‘दल-बदलुओं’ को भाजपा में लेने के विरुद्ध पार्टी में ‘पनप रहा रोष’

Wednesday, Aug 21, 2019 - 01:55 AM (IST)

चुनावों में अभूतपूर्व सफलता से उत्साहित भाजपा नेतृत्व जहां देश में अपने साथ अढ़ाई करोड़ नए सदस्य जोडऩे के लिए प्रयत्नशील है वहीं बड़ी संख्या में अपने मूल दल छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की दूसरे दलों के बड़े-छोटे नेताओं में एक होड़-सी मची हुई है। हमने अपने 13 जुलाई के अंक में प्रकाशित लेख ‘दल बदलुओं को पनाह देने के विरुद्ध भाजपा में उभरता रोष’ में लिखा भी था कि ‘‘बेशक भाजपा नेतृत्व बांहें फैला कर दल बदलुओं का स्वागत कर रहा है परन्तु पार्टी के एक वर्ग में इसके विरुद्ध नाराजगी के स्वर भी उभरने शुरू हो गए हैं।’’ 

इसी पृष्ठभूमि में गोवा में गत मास कांग्रेस के 10 दल-बदलू विधायकों के भाजपा में शामिल होने पर भाजपा के वरिष्ठï नेता राजेंद्र अर्लेकर ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘‘जो कुछ भी हुआ है, वह ठीक नहीं है।’’ और अब 17 अगस्त को महाराष्ट्र भाजपा के वरिष्ठï नेता एवं पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे ने कहा कि ‘‘जिन नेताओं के विरुद्ध भाजपा कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगाती थी उन्हें पार्टी में शामिल करना कोई अच्छा विचार नहीं है। भाजपा अन्य दलों से अलग पार्टी के रूप में जानी जाती थी अत: इस छवि को नुक्सान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।’’ 

उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में कांग्रेस और राकांपा से अनेक नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया है। खडसे ने दूसरे दलों को छोड़ कर भाजपा में आने के इच्छुक लोगों की लम्बी कतार पर टिप्पणी करते हुए श्री नितिन गडकरी के एक बयान के हवाले से कहा कि : ‘‘भाजपा सत्ता में है इसलिए कई लोग निजी स्वार्थों के कारण इसमें शामिल हो रहे हैं और वे भाजपा के सत्ता से बाहर होने पर इसे छोड़ कर चले जाएंगे।’’’ विरोधी दल तो पहले ही भाजपा को ‘शिकारी पार्टी’ कहने लगे हैं।

लिहाजा अब दल-बदली को प्रोत्साहन देने के विरुद्ध भाजपा के भीतर से ही उठ रही आवाजें पार्टी नेतृत्व को सुन कर इस स्वार्थप्रेरित रुझान पर रोक लगानी चाहिए ताकि उन पर दल-बदली को बढ़ावा देने के आरोप न लगें और पार्टी की छवि को भी आघात न पहुंचे। इसके साथ ही लोकतंत्र की गरिमा की रक्षा के लिए ऐसा कानून भी बनना चाहिए कि जो उम्मीदवार जिस पार्टी से चुना जाए वह अपना कार्यकाल समाप्त होने तक उसी पार्टी में रहे और दल-बदल न कर सके।—विजय कुमार

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