खंडित संकल्प से मुरझाते सपने

Tuesday, Jan 30, 2018 - 03:26 AM (IST)

आगामी 26 मई को मोदी सरकार को सत्ता सिंहासन पर बैठे पूरे 4 साल हो जाएंगे और फिर लोकसभा चुनावों के लिए काऊंट डाऊन शुरू हो जाएगा। लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र को ‘संकल्प पत्र’ बताते हुए इसमें जो वायदे किए थे, उनमें से 2 वायदों ने देशवासियों का सर्वाधिक ध्यान आकर्षित किया था। 

एक वायदा था-किसानों को उनकी लागत से अधिक मूल्य प्रदान करना एवं कृषि को लाभ का कारोबार बनाना और दूसरा वायदा था-बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन करके हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार प्रदान करना। भाजपा के संकल्प पत्र में यह भी वायदा था कि वह इसे अक्षरश: अमलीजामा पहना कर देश की तकदीर और तस्वीर बदल देगी। वैसे वायदा तो यह भी था- ‘सबका साथ-सबका विकास’ और इसी सूत्र वाक्य के जरिए देश की जनता को अच्छे दिन लाने की उम्मीद भी बंधाई गई थी। लेकिन पौने 4 सालों में ये वायदे कितने पूरे हुए और स्थिति में कितना बदलाव आया, यह सब किसी से छिपा नहीं है। 

युवा बेरोजगारी पर आए ताजा सर्वे के मुताबिक शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की स्थिति कहीं बदतर है। सर्वेक्षण के अनुसार 18 से 29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी दर 10.2 प्रतिशत और अशिक्षितों में 2.2 प्रतिशत है। स्नातकों में बेरोजगारी दर 18.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इससे युवाओं में असंतोष व कुंठा बढ़ती जा रही है। अगर हम 2011 के आंकड़ों को आधार बनाएं तो देश के करीब 20 फीसदी नौजवान बेरोजगार हैं। 20 से 24 साल आयु वर्ग के पौने 5 करोड़ युवाओं के पास डिग्री तो है लेकिन कोई रोजगार नहीं है। 

आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर साल 10 लाख लोग नौकरी ढूंढने निकलते हैं। एक तरह से हमारे देश में प्रतिदिन करीब 30 हजार युवा नौकरियों की तलाश में भटकते हैं लेकिन रोजगार सिर्फ  500 युवाओं को ही मिलता है। रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दर पिछले 8 सालों के न्यूनतम स्तर पर है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में 1 लाख 55 हजार और 2016 में 2 लाख 31 हजार नौकरियां तैयार हुईं। यू.पी.ए. सरकार में डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2009 में 10 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थीं। ऐसा नहीं है कि यू.पी.ए. सरकार के दौर में बेरोजगारी की समस्या का निदान हो गया था लेकिन हालात आज की तरह भी नहीं थे। वर्ष 2011 मेंंबेरोजगारी दर 3.8 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 5 फीसदी हो चुकी है। 

इस पर भी विडम्बना यह है कि इस तरफ मोदी सरकार नई नौकरियां तैयार नहीं कर पा रही है और वहीं दूसरी तरफ  देश के आई.टी. सैक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी होने से बेरोजगार इंजीनियरों का भविष्य अंधेरे में डूबता जा रहा है। इस समय आई.टी. सैक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य एक संक्रमण काल से गुजर रहा है और इनमें से अधिकतर की नौकरियां खतरे में हैं। इंफोसिस और विप्रो जैसी कई नामी कम्पनियां बड़े पैमाने पर कटौती का ऐलान कर चुकी हैं और स्नैपडील जैसी कम्पनियां तो बड़ी संख्या में अपने स्टाफ  को निकाल भी चुकी हैं। 

आई.टी. सैक्टर ही नहीं बल्कि सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे लाखों लोगों की नौकरियां भी महफूज नहीं हैं। नीति आयोग ने करीब 75 सरकारी कम्पनियों की पहचान की है, जिन्हें भविष्य में या तो बंद किया जा सकता है या फिर बेचा जा सकता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 6 कम्पनियों के मालिकाना हक का ट्रांसफर, 3 कम्पनियों का विलय, 5 को लंबे समय के लिए लीज पर देने और 26 को बंद करने का प्रस्ताव है। अगर नीति आयोग के इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलती है तो इससे बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी जाएगी। चिंताजनक बात तो यह है कि देश में हर रोज बेरोजगारी के जंगल में 30 हजार नए युवा भटकने के लिए निकल रहे हैं। 

चिंता की बात यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी जी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम पर फोकस तो कर रहे हैं लेकिन बजाय कारोबार को बढ़ाए जाने के फोकस सिर्फ  बड़े बिजनैस पर हो रहा है। अगर सचमुच हमने चीन के साथ मुकाबला करना है और अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है तो इसके लिए हमारे देश के युवाओं को अधिकाधिक रोजगार की जरूरत है। श्रम आधारित उद्योग यथा खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा उद्योग, टैक्सटाइल आदि को बढ़ावा देकर बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन किया जा सकता है। 

युवाओं को प्रशिक्षित करने के मकसद से केंद्र सरकार ने कई योजनाओं की शुरूआत तो की है लेकिन नौकरियां पैदा करने के मामले में अभी तक अपेक्षित परिणाम नहीं आए हैं। कुशल पेशेवरों को तैनात करने की चुनौती अब भी खड़ी है। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2022 तक देश के 24 सैक्टरों में करीब 10 करोड़ अतिरिक्त श्रमबल की जरूरत होगी लेकिन मौजूदा कार्यबल में मात्र 5 प्रतिशत ही है जो निर्धारित कार्यकुशलता के मानकों पर खरा उतरते हैं। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक देश में रोजगार सृजन के लिए आर्थिक विकास दर को 8 से 10 फीसदी तक करना होगा क्योंकि आर्थिक गतिशीलता के बिना रोजगार पैदा करना असंभव है  लेकिन आॢथक विकास दर में गिरावट ने आर्थिक विशेषज्ञों के साथ-साथ युवाओं को भी चिंतित कर रखा है। 

घरेलू उपभोक्ताओं से जुड़ी औद्योगिक इकाइयों में मंदी भी रोजगार के अवसर पैदा करने में रुकावट बन रही है। देश के सरकारी विभागों में आज भी हजारों पद खाली पड़े हैं जिन्हें भरने के लिए कोई ठोस नीति बनाया जाना जरूरी है लेकिन अफसोस है कि इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए जा रहे। मोदी सरकार को भारी बहुमत से सत्ता का ताज पहनाने में देश के युवाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और आज युवा हताश दिख रहा है। केंद्र सरकार को यह बात बहुत गंभीरता से सोचनी होगी कि अगर भारत जैसा इतनी विशाल युवा जनसंख्या वाला देश युवाओं को सही वक्त पर रोजगार नहीं दे पाएगा, तो किस तरह वह विश्व शक्ति बनकर दुनिया के परिदृश्य पर उभरेगा।-राजेन्द्र राणा(विधायक, हिमाचल प्रदेश)

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