पैट्रोलियम पदार्थों में लोगों को राहत दे सरकार

punjabkesari.in Sunday, Sep 17, 2023 - 04:42 AM (IST)

राजनीतिक कुशलता कहें, लोगों से सीधे संवाद बनाने की भावुकता कहें या निरा जुबान फिसलना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सार्वजनिक मंचों से ऐसी बात बोल जाते हैं जो कभी-कभी उनको ही उलटी पड़ जाती है। अपना पहला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार करते हुए उन्होंने पैट्रोलियम पदार्थों का दाम कम होने की चर्चा के संदर्भ में खुद को भाग्यशाली और शासक के साथ प्रजा का भाग्य चलने वाली लोकोक्ति तो सुनाई पर अपने ही पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह को अभागा भी कह दिया। 

हम जानते हैं कि मनमोहन राज के बाद के समय में पैट्रोलियम पदार्थों का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य सौ सवा सौ डालर प्रति बैरल के बीच ही झूलता रहा और मनमोहन सरकार को तेल की कीमतों को संभालने में काफी द्रविड़ प्राणायाम करना पड़ा। मोदी  के आते ही कीमतें गिरने लगीं और एक बार तो ऋणात्मक हो गई थीं। जब वे यह भाषण दे रहे थे तब संभवत: कीमतें 25 डालर के आसपास थीं और इसे संयोग और खुशनसीबी से जोडऩे की कोई खास वजह नहीं है। कीमतों के उतार-चढ़ाव की पचासों ठोस वजहें होती हैं। पर अब दूसरे कार्यकाल के बाद होने वाले आम चुनाव का सामना करते समय मोदी को अपना वह भाषण याद हो न हो (वैसे वे कोई बात आसानी से भूलते नहीं) पत्रकारों को वह भाषण याद आ रहा है। 

इसकी वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में फिर आग लगना है। कीमतें 90 डालर प्रति बैरल को पार कर चुकी हैं और उनका रुख पिछले  महीनों से ऊपर की तरफ ही है। इसकी वजह कोविड के बाद उद्योग-धंधों का कामकाज पटरी पर लौटना और तेल की मांग बढऩा है और मोदी की और परेशानी की वजह इस बीच रुपए की कीमत का रिकार्ड नीचे हो जाना भी है। मनमोहन राज की तुलना में तो डालर आसमान पर पहुंच गया था और अगर उस आधार पर गिनती की जाए तो मामला तब से ऊपर कीमत का बन चुका है। लेकिन 2 बातों में स्थिति अलग है। एक तो इस बीच तेल कंपनियां कमाकर मोटी हो चुकी हैं। यह अलग बात है कि अब उनका लाभ खत्म-सा है सो उन पर दबाव डालकर सरकार कीमत नियंत्रित करने की नहीं सोच सकती। 

सरकार ने भी इन 9 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार की गिरावट का पूरा लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं जाने दिया और उत्पाद शुल्क से लेकर दूसरे छोटे-बड़े करों के सहारे हर साल लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का राजस्व बढ़ा लिया। अब वह अपने और राज्यों के कर का एक हिस्सा कम करके आम ग्राहकों को पैट्रोलियम की ज्वलनशीलता से कुछ राहत दे सकती है पर इस उपाय की भी सीमा है। यह सीमा रसोई गैस के मामले में तुरंत दिखने भी लगी है जहां प्रति सिलैंडर 200 रुपए की कटौती (जिसे कई सारे लोग आगामी चुनावों से जोड़कर देखते हैं पर मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसे रक्षाबंधन का तोहफा बताया) तो हो गई लेकिन महीनों से रुकी पैट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई कटौती या बदलाव नहीं हुआ है। दरअसल अब कीमतें गिरने वाला दौर तो खत्म हो गया है। अगर सरकार को कीमतें नीचे लानी हैं तो उसे अपने खजाने में रोज करों में कटौती करनी होगी और पहले से तंग हाथ को और कसना पड़ेगा। 

चुनाव के वक्त ऐसा करना भी मुश्किल है और गैस के बाद पैट्रोल-डीजल को अछूता छोडऩा भी बल्कि लोग मानते हैं कि सरकार को तेल के साथ मिलने वाले अतिरिक्त कर राजस्व का ऐसा चस्का लगा है कि आने वाले काफी समय तक उसमें कटौती मुश्किल है और अगर ऐसा किया भी गया तो मामूली कटौती ही संभव है। अगर केंद्र के हाथ बंधे हैं तो राज्य सरकारों के भी कोई खुले नहीं हैं और वे अपने कर कम करके राहत दें यह भी संभव नहीं लगता है। 

केंद्र के लिए राहत की एक बात तो रूसी तेल का आयात बढऩा है। हमको रूस का तेल जिस कीमत पर मिल रहा था और अब जिस कीमत पर मिल रहा है उसमें फर्क है, लेकिन वह अब भी सस्ता है। शुरू में भारत के आयात का पश्चिम के देशों ने शोर मचाया लेकिन बाद में पता चला कि अमरीका सहित सभी यही धंधा कर रहे हैं और रूस अपने तेल भंडार खाली करके लड़ाई में पैसे झोंके जा रहा है। पर भारत के लिए कुछ अतिरिक्त लाभ इस तरह भी हो गया कि भारत ने रूसी तेल को परिशोधित करके उसका कुछ हिस्सा बाजार दर पर निर्यात भी कर दिया। पर कीमतें बढऩे का असर सरकार पिछले कुछ समय से महसूस कर रही है। पैट्रोल से मिलने वाला कर राजस्व अब 2020-21 और 2021-22 के करीब 4 लाख करोड़ से गिरकर सवा 3 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। यह गिरावट लगभग 20 फीसदी है जबकि उपभोक्ताओं की नाराजगी भी बनी ही हुई है। 

तत्काल तो 5 राज्यों के चुनाव हैं लेकिन लोकसभा चुनाव के बादल भी आसमान पर दिखने लगे हैं और तेल के कारोबार पर नजर रखने वाले सभी जानकारों का मानना है कि हाल फिलहाल कीमतों के टूटने के आसार नहीं हैं। सैंटर फार मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी द्वारा जुटाए आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले नवंबर से तेल की कीमतें ऊपर ही ऊपर जा रही हैं। हमारा उपभोग भी बढ़ता जा रहा है और इन दोनों के निकट भविष्य अर्थात मई 2024 तक बहुत नीचे आने के लक्षण नहीं हैं। इसलिए मोदी सरकार को सावधान करना बनता है कि सावधान पैट्रोलियम ज्वलनशील पदार्थ है। हैंडल विद केयर।-अरविन्द मोहन      
 


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