दिल्ली में जी.के. की सुखबीर बादल को ‘चुनौती’

Thursday, Sep 19, 2019 - 02:29 AM (IST)

जैसी कि संभावना प्रकट की जा रही थी, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी और दिल्ली प्रदेश अकाली दल (बादल) के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. ने आखिर यह खुलासा कर ही दिया कि वह 2 अक्तूबर को अखंड पाठ की समाप्ति, अरदास और गुरु साहिब का हुक्मनामा हासिल करने के बाद अपनी पार्टी के नाम की घोषणा करेंगे।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी की सरगर्मियों का मुख्य केन्द्र सिख धर्म की मान्यताओं, परम्पराओं और मर्यादाओं का पालन और इनके पालन के प्रति सिख जगत को जागरूक करना होगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी सिखों के मूल हितों-अधिकारों की सुरक्षा निश्चित बनाए रखने के प्रति चेतन रहेगी। इस प्रकार जी.के. ने गठित की जा रही अपनी पार्टी की रूपरेखा का खुलासा ही नहीं किया, अपितु पार्टी को मजबूत आधार देने के लिए आम सिखों के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित करने का अभियान भी शुरू कर दिया। बताया जाता है कि उनके इस अभियान को सिखों का जो भरपूर समर्थन मिल रहा है, उससे वह बहुत ही उत्साहित हैं। 

बादल दल में हलचल
दूसरी ओर ये संकेत भी मिलने लगे हैं कि पार्टी के नाम की घोषणा किए बिना ही जी.के. को आम सिखों के मिल रहे सहयोग और समर्थन के समाचारों से दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता पर काबिज शिरोमणि अकाली दल (बादल) के मुखियों के पांवों के नीचे से जमीन खिसकने लगी है। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि जैसे जी.के. की ओर से अपनी पार्टी के नाम की घोषणा किए जाने के साथ ही गुरुद्वारा कमेटी के दल के सदस्यों का उसकी ओर पलायन शुरू हो जाएगा और फलस्वरूप गुरुद्वारा कमेटी पर उनके कब्जे की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी, जिसके चलते गुरुद्वारा कमेटी के पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी के सदस्यों का दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता उनके हाथ से निकल जाएगी। 

सदस्यों के जल्दी ही पाला बदल लेने का एक कारण तो यह माना जा रहा है कि सिरसा की ओर से उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा, जो जी.के. के अध्यक्षता काल में उन्हें मिलता था। इसके अलावा दूसरा कारण यह माना जाता है कि गुरुद्वारा कमेटी के पिछले आम चुनावों में बादल अकाली दल के समूचे नेतृत्व को किनारे कर अपने और अपने पिता संतोख सिंह के किए गए कार्यों के बूते ही जी.के. ने जीत हासिल की, चाहे उन्होंने दल के प्रति अपनी निष्ठा का सम्मान करते हुए यह जीत इस विश्वास के साथ दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की झोली में डाल दी थी कि दल के नेतृत्व की ओर से उनकी निष्ठा का सम्मान किया जाएगा परन्तु दल के नेतृत्व ने, उनकी निष्ठा का सम्मान करने के स्थान पर, उनके विरुद्ध कथित साजिश रच, उन्हें अपमानित कर गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष पद से ही नहीं हटाया, अपितु दल से भी बाहर कर दिया। सुखबीर ऐसा करते हुए यह भूल गए कि इसी जी.के. के सहारे ही वह पंजाब से उखड़े पांव दिल्ली में जमा पाने में सफल हुए हैं। संभवत: कथित ‘लिफाफा कल्चर’ की कमजोरी का शिकार हो वह अपने पांवों और दल की जड़ों पर अपने ही हाथों कुल्हाड़ी चलाने की गलती कर बैठे।

कमलनाथ पर शिकंजा
इन्हीं दिनों एक समाचार आया जिसमें बताया गया था कि सी.बी.आई. की ओर से नवम्बर 84 के सिख हत्याकांड से संबंधित जो मामले बंद कर दिए गए थे, उनकी पुन: जांच के लिए केन्द्रीय सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से संंबंधित मामलों सहित कुछ अन्य मामलों को फिर से खोले जाने पर अपनी मोहर लगा दी है। इस समाचार का स्वागत करते हुए एक ओर दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिन्दर सिंह सिरसा ने दावा किया कि अब तो कमलनाथ को जेल जाना ही होगा। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी यह मांग कर डाली है कि वह कमलनाथ को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटा दें ताकि वह अपने विरुद्ध होने वाली जांच को प्रभावित न कर सकें। 

दूसरी ओर गत पैंतीस वर्षों से नवम्बर-84 के पीड़ितों के केस लड़ते चले आने का दावा करने वाले एडवोकेट एच.एस. फूलका ने कहा है कि कमलनाथ के विरुद्ध मजबूत मामला बनता है क्योंकि उनके विरुद्ध ठोस सबूत मौजूद हैं। अपने इस कथन की पुष्टि में उन्होंने बताया कि एक तो पुलिस रिकार्ड के अनुसार एक नवम्बर 84 को गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब पर हुए हमले के दौरान कमलनाथ वहां मौजूद थे। दूसरा, 2 नवम्बर 1984 को अंग्रेजी के एक समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई थी। तीसरा इस समाचारपत्र के संवाददाता ने सन् 1985 में मिश्रा कमीशन और सन् 2003 में जस्टिस नानावती कमीशन के सामने दिए अपने बयान में इस बात की पुष्टि की थी। एडवोकेट फूलका ने बताया कि उस समय के दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के एक मैनेजर मुख्तयार सिंह ने भी जस्टिस नानावती कमीशन के सामने जो बयान दिया, उसके अनुसार भी एक नवम्बर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज पर हमला करने वाली भीड़ का नेतृत्व कमलनाथ ही कर रहे थे। 

एक दशक पहले भी
बताया गया है कि लगभग एक दशक पहले, सन् 2010 में जब एक सिख संस्था द्वारा अमरीका में नवम्बर 84 के सिख हत्याकांड में भागीदार होने के आरोप में कमलनाथ के विरुद्ध मामला दर्ज करवाए जाने का समाचार आया था तो उस समय भी एडवोकेट एच.एस. फूलका ने इन्हीं सबूतों का जिक्र करते हुए, इन्हें कमलनाथ के विरुद्ध ठोस सबूत करार दिया था। अब जबकि एक दशक बाद फिर से यह मामला चर्चा में आया है तो एडवोकेट फूलका उन्हीं सबूतों को उनके विरुद्ध ठोस करार दे रहे हैं तो यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि जब एक दशक पहले उनके पास कमलनाथ के विरुद्ध ठोस सबूत थे तो उन्होंने उसी समय कमलनाथ के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की? जबकि वह बीते पैंतीस वर्षों से नवम्बर-84 के पीड़ितों के मामलों की पैरवी करते चले आने का दावा करते आ रहे हैं। 

हैरानी की एक और बात
इसमें कोई शक नहीं कि हर न्यायप्रिय यही चाहता है कि सिख हत्याकांड के लिए जो कोई भी दोषी है, उसे उसके किए की सजा मिलनी ही चाहिए परन्तु इसके साथ ही यह सवाल भी उभर कर सामने आ जाता है कि बीते पैंतीस वर्षों से यह मुद्दा केवल उसी समय ही क्यों उभारा जाता है, जब लोकसभा और उन राज्यों में चुनाव होने की दस्तक सुनाई देने लगती है, जहां सिख बड़ी संख्या में बस रहे होते हैं। 

...और अंत में
इन्हीं दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक पोस्ट देखने को मिली, जिसमें सिखों को कड़े शब्दों में चेतावनी दी गई थी कि ‘सिखो! कोई यह जानने के लिए आपके गुरु ग्रंथ साहिब का अध्ययन नहीं करेगा कि आपके गुरु साहिब की शिक्षाएं क्या हैं? लोग तो आपके जीवन आचरण को देख कर ही अनुमान लगा लेंगे कि आपके गुरु साहिबान की शिक्षाएं क्या हैं क्योंकि शिष्य (सिख) का जीवन आचरण ही गुरु की शिक्षाओं का दर्पण होता है।’-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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