर लगाने वाले हैं, तो जी.एस.टी. विधेयक क्यों लाया जाए? ...
‘‘आखिरकार, आपको कर विधेयक में एक दर डालनी ही होगी। मैं अपनी पार्टी की ओर से जोरदार और स्पष्ट रूप से मांग करता हूं कि जी.एस.टी. की मानक दर, जो अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं, यानी 70 प्रतिशत से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होती है, 18 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और निचली दर और अवगुण दर के लिए उस 18 प्रतिशत पर काम किया जा सकता है।
शोषण के 8 साल
मैंने 2016 में भी यही बात कही थी और आज भी कह रहा हूं। मुझे खुशी है कि सरकार इस विचार पर सहमत हो गई है कि दरों को युक्तिसंगत और कम किया जाना चाहिए। हालांकि, शुरुआत में सरकार का तर्क था कि 18 प्रतिशत की सीमा से राजस्व का भारी नुकसान होगा, खासकर राज्य सरकारों को। यह एक बड़ी समस्या थी। आज, दो स्लैब दरें 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत हैं! केंद्र के पास कर राजस्व बढ़ाने के कई तरीके हैं; अगर राज्य सरकारों को राजस्व का नुकसान होता है, तो सही यही होगा कि राज्यों को मुआवजा दिया जाए।
पिछले 8 सालों में, सरकार ने उपभोक्ताओं का शोषण करने और उनसे आखिरी पैसा ऐंठने के लिए कई जी.एस.टी. दरों का इस्तेमाल किया है। पहले भाग-वर्ष (जुलाई 2017 से मार्च 2018 तक) में सरकार ने लगभग 11 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए। 2024-25 में, इसने लगभग 22 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए।
उपभोक्ताओं द्वारा अपनी मेहनत से कमाया गया हर पैसा सरकार ने जी.एस.टी. के माध्यम से चूस लिया। इसे सही मायने में और हास्यात्मक रूप से, गब्बर सिंह टैक्स कहा गया। कम खपत और बढ़ते घरेलू कर्ज के कारणों में से एक उच्च जी.एस.टी. दरें थीं। यह प्राथमिक अर्थशास्त्र है कि करों में कमी से खपत बढ़ेगी। यदि टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, मक्खन, शिशु नैपकिन, पैंसिल, नोटबुक, ट्रैक्टर, सिं्प्रकलर आदि पर 5 प्रतिशत जी.एस.टी. आज अच्छा है, तो पिछले 8 वर्षों में यह बुरा क्यों था? लोगों को 8 वर्षों तक अत्यधिक कर क्यों चुकाने पड़े?
इसका अंत नहीं
दरों में कमी केवल शुरुआत है। अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है। सरकार को चाहिए कि :
- राज्यों, उत्पादकों और उपभोक्ताओं को एक ही जी.एस.टी. दर (जरूरत पडऩे पर और छूट के साथ) के लिए तैयार करे;
- इस अस्पष्ट बात को त्याग दे कि अब अधिनियमों और नियमों की धाराओं के लिए पारितय उन्हें सरल भाषा में पुन: लिखें;
- सरल फॉर्म और रिटर्न निर्धारित करें और फाइङ्क्षलग की आवृत्ति में भारी कमी करें;
- कानून के अनुपालन को सरल बनाएं : किसी छोटे व्यापारी या दुकानदार को चार्टर्ड अकाऊंटैंट की सेवाओं की आवश्यकता
नहीं होनी चाहिए;
- जी.एस.टी. कानूनों को गैर-अपराधीकरण करें : ये वाणिज्य से संबंधित नागरिक कानून हैं और किसी भी चीज के उल्लंघन पर उचित मौद्रिक दंड लगाया जाना चाहिए; और
- कर वसूलने वालों को यह समझाएं कि उत्पादक और व्यापारी अर्थव्यवस्था के केंद्र हैं और वे कर वसूलने वालों के लिए मारे जाने वाले दुश्मन नहीं हैं।
भाजपा के लिए जश्न मनाने की कोई बात नहीं है। सरकार को जनता से माफी मांगनी चाहिए। और मुझे उम्मीद है कि बाकी सुधारों को लागू करने में उसे और 8 साल नहीं लगेंगे।-पी. चिदम्बरम