अच्छा समाचार कभी ‘समाचार’ नहीं होता

Sunday, Jul 15, 2018 - 03:30 AM (IST)

1980 के दशक में, जब मैंने पत्रकारिता शुरू की, तब एक साधारण मगर ध्यान आकर्षित करने वाला प्रश्र था जो हममें से अधिकतर को जकड़ लेता था कि ‘नियमित रूप से प्रतिदिन घटने वाली लाखों घटनाओं को समाचार बनने के काबिल क्यों नहीं समझा जाता?’ सम्भवत: इस प्रश्र पर सबसे अधिक लोकप्रिय अभिव्यक्ति प्रिंस चाल्र्स की थी। उन्होंने कहा कि लाखों विमान उड़ान भरते हैं तथा सुरक्षित जमीन पर लैंड करते हैं, मगर कोई भी उनके बारे में एक शब्द भी नहीं लिखता। फिर यदि किसी मौके पर कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो यह पहले पृष्ठ का समाचार बन जाता है। 

उत्तर निश्चित तौर पर आंखें मूंद कर स्वाभाविक है। पहला, जो कुछ भी नियमित रूप से लगातार हो रहा है वह सामान्य है तथा उसे महत्वहीन मान लिया जाता है। उस पर ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की जाती। दूसरी ओर एक विमान हादसा महज अप्रत्याशित नहीं होता मगर यह असामान्य है। इसी कारण यह अन्य से अलग दिखाई देता है। सबसे महत्वपूर्ण, लोग अपने रोजमर्रा के कामों पर खुशी-खुशी और सफलतापूर्वक जाते हैं, यह सामान्य है। एक भीषण विमान दुर्घटना में मरना दुखदायी तथा दर्दनाक होता है। लोग जानना चाहते हैं कि क्या हुआ। इसका ब्यौरा हालांकि घिनौना होता है मगर यह हमारी उत्सुकता को और बढ़ाता है। यह दूसरा कारण है जिससे यह समाचार के काबिल बनता है। 

इसी कारण से यह लोकोक्ति बनी थी कि ‘अच्छा समाचार कभी समाचार नहीं होता, बुरा समाचार एक सुर्खी (हैडलाइन) होता है।’ हालांकि इस सप्ताह थाईलैंड के सुदूर उत्तर में थाम लुआंग गुफा ने महसूस करवाया जैसे उसने इस तर्क या लोकोक्ति को पलट दिया है। धीरे-धीरे मगर सहजतापूर्वक 12 किशोरों तथा उनके कोच का सफल बचाव, जो एक अच्छी कहानी थी, ने मुझे बी.बी.सी. तथा सी.एन.एन. से चिपकाए रखा, जिन्होंने बदले में मुझे कई घंटों तक शानदार कवरेज उपलब्ध करवाई। 

अब मैं भावनाओं में नहीं बहना चाहूंगा। शुरू में जो कुछ हुआ वह वास्तव में भयावह था-13 युवा व्यक्ति एक गुफा में फंस गए, जिनके आसपास पानी बढ़ रहा था और सम्भवत: उनके फंसने के बाद ही सबका ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ। ऐसा दिखाई देता था कि जैसे हमने उन्हें खो दिया है। दम घुटने अथवा डूबने से धीरे-धीरे होने वाली यातनापूर्ण मौत मगर फिर कहानी ने मोड़ लेना शुरू किया। कई दिनों की असफल खोज के बाद गोताखोरों ने 13 व्यक्तियों को खोज निकाला। वे आसपास घूमते पानी के बीच मिट्टी के जरा एक ऊंचे टीले पर शरण लिए हुए थे मगर बच निकलने में असमर्थ थे। वे जीवित थे मगर फंसे हुए थे। 

इसके बाद उनके बचाव के लिए प्रयास तथा धीरे-धीरे उनकी सफलता की बढ़ती अच्छी खबर बाद में एक बड़ी स्टोरी बन गई। इसे कवर करने के लिए टैलीविजन रिपोर्टर्स की टीमें वहां एकत्र हो गईं। वे गुफा के बाहर खड़े होकर बचावकत्र्ताओं से बात करते रहे, एम्बुलैंसों की गिनती करते रहे और अस्पताल से रिपोॄटग के साथ-साथ विशेषज्ञों से भी घंटों चर्चा करते रहे कि क्या किया जाना चाहिए। जैसे ही एक-एक करके लड़के बाहर आने लगे, रिपोॄटग के बीच राहत तथा प्रशंसा के स्वर तेज होकर उभरने लगे। इस घटना में, अच्छा समाचार निश्चित तौर पर एक हैडलाइन वाला समाचार था। यह एक चौबीसों घंटे की व्यापक कवरेज थी। 

फिर भी इसके पीछे पत्रकारिता का एक अच्छा कारण था जिससे यह स्टोरी किसी भी हालत में न छोड़े जाने वाली बन गई। सफल बचाव न केवल असम्भव दिखाई देने वाली चीज का पूरा होना था मगर पूरी तरह से अविश्वसनीय भी था। पहले कभी भी इस तरह का प्रयास नहीं किया गया था। बहुत कम लोग सोचते थे कि यह सफल होगा। इसीलिए यह एक अच्छे समाचार से कहीं अधिक था। यह एक चमत्कार था। यदि ऐसा नियमित रूप से सामान्य होता तो इसकी कोई रिपोॄटग नहीं की जाती। 

अब मेरे पास उस प्रश्र का उत्तर है जो हमें 4 दशक पूर्व परेशान करता था। यह एक अच्छे या बुरे समाचार के बीच अंतर नहीं है जो किसी घटना को रिपोर्टिंग के काबिल बनाता है, बल्कि घटना की दुर्लभता है। जिस घटना का कोई परिणाम निकलने की आशा न हो या अधिक भयावह हो, उतना ही हम अधिक उसके बारे में जानना चाहते हैं। असाधारण तथा विलक्षण सबसे अलग दिखाई देते हैं। मगर साधारण तथा सामान्य नहीं। चार पत्तों वाला तिपतिया (एक तरह का घास) समाचार है, मगर एक खूबसूरत गुलाब नहीं।-करण थापर

Pardeep

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