गिलगित-बाल्तिस्तान: पाकिस्तान के नापाक मंसूबे

punjabkesari.in Monday, Mar 20, 2017 - 11:05 PM (IST)

रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान अपने विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर गिलगित-बाल्तिस्तान को अपने 5वें प्रांत के रूप में घोषित करने की योजना बना रहा है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले  पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल राहील शरीफ ने कश्मीर को अपने देश की ‘शाहरग’ बताते हुए दावा किया था: ‘‘कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवादित क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।’’ 

प्रश्र पैदा होता है कि क्या गिलगित-बाल्तिस्तान कश्मीर का हिस्सा नहीं? इसका असली हकदार कौन है? यदि पाकिस्तान कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है तो फिर उसने चीन को वहां सैन्यअड्डे बनाने की अनुमति क्यों दी है? भारत ने पाकिस्तान के नापाक इरादों पर चिंता तो व्यक्त की है लेकिन उत्तरी कश्मीर के इस क्षेत्र के राजनीतिक महत्व के मद्देनजर गंभीर रुख अपनाने की सख्त जरूरत है। 

रणनीतिक महत्व: 
पाकिस्तान के उत्तर में स्थित उसके अवैध कब्जे वाले इस इलाके का क्षेत्रफल 28,000 वर्गमील है। इसमें गिलगित एजैंसी, लद्दाख वजारत का जिला बाल्तिस्तान और पहाड़ी रियासतों हुंजा एवं नगर को मिलाकर इसका नाम गिलगित-बाल्तिस्तान रखा गया। इसकी कुल आबादी 10 लाख है और इसे 7 जिलों में बांटा गया है। उत्तर में इसकी सीमा अफगानिस्तान और पूर्वोत्तर में चीन के स्वायत्तशासी प्रांत झिनजियांग से सटी हुई है। पश्चिम की ओर पाकिस्तान का उपद्रवग्रस्त क्षेत्र ‘फ्रंटियर’ स्थित है। दक्षिण में पाकिस्तान के कब्जे वाला कथित ‘आजाद कश्मीर’ है, जबकि दक्षिण पूर्व की सीमा भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत से लगती है।

गिलगित-बाल्तिस्तान रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है और पाकिस्तान की केन्द्रीय सरकार के सीधे प्रशासकीय नियंत्रण में है। हालांकि इसे स्वायत्तता प्रदान की गई है लेकिन  उस पर अनेक प्रकार के अंकुश लगे हुए हैं। क्षेत्र में खनिज पदार्थों का बहुत बड़ा भंडार है लेकिन उसका लाभ इस क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल रहा क्योंकि स्थानीय सरकार  को प्राकृतिक संसाधनों जल, खनिज पदार्थों इत्यादि के बारे में कोई भी कानून बनाने का अधिकार हासिल नहीं। 

असली हकदार कौन?:
गिलगित-बाल्तिस्तान दिल्ली सल्तनत का हिस्सा हुआ करता था। 16वीं शताब्दी में यह मुगलों के नियंत्रण में चला गया। 1757 में एक समझौते के तहत इस क्षेत्र का नियंत्रण पहले तो मुगलों से अहमद शाह दुर्रानी ने अपने हाथ में लिया और यह अफगानिस्तान का हिस्सा बन गया, उसके बाद 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों पर हल्ला बोलकर इस इलाके को उनसे छीन लिया। 

सन् 1846 के आसपास इस इलाके को जम्मू-कश्मीर की राजाशाही रियासत का दर्जा हासिल हुआ। जब 1935 में रूस ने कश्मीर के साथ सटे झिनजियांग क्षेत्र को जीत लिया तो गिलगित-बाल्तिस्तान  का इलाका बर्तानिया के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण समझा जाने लगा। इसी कारण ब्रिटिश सरकार ने यह इलाका जम्मू-कश्मीर के महाराजा  से 60 साल के लिए पट्टे पर ले लिया। यह पट्टा 1995 में समाप्त होना था। इस क्षेत्र की देखरेख के लिए ब्रिटेन ने ‘गिलगित स्काऊट्स’ का गठन किया जिसमें केवल अंग्रेज अफसर ही शामिल थे। प्रशासन चलाने के लिए कर्नल बीकन को नियुक्त किया गया। 

जुलाई 1947 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने समय से पूर्व ही अनुबंध भंग करके यह इलाका जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को सौंप दिया। 1 अगस्त, 1947 को डोगरा शासन ने रियासत की सेना के ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को गिलगित-बाल्तिस्तान का गवर्नर नियुक्त किया। शेष रियासतों की तरह महाराजा हरि सिंह ने भी अपने राज-पाट को भारत में शामिल करने के लिए समझौता कर लिया। इसकी पुष्टि तत्कालीन गवर्नर जनरल  लार्ड माऊंटबेटन ने 27 अक्तूबर 1947 को की थी। इस प्रकार गिलगित-बाल्तिस्तान समेत जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग बन गया। 

मेजर ब्राऊन जो देश विभाजन के समय गिलगित स्काऊट्स का नेतृत्व कर रहा था, ने बर्तानवी हुकूमत की गहरी साजिश को अंजाम देने के लिए 1 नवम्बर को  पाकिस्तानी सेना की सहायता से राजपलटा करके गवर्नर के आवास को घेर लिया। ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को मजबूर होकर आत्मसमर्पण करना पड़ा। सन् 1948  के अंत में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गोलीबंदी  घोषित की गई जिसके कारण गिलगित-बाल्तिस्तान पाकिस्तान के कब्जे में ही रह गया। 

समीक्षा और सुझाव:
नि:संदेह हम लम्बे समय से समूचे कश्मीर को भारत का अटूट अंग मानते आ रहे हैं और हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर क्षेत्र की ओर संकेत भी किया है। कश्मीर के इस उत्तरी क्षेत्र में 85 प्रतिशत लोग शिया मुसलमान हैं, जबकि पाकिस्तान में सुन्नी मुस्लिमों का बहुमत है। यहां के संघर्षशील यह महसूस करते हैं कि पाकिस्तान द्वारा उनके इलाके में पंजाबियों और पठानों को भेज कर इसके जनसांख्यिकी अनुपात को बिगाड़ा जा रहा है। उन्हें यह भी शिकायत है कि भारत ने उनके लिए कुछ नहीं किया। 

उल्लेखनीय है कि कश्मीर के कारगिल जिले में भी 78 प्रतिशत आबादी शिया मुस्लिमों की है। मोदी सरकार को चाहिए कि कारगिल-स्कार्दू मार्ग को चालू करवाकर दोनों इलाकों की शिया आबादी के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक  तथा व्यापारिक संबंध स्थापित किए जाएं। अब जबकि गिलानी जैसे अलगाववादी भी पाकिस्तान के प्रस्ताव के विरुद्ध हैं तो पाक के नापाक मंसूबों को रोकने का यही सही मौका है। 
 


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