राज्यपालों को संवैधानिक दायरे में रहना चाहिए
punjabkesari.in Thursday, Aug 08, 2024 - 05:24 AM (IST)
राज्यपालों द्वारा निभाई जाने वाली सक्रिय भूमिका, खास तौर पर गैर-भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों में, कोई रहस्य नहीं है और विपक्ष के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इसकी काफी आलोचना की गई है। हालांकि, केंद्र सरकार इसके बारे में बेपरवाह दिखाई देती है और उसने फिर से राज्यपालों से सक्रिय भूमिका निभाने और जनता से जुडऩे के लिए कहा है। पिछले सप्ताह राज्यपालों के एक सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनसे गरीबों और वंचितों से जुडऩे और राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय की दिशा में काम करने के लिए कहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि राज्यपाल का पद एक ऐसी संस्था है जो लोगों के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वे बिल्कुल सही थे लेकिन समस्या तब होती है जब इनमें से कुछ राज्यपाल खुद को राजनेताओं की भूमिका में रखते हैं जो निर्वाचित राज्य सरकारों को धमकाने और परेशान करने के लिए काम करते हैं। उनमें से कुछ लोग राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को महीनों और सालों तक दबाए रखते हैं, अन्य लोग विशेष रूप से तब आपत्ति जताते हैं जब उनके अपने विशेषाधिकारों की जांच हो रही होती है और कुछ लोग सक्रिय रूप से राजनीतिक टोपी पहन कर परेशानी वाले स्थानों पर जाते हैं और यहां तक कि सरकार की आलोचना भी करते हैं।
पंजाब के पिछले राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित जैसे अपवाद हैं जो राज्य सरकार को बर्खास्त करने की धमकी देते थे क्योंकि वह उनके संदेशों का जवाब नहीं दे रही थी और यहां तक कि मुख्यमंत्री के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की धमकी भी देते रहे। कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल ‘आग से खेल रहे हैं’। पुरोहित ने एक बार स्वीकार किया था कि वे जीवन भर राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी इसे छोड़ नहीं सकते। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में संबंधित राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच इसी तरह का टकराव हो रहा है।
केरल सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास 7 विधेयक अटके हुए हैं, जिनमें से दो 23 महीने से लंबित हैं और 15 महीने से अन्य 2 लंबित हैं। कुछ महीने पहले, उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य के वित्त मंत्री को अपने मंत्रिमंडल से हटाने के लिए कहा था क्योंकि उन्होंने राज्यपाल के ‘सुख का आनंद लेना बंद कर दिया’ था! मुख्यमंत्री ने निश्चित रूप से उनकी सलाह को अस्वीकार कर दिया था। पश्चिम बंगाल में जून 2022 से राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के पास 8 विधेयक लंबित हैं। देश ने तमिलनाडु में तमाशा देखा है, जहां राज्यपाल आर.एन. रवि ने जानबूझकर राज्य विधानसभा में अपने भाषण के कुछ अंश नहीं पढ़े और सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा विधानसभा में उनका मजाक उड़ाया गया।
दूसरी ओर, भाजपा शासित मणिपुर में, जहां पिछले कई महीनों से कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब है और जहां बर्खास्तगी का मामला बनता है, राज्य सरकार, राज्यपाल और केंद्र सरकार ने आंखें मूंद ली हैं। राज्यपाल का पद एक गरिमापूर्ण पद है और पद पर आसीन व्यक्ति को राज्य का प्रथम नागरिक माना जाता है, जिसकी भूमिका काफी हद तक औपचारिक होती है। संविधान ने राज्यपालों को कुछ शक्तियां प्रदान की हैं, लेकिन व्यापक सिद्धांत यह है कि उन्हें मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए। राज्यपालों को विरोधी भूमिका नहीं निभानी चाहिए और उन्हें संविधान के तहत उनके लिए परिकल्पित भूमिका तक ही सीमित रहना चाहिए।
दुर्भाग्य से न तो राज्यपालों की हाल की नियुक्तियां और न ही राज्यपालों के सम्मेलन से निकलने वाले संकेतों ने विश्वास जगाया है। शायद सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की भावना के अनुसार राज्यपालों के लिए सीमाएं निर्धारित करनी होंगी।-विपिन पब्बी