साम्प्रदायिकता और आतंकवाद का जिन्न बोतल से बाहर

punjabkesari.in Friday, Mar 24, 2023 - 04:45 AM (IST)

पंजाब  की स्थिति निरंतर चिंताजनक बनती जा रही है। राज्य को 1980 के दौर में फिर से धकेलने की कोशिश की जा रही है जिससे आम लोगों में ङ्क्षचता और भी बढ़ गई है। चंडीगढ़- मोहाली की सीमा पर बंदी सिखों की रिहाई को लेकर लगाए गए कौमी इंसाफ मोर्चे की ओर से किए गए मार्च के दौरान जिस तरह कुछ शरारती तत्वों ने अलगाववाद तथा हिंसा का खुला प्रचार किया उससे गैर-जिम्मेदार तथा असामाजिक तत्वों के मंतव्य तथा सरकार की नालायकी स्पष्ट रूप में सामने आई है। 

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश कर अजनाला थाने में जिस तरह से  एक व्यक्ति की रिहाई के लिए गत दिनों हिंसा तथा उत्तेजना भरी कार्रवाइयां की गईं उससे यह बात समझ आ जाती है कि यह मुद्दा किसी व्यक्ति को रिहा करने से ज्यादा पंजाब की शांति को खराब कर खालिस्तान की मांग को फिर से लोगों के दिलो-दिमाग में उतारने का है। 

ऐसी कार्रवाइयों को सूझवान तथा आम लोगों के एक बड़े हिस्से की ओर से समर्थन नहीं मिल रहा। विशेषकर उन लोगों ने अमृतपाल जैसे मुद्दे को लेकर दूरी बनाई रखी है जिन्होंने खालिस्तानी आतंकवाद के काले दौर को अपनी आंखों से देखा है परन्तु धार्मिक संवेदनाओं को भड़का कर ऐसी हिंसापूर्ण भावना ज्यादा देर नहीं चलती। साम्प्रदायिक ङ्क्षहसा को भड़काना ज्यादा आसान होता है जब साम्प्रदायिकता, आतंकवाद  और अलगाववाद का जिन्न बोतल से बाहर आ जाए तो इस पर काबू पाना आसान नहीं होता। पंजाब के अंदर सिखों के साथ हो रही बेइंसाफी के आधार पर खालिस्तान की मांग उस समय की जा रही है जब राष्ट्रीय स्तर पर आर.एस.एस. की ओर से हिंदू धर्म को आ रहे खतरों को देखते हुए हिंदू राष्ट्र के एजैंडे को खूब प्रचारित किया जा रहा है। 

जिस तरह से देश में धर्म आधारित राज की स्थापना के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ, धर्म निरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक कीमतों की बलि देना जरूरी है इसी फार्मूले के अनुसार पंजाब के अंदर खालिस्तान को कायम कर यहां के बाकी धर्मों तथा विश्वासों से संबंधित समाज को दूसरे दर्जे के शहरी बनाना उसी तर्क का दूसरा रूप है। 

जिस तरह हिंदू धर्म को खतरा पैदा होने की थ्यूरी पर काम किया जा रहा है ऐसे ही सिखों को गुलाम बताकर सिख आधारित देश खालिस्तान की मांग को उचित ठहराया जा रहा है। 1947 में देश के बंटवारे के समय मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की स्थापना को एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति बताकर सिखों को भी उसी रास्ते पर दौड़ाया जा रहा है। वे तो धर्म आधारित देश पाकिस्तान की वर्तमान दयनीय दशा से भी कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं जिस देश में विशेष धर्म मुस्लिम समाज के लोगों पर 75 साल शासन किया गया वहां पर मुस्लिम शासकों, सैन्य तानाशाहों, आतंकवादी तत्वों ने ही पाकिस्तान को लूटा है।

मुस्लिम श्रमिक, किसान तथा मध्यमवर्गीय लोग नरक जैसा जीवन जी रहे हैं। 1947 के बाद सिख समुदायों में से ही देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, चुनाव आयुक्त, सुप्रीमकोर्ट तथा हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश तथा तीनों सेनाओं के प्रमुख पदों पर  सिख विराजमान रहे। पंजाब के अंदर एक उदाहरण को छोड़ कर हमेशा ही सिख मुख्यमंत्री के हाथों में सत्ता की चाबी रही है। 

पंजाब में तो कोई भी ऐसा सरकारी विभाग नहीं होगा जहां पर सिख स्वरूप वाला रूप सुशोभित न रहा हो। बाकी धर्मों के लोगों की तरह सिख समुदायों में से ही बड़े पूंजीपति, जागीरदार तथा भ्रष्ट राजनेताओं की गिनती भी कम नहीं है जिन्होंने अपने स्वार्थी हितों की खातिर लोगों से धोखा किया है। यदि कोई बेइंसाफी या लूट-खसूट हुई है तो वह समाज में रहते श्रमिकों, किसानों, बेजमीन लोगों, छोटे दुकानदारों, व्यापारियों तथा मध्यमवर्गीय लोगों के साथ हुई है जो सभी धर्मों तथा जातीयों से संबंधित हैं। ऐसी बेइंसाफी करने वालों में आबादी के अनुपात से सिख भी बराबर के हिस्सेदार हैं। 

पंजाब के अंदर लूटने वाली सरकारों की ओर से जुल्म करने के समय सिखों तथा गैर-सिखों में कभी कोई अंतर नहीं किया गया। 1978 में सिखों तथा निरंकारियों के मध्य हुए झगड़े की घटना भी सिखों के साथ किसी बेइंसाफी की तुलना हास्यपद होगी। पंजाब में खालिस्तानी लहर से पहले कभी भी आम लोगों में कोई नफरत या भेदभाव नहीं देखा गया। बिल्कुल इसके विपरीत हर व्यक्ति तथा महिला अपने आपको यहां सुरक्षित महसूस करती थी। सिखों के धार्मिक स्थलों के बारे में सभी धर्मों तथा जातियों के लोगों के मनों में अथाह श्रद्धा है। सिख धर्म को मानने वाले लोगों ने भी देश के किसी हिस्से में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी लोगों की दिल खोल कर पूरी मदद की है। 

पंजाब के साथ हुई बेइंसाफियां देश के अन्य राज्यों से भिन्न नहीं हैं। भाषा के आधार पर राज्य को बनाने के लिए हर प्रांत के लोगों को संघर्ष करना पड़ा है। अभी भी विभिन्न प्रांतों के लोगों की मातृभाषा के बारे में केंद्रीय सरकार का रवैया इंसाफ वाला नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर समस्त कृषि वर्ग से हो रही बेइंसाफियों के खिलाफ एक व्यापक जन आंदोलन छेडऩे की जरूरत है जिसमें बिना किसी धर्म या भाषा के भेदभाव से सभी लोगों को सम्मिलित होना चाहिए। झूठी बेइंसाफी की दुहाई देने वाले लोग जो खुद सरकारी छत्रछाया के नीचे सब कुछ हासिल कर रहे हैं उनका असली चेहरा पंजाब की जनता को पहचानना होगा।-मंगत राम पासला


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