बोलते समय शायद किसी की परवाह नहीं करते गडकरी

Sunday, Feb 03, 2019 - 01:03 AM (IST)

नितिन गडकरी एक असामान्य राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि वह खाने-पीने के बहुत शौकीन हैं, फैशनेबल कपड़े पहनते हैं और ऐसा दिखाई देता है कि अपने जीवन का पूरा लुत्फ उठाते हैं। वह जनसभाओं में बोलने का मजा उठाते हैं और ऐसे बोलते हैं जैसे उन्हें दुनिया में किसी की परवाह न हो। इसके साथ ही वह एक स्वयंसेवक हैं। ऐसा माना जाता है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पसंदीदा हैं। वह अपने निर्वाचन क्षेत्र नागपुर (महाराष्ट्र) की देखभाल करते हैं और संघ, अपने पार्टी नेताओं तथा पार्टी कार्यकर्ताओं को खुश रखते हैं।

गडकरी तथा फडऩवीस नागपुर से संंबंधित हैं और अपना समर्थन एक ही क्षेत्र तथा नेताओं व कार्यकर्ताओं के उसी राजनीतिक आधार से प्राप्त करते हैं। महाराष्ट्र में इस बात की चर्चा है कि गडकरी राज्य के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उनकी योजना को असफल कर दिया। मोदी ने अपने वफादार देवेन्द्र फडऩवीस को चुना। ऐसा माना जाता था कि गडकरी की महत्वाकांक्षाओं, यदि कोई थीं, पर अंकुश लगाने के लिए यह एक चतुराईपूर्ण कदम था, हालांकि न दबाए जा सकने वाले गडकरी ने खुद अपना मार्ग बना लिया। 

गडकरी के उद्बोधन 
गडकरी अपने मंत्रालयों-उच्च मार्ग एवं सड़क परिवहन, जलस्रोत, नदी विकास तथा गंगा कायाकल्प पर पूरा ध्यान देने के लिए जाने जाते हैं। एक मंत्री के तौर पर कारगुजारी का उनका मिश्रित रिकार्ड है। उच्च मार्ग निर्माण में अच्छे, गंगा कायाकल्प को लेकर बढ़ा-चढ़ा कर किए गए दावे, जलस्रोत विकास में अपेक्षा से कम कारगुजारी तथा सिंचाई परियोजना में काफी पीछे।

कार्यालय के बाहर अपने वक्तव्यों में वह काफी तीक्ष्ण तथा निष्कपट होते हैं। मार्च, 2018 में एक मीडिया हाऊस द्वारा आयोजित कन्क्लेव में उन्होंने कहा था कि ‘अतीत में मीडिया ने हमें अच्छे दिन के प्रश्र पर फंसाया था। ...अच्छे दिन एक विश्वास है, यदि आप यह मानते हैं कि वे हैं।’ एक बार फिर अगस्त, 2018 में जब आरक्षण के लिए प्रदर्शन उग्र हो रहे थे, उन्होंने कहा था कि ‘यदि आरक्षण दिया भी जाता है तो नौकरियां नहीं हैं। तकनीक के कारण बैंकों में नौकरियां बहुत कम हो गई हैं। सरकारी नियुक्तियां रुकी हुई हैं।’ बहुत से लोगों को यह आशंका थी कि उनका निशाना प्रदर्शनकारी (आरक्षण की मांग के लिए) नहीं थे बल्कि मोदी सरकार थी (नौकरियां पैदा करने में अपनी असफलता के लिए)।

हालिया समयों के दौरान वह अपनी चतुराईपूर्ण टिप्पणियों से छोटे तूफान पैदा करते रहे हैं। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के चुनाव परिणामों ने गडकरी को एक बड़ा अवसर दिया। उन्होंने शब्दों को तोड़े-मरोड़े बिना कहा, ‘‘यदि मैं पार्टी अध्यक्ष हूं और मेरे सांसद तथा विधायक अच्छा काम नहीं कर रहे तो इसका जिम्मेदार कौन है? मैं हूं।’’ उसी कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री के सामने एक चुनौती भी रखी- ‘सहिष्णुता भारतीय प्रणाली की सबसे बड़ी पूंजी है। आप महज इसलिए चुनाव नहीं जीत सकते कि आप अच्छा बोलते हैं ...आप विद्वान हो सकते हैं लेकिन हो सकता है कि लोग आपको वोट न दें। जो यह समझता है कि वह सब कुछ जानता है उसे गलतफहमी है ...लोगों को कृत्रिम मार्कीटिंग से बचना चाहिए।’

गडकरी ने वह सब कहा जो भाजपा में कोई असंतुष्ट कह सकता है या सब कुछ वही जो एक विपक्षी  राजनीतिज्ञ कहेगा। उन्होंने वास्तव में प्रधानमंत्री को एक असफल सपने बेचने वाला कहा और पराजय के लिए जिम्मेदारी लेने की हिम्मत के अभाव के कारण उनकी निंदा की। उन्होंने प्रधानमंत्री पर असहिष्णु होने का आरोप लगाया और कहा कि वह कृत्रिम मार्कीटिंग करते हैं। ये निश्चित तौर पर एक मंत्रिमंडलीय सहयोगी की ओर से कड़े शब्द हैं।

भाजपा नेतृत्व भौचक्का
इन अभिव्यक्तियों के बावजूद भाजपा नेतृत्व ने सार्वजनिक रूप से एक भी शब्द नहीं कहा। संघ ने भी गडकरी को फटकार नहीं लगाई। सम्भवत: हर कोई भौचक्का है और स्पष्ट नहीं है कि कैसे इस स्थिति से निपटा जाना चाहिए। मुझे संदेह है कि कार्रवाई करने में हिचकिचाहट का कारण यह है कि पार्टी नेतृत्व जानता है कि और बहुत से नेता ऐसे हैं, विशेषकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के सांसद, जो लोकसभा चुनावों के परिणाम तथा खुद अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर सशंकित हैं।

2014 में भाजपा तथा उत्तर प्रदेश में इसके सहयोगी (अपना दल) ने इन 4 राज्यों में दाव पर लगी 145 में से 135 सीटें जीती थीं। किसी भी गणना से भाजपा उन 135 सीटों में से 80 गंवा देगी। यही वह परिणाम है जिसकी गडकरी तथा उनके समर्थक निष्ठापूर्वक इच्छा रखते हैं। फुसफुसाहटें दिनों-दिन ऊंची हो रही हैं और वह गडकरी तथा उनके समर्थकों के लिए एक संगीत होना चाहिए। 
अधिक से अधिक आवाजें (नवीनतम हैं रामविलास पासवान) यह भविष्यवाणी कर रही हैं कि चुनावों में भाजपा की व्यक्तिगत संख्या 2014 के 282 के मुकाबले लुढ़क सकती है। चूंकि लुढ़कन जारी है, आप निश्चित हो सकते हैं कि गडकरी के ‘रत्नों’ की चमक तथा आवृत्ति और बढ़ेगी। — पी चिदंबरम

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