‘आप’ तथा नवजोत सिंह सिद्धू का भविष्य

punjabkesari.in Friday, Oct 18, 2019 - 12:53 AM (IST)

आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने साथियों के साथ मिल कर भले ही तीसरी बार दिल्ली में अपना भविष्य आजमाने के लिए अभी से विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं, फिर भी पंजाब में इस पार्टी का भविष्य मंझधार में लटका हुआ है। कारण साफ है। दिल्ली के नेतृत्व को पंजाब के अधिकतर नेता मानने को तैयार नहीं। दूसरा, जिनमें थोड़ा-बहुत दमखम था, वे अलग हो गए हैं। जिनमें और भी कुछ करने की इच्छा शक्ति है, उनको हाशिए पर धकेला जा रहा है। 

पंजाब में जो कुछ नेतृत्व बचा है, वह गत अढ़ाई-तीन वर्षों में अपना कद इस हद तक नहीं बढ़ा सका कि यदि कम से कम सत्ताधारी पक्ष कांग्रेस को नहीं तो दूसरी विरोधी पार्टी शिरोमणि अकाली दल को ही जोरदार टक्कर दे सके। कुल मिलाकर पंजाब में पार्टी घिसे-पिटे बयानों के सहारे चल रही है। यही पार्टी, जो अढ़ाई-तीन वर्ष पूर्व इस राज्य की नम्बर एक पार्टी बनने के बिल्कुल करीब पहुंच गई थी, आज कहीं भी खड़ी दिखाई नहीं देती। 

दूसरी ओर जहां तक नवजोत सिंह सिद्धू का प्रश्र है, उनके सितारे भी फिलहाल गर्दिश में चल रहे हैं, फिर भी वह पंजाबियों को अच्छे भविष्य की एक आशा के तौर पर नजर आ रहा है। इसमें दो राय नहीं कि 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले भी उनके सितारे गर्दिश में थे। भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें अमृतसर से चुनाव लड़ाने की बजाय एक ओर करके अरुण जेतली को मैदान में उतार दिया। बेशक जेतली चुनाव हार गए थे मगर इसको अपनी बेइज्जती समझते हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा से अपना रास्ता ही अलग करते हुए कांग्रेस का पल्ला थाम लिया था। यह पल्ला उन्होंने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के कारण नहीं बल्कि राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी के कारण पकड़ा था। इसी कारण कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कभी भी नवजोत सिंह सिद्धू को पसंद नहीं किया।

अमरेन्द्र के साथ मतभेद
एक अन्य तथ्य भी है कि किसी भी क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति को जब दूसरा व्यक्ति अधिक प्रभावशाली लगता हो तो वह उसे चारों खाने चित्त करने की कोशिश करता है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी उनको दिल्ली का थोपा हुआ व्यक्ति समझ कर कभी भी उनकी पीठ नहीं थपथपाई। यह अलग बात है कि वह नवजोत सिंह सिद्धू को सहते जरूर रहे तथा अंतत: जब समय आया, तो अपने मंत्रिमंडल से दूध में से मक्खी की तरह निकाल दिया। नि:संदेह 2017 में सिद्धू अमृतसर से चुनाव जीत कर मंत्री भी बन गए और इस समय दौरान उन्होंने कांग्रेस हाईकमान का दूसरे राज्यों में प्रचारक बन कर बड़ी प्रशंसा तो प्राप्त की ही बल्कि पंजाब में भी वह आम लोगों का एक चहेता चेहरा बन गए थे। शायद उन्हें अपनी इस सर्वप्रियता की ही नजर लग गई कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ मतभेद होने के कारण उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा। जो सिद्धू 2017 से लेकर दो महीने पहले तक मीडिया में रोज सुॢखयां बन कर सामने आते थे, अब अमृतसर में अपने घर में मौजूदा स्थिति का आत्ममंथन करने में जुटे हुए हैं। उनकी यह चुप्पी समुद्र में तूफान आने से पहले जैसी खामोशी है। 

केजरीवाल की गलती 
पंजाब विधानसभा चुनावों से पूर्व जैसे नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने से पहले आम आदमी पार्टी के साथ मिल जाने के चर्चे थे, यदि कहीं तब अरविन्द केजरीवाल जरा इस समझदारी से काम ले लेते कि फिलहाल पंजाब की राजनीति में किसी गैर-जाट और विशेषकर दिल्ली वाले केजरीवाल का मुख्यमंत्री बन सकना न मुमकिन है तथा वह सिद्धू को अपने साथ जोड़ लेते तो आज पंजाब की राजनीति का नक्शा ही अलग होता। केजरीवाल की कुछ गलतियों ने उनके पांव पंजाब की राजनीति से तो उखाड़े ही बल्कि पार्टी के पैर भी उखड़ गए हैं। केजरीवाल को यह भी समझने की जरूरत है कि आम आदमी पार्टी का पंजाब का नेतृत्व दिल्ली के नेतृत्व को अपने ऊपर अधिक हावी नहीं होने देगा। हाईकमान को दिल्ली में रह कर इस पर नजर रखनी चाहिए थी जैसा कि अन्य राजनीतिक दल करते हैं, तो आज ‘आप’ के पांव पंजाब की धरती पर पूरी तरह से गड़े होते। 

फिर भी, चूंकि राजनीति चलती का नाम गाड़ी है, इसमें रुकना तथा चलना स्वाभाविक है। दूसरा, पंजाब की राजनीति में कैप्टन सरकार के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद हालात कुछ ऐसे बनने लगे, बल्कि लगभग बन ही गए हैं कि लोग आज तीसरे विकल्प की तलाश में हैं। कांग्रेस से लोगों को जैसी उम्मीदें थीं और कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने जो सब्जबाग दिखाए थे, वे इसके कहीं नजदीक भी नहीं पहुंच सके। कांग्रेस तथा सरकार दोनों में बैचेनी का माहौल है। अफसरशाही इतनी मुंहजोर हो गई है कि लोगों द्वारा चुने गए एक प्रतिनिधि विधायक को कार्यालय से बाहर चले जाने को कहने की जुर्रत दिखा रही है। नशों, बेरोजगारी का आलम बरकरार है। हालांकि कैप्टन ने एक महीने में अच्छे परिणाम देने का वायदा किया था। किसानों की आत्महत्याएं न केवल ज्यों की त्यों जारी हैं बल्कि रोज इनकी संख्या बढऩे लगी है। 

पंजाब के जो लोग कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पिछली सरकार की कारगुजारी को देखते हुए पुन: सत्ता में लाए थे, आज वही माथे पर हाथ मारते हैं। पंजाब का खजाना अढ़ाई वर्ष पहले भी खाली था और आज भी खाली है मगर यह केवल लोगों के लिए है। मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों तथा अफसरशाही के लिए यह पूरी तरह से भरा हुआ है। मंत्रियों का आयकर भी खजाने से दिया जाएगा, कर्मचारियों को चाहे वेतन न मिले। गत 20-25 वर्षों में मैंने आर्थिक पक्ष से किसी भी सरकार की हालत इतनी दयनीय नहीं देखी। वैसे दूसरी ओर इसके खर्चों का भी कोई अंत नहीं। खर्चे भी केवल अपनों का पेट भरने के लिए। नए सलाहकार, नए चेयरमैन, डायरैक्टरों तथा अन्य विभागों के सदस्यों की नियुक्तियां।

लोग कांग्रेस शासन से उकताए
मोटे तौर पर लोग कांग्रेस शासन से अढ़ाई-पौने तीन वर्षों में ही उकता गए हैं। अकालियों को लोगों ने पहले ही बेअदबी कांड तथा कई अन्य कारणों से मुंह नहीं लगाया। परिणाम सामने हैं। जो पार्टी पंजाब पर 10-10 साल लगातार शासन करती रही है, विधानसभा चुनावों में यह विरोधी पक्ष भी नहीं बन सकी। तीसरे नम्बर पर आई। लोकसभा चुनावों में इसके पल्ले केवल दो सीटें पड़ीं, वह भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की मेहरबानी से। कैप्टन ने पटियाला से अपनी पत्नी परनीत कौर को जितवा लिया तथा बठिंडा व फिरोजपुर से हरसिमरत बादल और सुखबीर बादल को जितवा दिया। यह कैप्टन तथा सुखबीर बादल के बीच दोस्ताना मैचों के कारण हुआ। इसी से नवजोत सिंह सिद्धू खीझ उठे थे। किसी ने उनका साथ नहीं दिया और आज वह मंत्रिमंडल से बाहर बैठे हैं। पंजाब की मौजूदा राजनीति पर एक नजर मार कर देखा जा सकता है कि केन्द्र में कांग्रेस के पांव नहीं लग सके इसलिए सिद्धू के पांव भी उखड़ से गए हैं। पंजाब कांग्रेस में वह चाहे विधायक हैं मगर पहले वह जैसे मंत्री की हैसियत से खुला खेल खेल रहे थे, अब शायद वैसे न खेल सकें। 

कैप्टन को उनकी चुप से कुछ बेचैनी तो हो सकती है मगर जैसे सरकार के अढ़ाई-पौने तीन वर्ष गुजर गए हैं, ऐसे ही बाकी समय के भी आसानी से बीतने की सम्भावना है। वैसे इस दौरान आम आदमी पार्टी यदि चाहे तो 2022 के विधानसभा चुनावों से पूर्व नवजोत सिंह सिद्धू को अंदरखाते अपने साथ जोड़ कर बड़ा पद लेने के लिए उनको राजी कर ले तो यकीनन राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल सकेंगे। लोग भी इस इंतजार में हैं। उनको नवजोत सिंह सिद्धू से पंजाब के लिए कुछ कर गुजरने की आशा है। बाबा नानक के 550वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर अगले माह खुल रहे करतारपुर गलियारे के जश्नों से सिद्धू गायब हैं पर इतिहास ने यह गलियारा खुल जाने का पक्का सेहरा सिद्धू के सिर सजा दिया है। यह भी कोई बड़ी बात नहीं कि सिद्धू को अपनों द्वारा जैसे राजनीतिक परिदृश्य से अलग कर दिया गया है, इमरान खान द्वारा 9 नवम्बर को करतारपुर गलियारे के उद्घाटन अवसर पर सिद्धू उनके मेहमान हों।-शंगारा सिंह भुल्लर
 


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