सीमा पार से आए ‘कबूतरों’ को गंभीरता से लेने की जरूरत

Sunday, Oct 16, 2016 - 01:37 AM (IST)

(करण थापर): यदि आपको इस बात के प्रमाण की कभी भी जरूरत पड़ी हो कि प्रतिभा और पागलपन के बीच फर्क की रेखा बहुत ही मद्धम होती है, तो ऐसा लगता है कि विदेशी मीडिया को हमारे देश में इसके ढेर सारे प्रमाण हासिल हुए हैं। समस्या केवल एक ही है कि मैं निश्चय से यह नहीं कह सकता कि वे ऐसे प्रमाण दोस्ती की भावना से प्रस्तुत किए जा रहे हैं या दुश्मनी की। कुछ भी हो, दोनों ही हालतों में मजाक तो हमारा ही उड़ रहा है। 

जब यह रिपोर्ट आई कि पंजाब पुलिस के कब्जे में एक कबूतर है जिसके बारे में उनका मानना है कि यह पाकिस्तान से आया है और जासूस भी हो सकता है, तो इसी से प्रभावित होकर अमरीका की जानी-मानी अखबार ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने बहुत ही स्मरणीय सुर्खी से इसे प्रकाशित किया : ‘‘गुटरगू के खतरे से तिलमिलाए भारतीय अधिकारियों ने कबूतर को गिरफ्तार किया।’’ 

समाचार एजैंसी ए.एफ.पी. का कहना है कि यह कबूतर उर्दू में लिखा हुआ एक रुक्का लेकर आया था जो प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित था। 

इसमें लिखा था : ‘‘मिस्टर मोदी, हम 1971 वाले पाकिस्तानी नहीं रह गए। आज हमारा बच्चा-बच्चा भारत के विरुद्ध लडऩे को तैयार है।’’ हफिंग्टन पोस्ट का कहना है कि कबूतर 14 वर्षीय एक लड़के द्वारा पकड़ा गया था जो उसे सीधा पुलिस थाने ले आया।

वाल स्ट्रीट जर्नल ने कुछ दिलकश विवरण भी दिए हैं। इसका कहना है कि कबूतर का एक्स-रे लिया गया तो उसके पेट पर कुछ असाधारण निशान पाए गए थे। उसके बाद दो एक्स-रे और लिए गए लेकिन फिर भी ए.एस.आई. रशपाल सिंह का कहना है कि ‘‘अधिकारी अभी भी इस बारे में निश्चय से कुछ नहीं कह सकते कि कबूतर के मामले में कोई एतराज योग्य जानकारी मिली है।’’ अब सेना से परामर्श लिया जाएगा।

पंजाब पुलिस के एस.एस.पी. राकेश कौशल ने निश्चय ही स्थिति की गंभीरता से व्याख्या की। उन्होंने वाल स्ट्रीट जर्नल को बताया : ‘‘हमने सोचा था कि कबूतर शायद जासूस है। हम निश्चय से यह नहीं कह सकते कि इसे लश्कर ने ही भेजा है...। फिर भी तथ्यों की बार-बार जांच-पड़ताल करना बेहतर रहेगा... क्योंकि कानून तोडऩे वाले लोग हमेशा नए से नए हथकंडे अपनाते हैं। कोई नहीं जानता कि वे कौन-सी शरारत करेंगे। इस प्रकार का पंछी हाथ में आने के बाद हमारे सुरक्षा बल उन कबूतरों के बारे में चिंतित हैं जो अभी पकड़े नहीं गए हैं या अभी पाकिस्तान की ओर से भेजे जाने हैं।’’

इसी बीच पाकिस्तानी सोशल मीडिया ने कबूतर का ‘गुटरगूं खान’ के रूप में नामकरण कर दिया है और वे स्पष्ट तौर पर हमारी कीमत पर मजा ले रहे हैं। फिर भी यह कोई पहला मौका नहीं जब कबूतर ने इतनी सनसनी फैलाई हो। 

मेरी भांजी नारायणी ने मुझे बताया कि गुटरगूं खान पंजाब पुलिस की गिरफ्त में आने वाला दूसरा कबूतर है। पहला कबूतर 10 दिन पूर्व पकड़ा गया था और अभी भी पुलिस हिरासत में है। मेरा ख्याल है कि पुलिस आरोप दायर करने से पूर्व बहुत सलीके से साक्ष्य एकत्र कर रही है। गत वर्ष एक कबूतर पकड़ा गया था जिसके पंखों पर एक रहस्यमयी संख्या लिखी हुई थी। उस समय हरियाणा पुलिस के डी.एस.पी. हांस ने बताया था : ‘‘हमने इसकी चोंच के नीचे सायनायड का प्रमाण ढूंढने का भी प्रयास किया था।’’ एक उच्च कोटि के जासूसी अधिकारी गरुड़ शर्मा का कहना था : ‘‘हम इस कबूतर की सुन्नत के बारे में भी जानकारी एकत्र कर रहे हैं।’’

ब्रिटिश समाचार पत्र ‘गार्डियन’ ने स्पष्ट रूप में इस विषय पर लंबी-चौड़ी शोध की है और यह जानकारी जुटाई है कि यह पंछियों के माध्यम से केवल जासूसी तक सीमित बात नहीं है। अखबार का दावा है कि हाल ही में पंजाब में ऐसे ही संदेशों वाले गुब्बारे पकड़े गए हैं जैसा संदेश गुटरगूं खान लेकर आया था। यह समझ में आने वाली बात है कि कोई भी इसे केवल हवाबाजी कहकर टालने को तैयार नहीं। 

2013 में भारतीय सुरक्षा बलों ने एक मरा हुआ बाज पकड़ा था जिस पर एक छोटा-सा कैमरा फिट था। 2010 में एक कबूतर को इस आशंका से गिरफ्तार किया गया था कि शायद वह जासूसी के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। दुर्भाग्य की बात है कि अखबार ने यह उल्लेख नहीं किया कि इसके बाद क्या हुआ। फिर भी मैं यह सोचकर आश्चर्यचकित हूं कि क्या इस कबूतर को दोषी पाया गया था।

खेद की बात है कि जनेवा कन्वैंशन में ऐसा कोई उल्लेख नहीं कि जासूसी के आरोप में पकड़े गए पंछियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए। फिर भी वर्तमान में भारत और पाकिस्तान में जिस तरह खींचतान और अविश्वास की भावना चरम पर है, उसके मद्देनजर इस प्रकार के समाचारों को  केवल ‘पंचतंत्र की कहानियां’ या घटिया पत्रकारिता कहकर नहीं टाला जा सकता। देश की सुरक्षा को खतरा कई स्तरों पर दरपेश है, इसलिए हिरासत में लिए गए इन पक्षियों को गंभीरता से ही लिया जाना चाहिए।        
 

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