गांधी परिवार ने कांग्रेस पार्टी पर अपना दावा पक्का किया

punjabkesari.in Tuesday, Oct 19, 2021 - 03:55 AM (IST)



गांधी परिवार ने इस सप्ताह कांग्रेस पार्टी पर अपना दावा पक्का कर दिया जैसा कि शनिवार को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सोनिया गांधी के निश्चात्मक भाषण में देखा गया। साधारण शब्दों में पार्टी के लिए उनका संदेश यह है कि ‘हम गांधी हैं और जब तक हम चाहें शासन करते हैं। अब हमें चुनौती दो।’ 

जैसे कि आशा थी विद्रोहियों के ‘ग्रुप 23’ की ओर से एक फुसफुसाहट भी नहीं सुनाई दी, जो मीडिया में महीनों से शोर मचा रहे थे कि पूर्णकालिक नेतृत्व तथा संगठनात्मक चुनावों की जरूरत है। जैसी कि आशा थी, कांग्रेस कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से गांधी परिवार में विश्वास जताया। कार्यसमिति की बैठक गांधियों द्वारा लिखी गई पटकथा के अनुसार पूरी हो गई। नि:संदेह चुनावों के लिए सोनिया ने एक रोड मैप देकर उन्हें चुप करा दिया लेकिन इसका पता कुछ राज्यों में होने वाले महत्वपूर्ण चुनावों के बाद ही चलेगा। काफी संख्या में वफादारों ने राहुल गांधी को पार्टी की कमान संभालने के लिए भी राग अलापा। राहुल अपने विकल्पों को खुले रखते हुए मुद्दे पर विचार करने को राजी हो गए हैं। इस बीच वह अपनी बहन प्रियंका गांधी के साथ निर्णय लेना जारी रखेंगे और अपने पसंदीदा लोगों को पार्टी में शक्तिशाली पदों पर लगाना जारी रखेंगे जैसा कि उन्होंने पंजाब के नेता सिद्धू तथा अन्य के मामले में किया है। उन्हें आने वाले चुनावों में टिकट बांटने के लिए भी खुला हाथ दिया गया है। 

सोनिया ने घोषणा की है कि वह एक पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं लेकिन यह उनके 1998 अथवा 2004 के समय से कठिन होगा। उस समय वह काफी युवा थीं और उनके पास अच्छे राजनीतिक सलाहकार थे। उनके आसपास का माहौल बड़ा रहस्यपूर्ण था। अर्जुन सिंह, फोतेदार, अहमद पटेल तथा ए.के. एंटनी जैसे नेता अनुभवी तथा चतुर राजनीतिज्ञ थे। आज उन्हें अपने बच्चों के माध्यम से उनके अपरिपक्व निर्णयों से पार्टी को चलाना पड़ रहा है। 

जब भी चुनौतियां सामने आती हैं तो सोनिया गांधी अच्छी लड़ाई लड़ती हैं जैसा कि उन्होंने 1998 के बाद से दिखाया है। उन्होंने पार्टी की कमान तब संभाली थी जब सीताराम केसरी के अंतर्गत यह डूब रही थी तथा भाजपा का उभार हो रहा था। किसी को भी 2004 में यू.पी.ए. की जीत की आशा नहीं थी। असल आघात तब लगा था जब उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की बजाय पृष्ठभूमि में जाने का फैसला किया और उन्होंने डाक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। उन्होंने पृष्ठभूमि में रह कर अगले 10 वर्षों तक पार्टी तथा सरकार चलाई। गांधी परिवार के किसी भी सदस्य को निश्चित तौर पर मतदाताओं की राय की परवाह न करते हुए कांग्रेसियों की भावनाओं को राहत पहुंचानी चाहिए। जब राहुल गांधी ने 2019 में पार्टी की घटिया कारगुजारी की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था, पार्टी गांधियों से परे नहीं देख सकी। राहुल गांधी को वह मिला जो वह चाहते थे- एक अभेद्य निर्णय लेने वाला लेकिन बिना किसी जिम्मेदारी के। अब उनकी बहन प्रियंका गांधी भी पृष्ठभूमि से निर्णय लेने के लिए उनके साथ शामिल हो गई हैं। 

सोनिया के सामने अब पहली चुनौती पार्टी में लगातार हो रहे क्षरण को रोकना है। यह वह 1998 में कर सकती थीं मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और अब अमरेंद्र सिंह तथा गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री जैसे कई नेता बढिय़ा अवसरों के लिए पार्टी को छोड़ चुके हैं। कई अन्य के उनका अनुसरण करने की संभावना है। 

दूसरी चुनौती आधा दर्जन राज्यों में आने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ राज्यों को जीतने की होगी। उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि 1989 के बाद से पार्टी यहां सत्ता में नहीं आई। पार्टी पंजाब में विजय की स्थिति में थी लेकिन ये गांधी भाई-बहन थे जिन्होंने अपात्र सिद्धू को पी.सी.सी. अध्यक्ष चुन कर इसे खराब कर दिया। 

तीसरी है संगठन की मशीनरी को पुनर्जीवित करना। चुनावी राज्यों के प्रभारी महासचिवों को जमीन पर अधिक समय गुजारना चाहिए। उम्मीदवारों का चयन महत्वपूर्ण है तथा जो कोई भी किसी उम्मीदवार को प्रस्तावित करता है उसे उसकी जीत के लिए जिम्मेदार भी होना चाहिए। सोनिया को संगठन में जान फूंकने की जरूरत है। उन्हें बूथ समितियों की स्थापना करनी तथा चुनावों के समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। संगठन के बिना कांग्रेस नहीं जीत सकती। चौथी है मोदी सरकार का पर्दाफाश करने के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों का चयन करना। ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जैसे कि पैट्रोल की कीमतों में वृद्धि, महंगाई, किसान आंदोलन, कोविड से निपटना तथा और भी बहुत से। यद्यपि सोनिया ने शनिवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इन सभी का उल्लेख किया लेकिन उन्हें प्रचार करने के लिए पैदल योद्धाओं की जरूरत है। 

पांचवीं है विपक्ष को एकजुट करना। ममता बनर्जी तथा शरद पवार जैसे कई विपक्षी नेता हैं जो विरोध में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं। अन्यथा 2024 में मोदी लाभ की स्थिति में होंगे। भाग्य से सोनिया को विपक्षी नेताओं से सम्मान के साथ-साथ अधिकार भी मिले हैं। मगर सब कुछ से पहले उन्हें ग्रुप 23 की शिकायतों का समाधान करना तथा उन्हें अपने पक्ष में वापस लाना होगा। उन्हें गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, कपिल सिब्बल तथा मनीष तिवारी जैसे नेताओं की तरह दबाया नहीं जा सकता जो स्पष्टवादी हैं। जैसे कि खुद सोनिया ने बैठक में कहा है कि पार्टी में एकता तथा अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। शनिवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक ने साबित कर दिया है कि पार्टी गांधियों में फंसी हुई है तथा गांधी पार्टी में। दोनों को ही मतदाताओं के साथ अपनी चाल बदलनी होगी क्योंकि ये बदल और अधिक आकांक्षावान तथा अधीर बन चुके हैं।-कल्याणी शंकर
 


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