सामने आया सरकार का दोहरा रवैया

Sunday, Mar 31, 2019 - 04:08 AM (IST)

मैं भारत को एक ऐसे लोकतंत्र के रूप में देखता हूं जहां लोग अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं बशर्ते कि यह कानून के दायरे में हो। खेद की बात है कि जब मोदी सरकार का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है तो यह इस बात से असहमत दिख रही है। पिछले सप्ताह इस सरकार ने पाकिस्तान के नैशनल डे पर कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बुलाए गए भारतीय नागरिकों को रोकने के भरपूर प्रयास किए। यह न केवल गलत था बल्कि अंतर्राष्ट्रीय तौर पर शॄमदा करने वाला भी था। 

कार्यक्रम में भाग लेना गैर-कानूनी नहीं
पहली बात, पाकिस्तान दिवस कार्यक्रम में भाग लेना कानून के खिलाफ नहीं है। यह नैतिक रूप से भी गलत नहीं है। सरकार ने जहां एक तरफ इसकी अनुमति नहीं दी, वहीं प्रधानमंत्री अपने पाकिस्तानी समकक्ष को बधाई संदेश भेजते हैं। यदि उनके साथी देशवासी उच्चायुक्त का न्यौता स्वीकार करके वही करने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें कार्यक्रम में भाग लेने का पूरा अधिकार है। 

तो सरकार क्या सोच रही थी जब इसने दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि पाकिस्तानी उच्चायोग में जाने से पहले प्रत्येक भारतीय मेहमान को रोक कर उसे सवाल पूछे जाएं। उनसे उनके नाम और फोन नम्बर के अलावा यह भी पूछा गया कि वे कार्यक्रम में भाग क्यों लेना चाहते हैं। जिन लोगों ने उत्तर देने से मना कर दिया उन्हें आगे जाने की अनुमति नहीं दी गई। इस गैर कानूनी दीवार के पीछे क्या तर्क था। एक पुलिस अधिकारी ने एक समाचार एजैंसी को बताया: ‘सरकार ने इस आयोजन का बहिष्कार किया था... ऐसे हालात में जो लोग वहां उपस्थित थे उनके विवरण नोट करना तथा उनकी उपस्थिति का कारण सुनिश्चित करना जरूरी था।’ 

भारतीय नागरिकों और हमारे लोकतंत्र के लिए यह किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हमारा देश पुलिस सर्विलांस स्टेट नहीं है। हमें सरकार के नक्शेकदम पर चलने की जरूरत नहीं है, हम उसकी सलाह के खिलाफ काम करने के लिए स्वतंत्र हैं और हमें अधिकारियों को अपने निर्णय को बताने की भी जरूरत नहीं है। ऐसा करना हमारे अधिकारों को बाधित करना है। आखिरकार, मोदी को हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए चुना गया था न कि उन्हें बाधित करने के लिए। 

हालांकि, बात सिर्फ इतनी नहीं है, वाजपेयी सरकार ने कारगिल युद्ध के बाद भी इस तरह का व्यवहार नहीं किया था जोकि पुलवामा आतंकी हमले से काफी बुरा था और यदि सरकार यह चाहती है कि भारतीय नागरिक पाकिस्तान के कार्यक्रम में भाग न लें तो फिर प्रधानमंत्री ने इमरान खान को शुभकामना संदेश क्यों भेजा? यह भी उल्लेखनीय है कि जब तक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इस बारे में नहीं बताया तब तक इस पत्र के बारे में समाचार भी हमसे छिपाया गया। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या सरकार के पास अपने लिए अलग नीति है और देश के नागरिकों के लिए अलग।

एक और बात। सरकार उच्चायोग द्वारा हुर्रियत को बुलाए जाने से परेशान थी। हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब ऐसा हुआ हो। खास बात यह है कि वाजपेयी और अडवानी भी उनके साथ बात करते थे और फिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम हुर्रियत वालों को अपना नागरिक समझते हैं। हम पाकिस्तानियों को यह कैसे कह सकते हैं कि वे कुछ भारतीयों को बुला सकते हैं और कुछ को नहीं। 

विरोध जताना जरूरी 
लेकिन मैं इसे यहीं नहीं छोड़ सकता। मुझे एक और बात कहनी है। यदि किसी अन्य लोकतांत्रिक देश में ऐसा हुआ होता तो वहां के नागरिकों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की होती। दुख की बात है कि हम ऐसी बातों पर वैसा विरोध नहीं करते जैसा कि होना चाहिए। यदि हमारे अधिकारों का उल्लंघन होने पर हम उसका जोरदार विरोध नहीं करेंगे तो सरकार ऐसा करना जारी रखेगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम मोदी और उनके मंत्रिमंडल को यह बता दें कि यह स्वीकार्य नहीं था और ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए। ऐसी स्थिति में जब 10 दिन में चुनाव होने वाले हैं, यह एक गम्भीर संदेश है।-करण थापर

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