स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
punjabkesari.in Tuesday, Aug 13, 2024 - 05:32 AM (IST)
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे हर हाल में लेकर रहेंगे। भारत के लासानी स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ, विधिवेता और समाज सुधारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने शेर की तरह दहाड़ते हुए अपने उक्त शब्दों से सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए, विशाल संस्कृति एवं शूरवीरता को भुलाकर चादर तानकर सोए हुए भारतीयों में नए खून का संचार कर दिया। हकीकत में यह अंग्रेज हुकूमत के लिए एक चेतावनी ही नहीं बल्कि एक चुनौती भी थी। उनको कुछ अन्य केसों के साथ 6 वर्ष की कारावास में भेज दिया गया। उनके मुकद्दमे की पैरवी उस समय के प्रतिष्ठित बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। तिलक को भारत के राष्ट्रवाद का पितामाह कहा जाता है परंतु अंग्रेज उन्हें अशांति का पितामाह कहते थे।
जिस दिन महाराजा अशोक ने तलवार कमर से उतारकर जमीन पर रख दी, उसके परिणामस्वरूप ही देश विदेशी आक्रमणकारियों के लिए खुल गया। हूण, शक, यूनानी, ईरानीस दोरानी, मंगोल, तुर्क, पठान, अफगान, अंग्रेज, डच, फ्रांसीसी और पुर्तगालियों ने भी भारत के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। ईस्ट इंडिया कम्पनी के मुट्ठी भर अंग्रेज व्यापार करने के लिए भारत आए। परंतु हमारी कमियों और कमजोरियों को देखते हुए वह भारत के ही शासक बन बैठे। अंग्रेजों ने समूचे देश में एक ही प्रशासनिक व्यवस्था, एक ही न्यायिक व्यवस्था, एक तरह के कानून, एक तरह की करंसी और एक ही तरह की सरकारी सेवाओं का भी प्रबंध कर दिया था। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने भारत में राष्ट्रवाद को स्थापित करने में बड़ी सहायता की।
अंग्रेजों ने भारत के अंदर कई स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटियां स्थापित कर दी थीं। इस पश्चिमी शिक्षा से भारतीयों को पश्चिम के चिंतकों, दानिशमंदों, दार्शनिकों और साहित्यकारों की पुस्तकें पढऩे का भी मौका मिला और इसी शिक्षा प्रणाली से प्रजातंत्र, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, समाजवाद, साम्यवाद और बहुत सारी अन्य सूचनाएं उनको मिलने लगीं।
अंग्रेजी भाषा सारे देश की लिंगउवा फरेंका बोलचाल की भाषा बन गई। जबकि पहले कई भाषाएं और उप-भाषाएं होने के कारण एक-दूसरे के विचारों को समझना मुश्किल होता था। वास्तव में अंग्रेजी भाषा ने ही सबसे पहले एक मंच पर लोगों को एकत्रित होने का मौका दिया और भारत में भविष्य की स्वतंत्रता की नींव रखी गई। अंग्रेजों ने भारत के अंदर रेलवे का जाल बिछा दिया। कृषि क्षेत्र को प्रफुल्लित करने के लिए नहरें निकालीं। पोस्टल और टैलीग्राफ सिस्टम प्रणाली की भी स्थापना की। इस तरह लोगों का आपस में मेल-जोल आसानी से होने लगा। स्वतंत्रता प्रैस की स्थापना से लोगों के विचार समाचारपत्र में पढऩे को मिलने लगे। राष्ट्रवाद के इस आंदोलन में अमृत बाजार पत्रिका, द बंगाली, दी ट्रिब्यून, द इंडियन मिरर, द हिन्दू, द पायोनियर, द मेड्रास मेल, द मराठा और केसरी समाचार पत्रों ने भारतीयों को अपने अधिकारों के प्रति खुलकर जागरूक करवाया।
19वीं शताब्दी हकीकत में एक बड़े उथल-पुथल का युग था। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आॢथक, धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर बहुत परिवर्तन होने लगे। राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की। स्वामी दयानंद ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आंदोलन चलाया। स्वामी विवेकानंद ने भारत की प्राचीन संस्कृति का विश्व में प्रचार करके इसके गौरव को बढ़ाया और भारतीयों में जागृति पैदा की। देश में कूका आंदोलन ने जोर पकड़ा, सिंह सभा आंदोलन शुरू हुए और 1885 में लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी जन्म हुआ। 1885 से 1905 तक उदारवादी नेताओं का बोलबाला रहा जिनमें दादा भाई नारोजी, सुरिंदर नाथ बनर्जी, फिरोज शाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले और अन्य नेताओं ने भारतीयों की समस्याओं को अंग्रेजों के सामने समय-समय पर रखा।
1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का सांप्रदायिकता के आधार पर बंटवारा कर दिया। इस तरह एक हिंदू बहुल और एक मुस्लिम बहुल प्रदेश बना दिए गए। बंगाल को पुन: इकट्ठा रखने के लिए 1905 में लाला लाजपत राय, लोक मान्य तिलक और विपन चंद्र पाल ने देश में जबरदस्त आंदोलन चलाया। इन्हें ‘लाल, बाल और पाल’ के नाम से पुकारा जाता था। अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमानों की एकता को देखते हुए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाना शुरू कर दिया। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो को अलीगढ़ कालेज के प्रिंसिपल ने आगा खां के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल लेकर शिमला मिलवाया और मिंटो के इशारे पर राष्ट्रवाद की बढ़ती हुई शक्ति को कमजोर करने के लिए आगा खां से मुस्लिम लीग का 1906 में निर्माण करवा दिया ताकि मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग रखा जाए।
पंजाब में भी किसानों ने आंदोलन चला दिया जिसके परिणामस्वरूप लाला लाजपत राय और शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह को देश निकाला दे दिया गया। गदरी बाबाओं के आंदोलन को भी सख्ती से कुचल दिया गया। 20 को फांसी की सजा, 58 को ताउम्र जेल और 60 के करीब को काले पानी की सजा दे दी गई। यह संगठन लाला हरदयाल ने अमरीका में स्थापित किया था। इसी तरह गुरदित्त सिंह के कामागाटामारू जहाज के यात्रियों को भी कड़ी सजा दी गई। आजादी के इन आंदोलनों को तो कुचल कर रख दिया गया। परंतु भारतीयों में आजादी की लहर जोर पकड़ती रही। 1915 में महात्मा गांधी ने भारत आकर आजादी की लहर को अपने हाथों में ले लिया। प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 में भारतीयों ने अंग्रेजों की सेनाओं में भर्ती होकर बड़ी कुर्बानियां दीं और सरकार ने यह वायदा किया कि लड़ाई समाप्त होने के बाद उन्हें जिम्मेदार सरकार दी जाएगी।
परंतु सरकार देने की बजाय अंग्रेजों ने रोलर एक्ट बना दिया जिसके बाद जलियांवाला बाग की घटना ने सारे देश को हिलाकर रख दिया। 1919 से पहले भारत अंग्रेजों के नियंत्रण में था और बाद में महात्मा गांधी के। महात्मा गांधी ने पहले असहयोग आंदोलन फिर अवज्ञा आंदोलन और 1929 में लाहौर में रावी नदी के किनारे पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा एक विशाल सम्मेलन में पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की। 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी मार्च में अंग्रेजों की लाठियां खाईं, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने देश छोडऩे का फैसला कर लिया। 1947 में देश को तो स्वतंत्रता मिल गई लेकिन इसे दो हिस्सों में बांट दिया गया-भारत और पाकिस्तान। बंटवारे के दौरान 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। 2 करोड़ से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा और हकीकत में यह विश्व का सबसे बड़ा पलायन था। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के विकास, खुशहाली और सामाजिक भाईचारे की एक बड़ी मजबूत नींव रखी, जिस पर हम सबको आज गर्व है और भारत विश्व के देशों में एक बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारत के उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल ने अपनी बुद्धिमता और दूरदर्शिता से 565 स्वतंत्र रियासतों को भारत में मिलाकर राष्ट्र का एकीकरण किया। उनके इस करारनामे के कारण उन्हें लौह पुरुष के नाम से पुकारा जाता है। हकीकत में राष्ट्र की स्वतंत्रता संघर्ष की धुरी केवल और केवल महात्मा गांधी ही थे। राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए हम सब को स्वतंत्रता, समानता और आपसी भाईचारे के संदेश पर चल कर इसकी तरक्की में योगदान देना चाहिए। हकीकत में राष्ट्रवाद ने देश में भावनात्मक एकता को जन्म दिया और इसी भावना से देश को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। हम सब स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों, काले पानी की सजा भुगतने वालों, अंग्रेजों की लाठियां खाने वालों और लाखों लोगों जो जेलों में गए, के सामने नतमस्तक हैं। देश की स्वतंत्रता में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाइयों का योगदान अति प्रशंसनीय है। देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हमें सब धर्मों के लोगों का समान आदर करना होगा और सबको आगे बढऩे के समान मौके प्रदान करने होंगे। हिंसा की नीति को त्याग कर अहिंसक तरीके से अपनी समस्याओं का समाधान करना ही हमारा राष्ट्रीय धर्म है। राष्ट्र सदा-सदा के लिए सलामत रहे और हम भारतीय खुशहाली के पथ पर अग्रसर रहें।-प्रो. दरबारी लालपूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा