‘गंगा’ को माता का दर्जा ग्रंथों में ही नहीं जीवन में भी दो

punjabkesari.in Friday, Feb 17, 2017 - 01:57 AM (IST)

गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है। गंगा को भारत के वैदिक ग्रंथों में धार्मिक एवं पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है। वैदिक संस्कृति में जीवन की उत्पत्ति के लिए 5 मुख्य तत्वों को आधार माना गया है जिनमें पानी, अग्नि (सूर्य), वायु, धरती और आकाश हैं। इसलिए वैदिक संस्कृति में संसार की प्रत्येक नदी को पवित्र और पूजने योग्य माना गया है। 

गंगा नदी हिमालय के बड़े-बड़े ग्लेशियरों के मध्य गौमुख के स्थान से निकलती है और 2500 कि.मी. का सफर पार करके बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इस सफर के दौरान इसमें कई अन्य बड़ी-बड़ी और नदियां मिलती हैं जिनमें भागीरथी, अलकनंदा, चंबल, बेतवा, यमुना, गौतमी, घग्गर, गंडक, कोसी आदि शामिल हैं। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले गंगा और हुगली संसार का सबसे बड़ा डैल्टा बनाती हैं। 

गंगा नदी 29 ऐसे बड़े शहरों में से गुजरती है जिनकी जनसंया एक लाख से अधिक है, 23 ऐसे शहरों में से गुजरती है जिनकी जनसंख्या 50 हजार और एक लाख के बीच है तथा 48 कस्बे हैं जो गंगा के किनारों पर स्थित हैं। गंगा और इसकी सहायक नदियां 11 प्रदेशों में से गुजरती हैं। 144 नाले गंगा और इसकी सहायक नदियों में गिरते हैं। यद्यपि नाले वर्षा के पानी की निकासी के लिए बने होते हैं, पर अब ये नाले शहरों और कस्बों का गंदा पानी लेकर आते हैं। एक अंदाजे के मुताबिक रोजाना 400 करोड़ लीटर गंदा पानी और 14 हजार टन औद्योगिक कचरा रोजाना गंगा में फैंका जाता है। गंगा नदी के किनारों पर बहुत सारे कारखाने, रासायनिक प्लांट, कपड़े की मिलें, डिस्टिलरियां, बूचडख़ाने, चमड़ा उद्योग, रंगने के कारखाने, अस्पताल और होटल बने हुए हैं। उक्त उद्योगों के व्यर्थ पदार्थ गंगा और इसकी सहायक नदियों में ही फैंके जाते हैं। 

हम नदी के सम्मान में हर रोज प्रार्थना करते हैं, नदी को मां का दर्जा देते हैं, पर जब फर्ज निभाने का वक्त होता है तब हम उस प्रार्थना और मां के दर्जे को भूल जाते हैं। हमारी खुदगर्जी के कारण आज गंगा का नाम संसार की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में आता है। गंगा की सफाई के लिए सरकारी और गैर-सरकारी कदमों का लंबा-चौड़ा इतिहास है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1905 में गंगा के बेरोक प्रवाह के लिएगंगा महासभा बनाई थी।

5 नवंबर, 1914 को अंग्रेज सरकार ने लिखित आदेश दिया: बिना किसी रुकावट से पवित्रगंगा का प्रवाह ङ्क्षहदुओं का धार्मिक एवं सांस्कृतिक हक है। 14 जनवरी, 1986 को प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान को मंजूरी दी। इस प्लान में गंगा की सफाई और पानी की गुणवत्ता में सुधार को समर्पित एक लंबा-चौड़ा खाका तैयार किया गया। सन् 1997, इस पड़ाव को मुकम्मल करने का लक्ष्य रखा गया। बाद में इसकी मियाद बढ़ाकर इसको गंगा एक्शन प्लान-2 का नाम दिया गया।

इस प्लान को 1999 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। 20 फरवरी, 2009 को  वातावरण बचाओ एक्ट 1986 के सैक्शन 3 के तहत केंद्रीय सरकार ने नैशनल रिवर गंगा बेसिन अथॉरिटी (एन.आर.जी.बी.ए.) बनाई। इस अथॉरिटी में प्रधानमंत्री और उन राज्यों के मुख्यमंत्री जहां से गंगा गुजरती है, शामिल थे। 2011 में विश्व बैंक ने एक बिलियन डालर का फंड गंगा की सफाई के लिए एन.आर.जी.बी.ए. को जारी किया। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने गंगा के किनारे कई औद्योगिक इकाइयों को बंद करने या बदली करने का हुक्म दिया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 10 जुलाई, 2014 को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली ने ‘नमामि गंगे’ मुहिम शुरू करने का ऐलान किया। इस मुहिम की कामयाबी के लिए 2037 करोड़ रुपए का केंद्रीय सरकार की तरफ से योगदान दिया गया। भारत सरकार ने 48 औद्योगिक इकाइयां जो गंगा में गंदा पानी या कचरा फैंकती थीं, को बंद करने का हुक्म दिया। अगले 5 वर्षों में इस मुहिम को सफल बनाने के लिए 20000 करोड़ रुपए के बजट का ऐलान किया गया। 

सबसे बड़ा कदम यह है कि ‘नमामि गंगे’ मुहिम को कैबिनेट मंत्री उमा भारती को वाटर रिसोॢसज के साथ रिवर डिवैल्पमैंट और गंगा रिजुवीनेशन का खास काम दिया गया है। इसका फायदायह होगा कि ‘नमामि गंगे’ मुहिम बेरोक लगातार चलती रहेगी। जितना जरूरी ‘नमामि गंगे’ की सफलता के बारे में बताना है, उतनाही जरूरी इसकी असफलता के अनुमान की छानबीनकरना है। ‘नमामि गंगे’ मुहिम की सफलता के लिए 4 आधारशील नुक्ते बहुत जरूरी हैं जो अभी तक नहीं उठाए गए।

(क) ‘नमामि गंगे’ मुहिम केवल गंगा नदी तक ही सीमित लगती है, जबकि गंगा की पूर्ण सफाई के लिए जरूरी है इसकी सहायक नदियों की भी उतनी ही सफाई और संभाल हो। इस मकसद की पूर्ति के लिए एन.आर.जी.बी.ए. अथॉरिटी ज्यादा कारगर साबित हो सकती थी।

(ख) रेलवे की तरह इसके किनारों पर पत्थर की शिलाएं लगाई जातीं। किनारों पर पैदा होने वाले पेड़-पौधे नदी का अभिन्न भाग होते हैं। गैर- कानूनी इन्क्रोचमैंट को हटाना पहला कदम होना चाहिए था।

(ग) गंगा नदी और सहायक नदियों में गिर रहे छोटे आरजी नाले जो शहरों और कस्बों के सीवरेज का गंदा पानी लेकर आते हैं, उनको तुरंत बंद किया जाना चाहिए था। उनको वाटर ट्रीटमैंट प्लांट के साथ जोडऩा सबसे पहले होना चाहिए था।

(घ) गंगा और इसकी सहायक नदियों में फैंकी जाती लाशों पर सख्त पाबंदी लगाई जाती।
यदि उपरोक्त नुक्तों को पहल के आधार पर स्वीकार और लागू किया जाता है तो ‘नमामि गंगे’ मुहिम अपने लक्ष्य को जरूर हासिल कर सकती है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News