‘नदियों’ को जोड़ने का कोई बड़ा कदम उठाए सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Jun 24, 2020 - 04:15 AM (IST)

भारत के दानिशमंद पूर्व महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने एक बार कहा था कि भारत का वास्तविक वित्तमंत्री मानसून है। समय पर बारिश होने पर उत्पादन में बढ़ौतरी होती है, किसान मालामाल होता है, खेत मजदूर की अच्छी रोजी-रोटी चलती है।

देश के अन्न भंडारण खाद्यान्नों से भरपूर हो जाते है। राष्ट्र की जी.डी.पी. बढ़ती है, हरेक क्षेत्र में मांग बढ़ती है और मांग से आपूर्ति को पूरा करने के लिए उद्योगों को प्रफुल्लित होने का मौका मिलता है। जिससे लाखों मजदूरों को जीवन मिलता है। हकीकत में अन्न की आत्मनिर्भरता से राष्ट्र अपने आप ही सुरक्षित हो जाता है। भारत में आज भी 45 प्रतिशत खेती नहरी पानी और जमीनी पानी से होती है। जबकि 55 प्रतिशत वर्षा पर निर्भर है। 

भारत एक अति सौभाग्यशाली देश है, जहां प्रकृति ने 400 से अधिक नदियां उपलब्ध करवाई हैं। जिनकी कुल लंबाई 2 लाख किलोमीटर है, जिससे समूची धरती का 5 बार चक्कर लगाया जा सकता है। यदि इन नदियों का सारा पानी भारत में एकत्रित किया जाए, तो समूचे देश में दो-दो फुट पानी खड़ा हो सकता है। परंतु इन नदियों का आधे से ज्यादा पानी बिना इस्तेमाल किए समुद्र में चला जाता है। इन्हीं नदियों के किनारे बसे हुए करोड़ों लोगों को ही नहीं बल्कि दूर-दूर बसे हुए एक अरब 40 करोड़ लोगों को पानी मुहैया होता है। यह नदियां हमारी गौरवमयी संस्कृति की महान विरासत हैं। जिन्होंने हमारी खूबसूरत संस्कृति को प्रफुल्लित किया है और भविष्य में भी इसे चार चांद लगाती रहेंगी। 

भारत प्राचीनकाल से ही कृषि प्रधान देश है। पानी की उपलब्धता, जमीन का उपजाऊपन और लाखों किलोमीटर में फैले जंगल और हरियाली के साथ आसानी से जीवन बसर करने के साधन उपलब्ध होने पर यह विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना रहा है। पिछले कुछ महीनों से सारे विश्व में कोरोना महामारी ने सबको परेशान कर रखा है और भारत पर भी उसका बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है। जल ही जीवन का आधार है। अमेरिका और कनाडा में समूचे विश्व का 65 प्रतिशत शुद्ध जल उपलब्ध है, जबकि भारत में केवल 1.2 प्रतिशत ही साफ जल उपलब्ध है। परंतु पिछले कुछ वर्षों से हमने जमीनी जल का बड़ी बुरी तरह दोहन किया है और आज भी करते जा रहे हैं। जमीनी पानी जो कभी 25 से 30 फुट पर आसानी से मिल सकता था, आज 130 से 140 फुट तक नीचे चला गया है। 

एक सर्वे के अनुसार प्रति वर्ष भारत में आधा मीटर पानी नीचे जा रहा है। यदि इस विकराल रूप धारण करती हुई पानी की समस्या की तरफ ध्यान न दिया तो वह दिन दूर नहीं, जब खेती के लिए पानी मिलना ही मुश्किल नहीं होगा, बल्कि पीने के पानी के लिए भी लोग तरसेंगे। जैसा पिछले सालों से कई देशों में हुआ है और भारत में भी तमिलनाडु के अंदर पानी की भारी कमी हो गई जिसे पूरा करने के लिए दूसरे प्रदेशों से गाडिय़ों के जरिए पानी मुहैया किया गया। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि न तो समूचे देश में जल संरक्षण करने की कोई सकारात्मक और कारआमद योजना है और न ही नदियों को जोड़ कर सूखाग्रस्त इलाकों में पानी मुहैया करने के लिए सरकार ने अभी तक कोई बड़ा कदम उठाया है। 

पंडित नेहरू के युग में 1962 में देश की नदियों को जोडऩे के लिए परियोजनाएं तैयार की गई थीं, ताकि सरप्लस पानी को दूसरे प्रदेशों में प्रयोग किया जा सके और समुद्र में जाने वाले पानी को रोका जा सके। डैम बनाए जाएं और उसमें से नदियां निकाल कर कृषि, औद्योगिकक्षेत्र और पीने के पानी का इंतजाम भी किया जा सके। परंतु यह सभी योजनाएं किसी न किसी कारण धरी की धरी रह गईं।

भारत के कई हिस्सों में खूब बारिश होती है, परंतु वहां पर भी पानी को एकत्रित करने के लिए रेनहार्वैसिं्टग की कोई योजना नहीं बनाई गई है। पानी बिना इस्तेमाल किए नदियों, नालों में बहता हुआ समुद्र में चला जाता है। कई देश बारिश के पानी को जगह-जगह एकत्रित करके  अपने साल भर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। भारत में 1947 से पहले 24 लाख के करीब तालाब, छप्पड़, पोखरियां थीं, जो पानी से भरी रहती थीं और गांव के लोगों की पानी की आवश्यकताओं को पूरा करती थीं। 

मध्यप्रदेश के भोपाल में इतना बड़ा ताल था कि जहां किसी जमाने में शेर, हाथी और अन्य पशु पानी पीने के लिए आते थे और एक बहुत खूबसूरत कहावत है। तालों में भोपाल ताल, बाकी सब तलियां। रानियों में रानी पदमनी, बाकी सब गधिईयां। अब इस खूबसूरत तालाब में भी पानी की कमी महसूस हो रही है। भारत के गांव में रहने वालों की हर क्षेत्र में भूमिका बड़ी ही महत्वपूर्ण है। चाहे उद्योगों में कामगारों के रूप में,  सेवा के क्षेत्र में, रियल एस्टेट में तथा अन्य छोटे-छोटे कामों में उनका योगदान अति प्रशंसनीय है। देश की फौज में भर्ती होने वाले भी 80 से 90 प्रतिशत नौजवान गांव से संबंध रखते हैं। इसलिए यह अति आवश्यक है कि गांव में हर तरह की समस्या का समाधान किया जाए। 

कमियों को पूरा किया जाए, ताकि स्वस्थ लोग ही स्वस्थ समाज का निर्माण करने में अपनी भूमिका निभा सकें। पानी केवल खेतीबाड़ी के लिए ही नहीं बल्कि उद्योगों के लिए भी इसकी बड़ी आवश्यकता है और जल स्त्रोतों के लबालब होने से पर्यावरण भी सुरक्षित रह सकता है। जो समूचे जीवन पर बड़ा गहरा असर डालता है। सभी लोग इसराईल की ड्रिप प्रणाली की प्रशंसा करते हैं। क्योंकि इससे कम पानी के इस्तेमाल से भरपूर फसल हासिल की जा सकती है। बहुत सारे प्रदेशों और केंद्र के कई विशेषज्ञों को इसराईल जाने का मौका मिला। देश में आकर वो सभी इस प्रणाली की भरपूर प्रशंसा करते हैं परंतु अभी तक किसी भी प्रदेश में इस प्रणाली को अमलीजामा नहीं पहनाया गया। 

भारत खुशकिस्मत देश है, जहां की नदियों में 12 महीने पानी रहता है। मगर इन नदियों का अधिकतर पानी बिना इस्तेमाल किए समुद्र में चला जाता है। इन नदियों को अगर आपस में जोड़ दिया जाए तो देश में किसी भी तरह पानी की कमी नहीं रहेगी खास करके जिन प्रदेशों में सूखा पड़ता है। उन प्रदेशों में भी भरपूर खेती की जा सकेगी। केंद्र सरकार को समूचे देश में रेनहार्वैसिं्टग के लिए कानून के साथ-साथ लोगों में जागृति पैदा करनी चाहिए ताकि धरती से कम होते हुए पानी को बचाया जा सके और जल से ही जीवन को सुरक्षित रखा जा सकता है।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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