रूढ़िवादी स्कूल शिक्षा प्रणाली से मुक्ति जरूरी है

punjabkesari.in Sunday, Oct 27, 2024 - 05:42 AM (IST)

ताजा समाचार कहते हैं कि दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में 10 ‘बस्ता मुक्त दिवस’ लागू करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन निर्धारित दिनों में बच्चों को बिना बैग के स्कूल आना होगा। शिक्षा निदेशालय ने एक सर्कुलर में सभी स्कूलों के प्रमुखों को निर्देश दिया कि वे कक्षा 6 से 8 तक के विद्यार्थियों के लिए स्कूलों में बस्ता मुक्त 10 दिन लागू करें। सर्कुलर में कहा गया है कि ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिश के अनुसार निर्धारित किए गए हैं और इनका उद्देश्य ‘स्कूल में छात्रों के सीखने को एक आनंदमय और तनाव मुक्त अनुभव का माहौल तैयार करना है।’  

भारी स्कूल बैग छात्रों के स्वास्थ्य और सेहत के लिए एक गंभीर खतरा है। बढ़ते बच्चों पर इसका गंभीर, प्रतिकूल शारीरिक प्रभाव पड़ता है, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी और घुटनों को नुकसान पहुंच सकता है। इससे उनमें चिंता भी पैदा होती है। इसके अलावा, बहुमंजिला इमारतों में चलने वाले स्कूलों में बच्चों को भारी स्कूल बैग के साथ सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं, जिससे समस्या और स्वास्थ्य संबंधी परिणाम और भी बढ़ जाते हैं। यह भारी बोझ इसलिए भी है क्योंकि बच्चे हर दिन कक्षा में पाठ्य पुस्तकें, गाइड, गृहकार्य नोटबुक, रफ वर्क नोटबुक आदि लाते हैं। इसलिए, स्कूलों में क्या लाना है, इस बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। 

तेलंगाना के कुछ जिलों में अनुमानित स्कूल बैग का भार प्राथमिक स्तर पर लगभग 6 से 12 किलोग्राम तथा हाई स्कूल स्तर पर 12 से 17 किलोग्राम फिनलैंड और सिंगापुर जैसे देशों की स्कूल शिक्षा में ऐसा कुछ भी नहीं है और यह भी सच है कि हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली में भी भारी बैग नहीं होते थे कुछ समय पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, पहली से 12वीं क्लास तक के लिए, होमवर्क और स्कूली बस्तों को लेकर ताजा तरीन दिशा-निर्देश दिए गए थे। इसे तमाम राज्य सरकारों के साथ सांझा किया गया, और साथ ही एक सर्कुलर जारी करके, उन्हें इसे लागू करने को कहा गया था लेकिन इसके खास नतीजे नहीं निकले हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि छात्रों के लिए भारी स्कूल बैग एक बड़ी दिक्कत के रूप में विदित हुआ है कुछ समय पहले एक राष्ट्रीय संगठन द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई और हैदराबाद सहित 10 बड़े शहरों में 2000 से ज्यादा बच्चों और उनके पैरंट्स पर मार्च-अप्रैल के दौरान एक सर्वे किया गया था। इसमें देखा गया कि 12 साल से कम उम्र के करीब 1500 बच्चे ठीक तरीके से नहीं बैठ सकते और उनमें ऑर्थोपेडिक समस्याएं होती हैं। अधिकतर पैरेंट्स ने शिकायत की कि एक दिन में 7 से 8 क्लास होती हैं और हर सब्जैक्ट में कम से कम तीन किताबें (टैक्स्ट बुक, नोटबुक, वर्कबुक) होती हैं। इसके अलावा बच्चे स्पोर्ट्स किट, स्विमबैग, क्रिकेट किट वगैरह भी कैरी करते हैं। 5 से 12 साल की उम्र के बीच स्कूली बच्चे अपने बैग में काफी ज्यादा वजन उठाते हैं, जिसके कारण बच्चों में पीठ दर्द और तनाव का खतरा ज्यादा होता है। सर्वे में कहा गया है, ‘‘करीब 82 फीसदी बच्चे अपनी पीठ पर अपने वजन का करीब 35 फीसदी भार ढोते हैं।

भारी स्कूल बैग के कारण बच्चों में पीठ की समस्या बढ़ जाती है जो अक्सर उम्र के साथ और बढ़ती चली जाती है भारी स्कूल बैग से मुक्ति राष्ट्रीय  शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय स्कूल शिक्षा में सुधार हेतु यह एक अच्छा प्रयास है बशर्ते इसे लागू करने में स्कूल चलाने वालों और शिक्षा प्रशासन के इरादे साफ रहें। देश के सभी राज्यों को स्कूल जाने वाले नन्हें मुन्नों को और अन्य छात्रों को तनाव मुक्त शिक्षा के लिए वांछित अकादमिक माहौल उपलब्ध करना होगा इससे स्कूल कक्षा में एनरोलमैंट बेहतर होगी क्योंकि हमारे पास एक रूढि़वादी शिक्षा प्रणाली है जो मूल रूप से गुणवत्ता के बजाय मात्रा पर ध्यान केंद्रित करती है।

आज छोटे-छोटे बच्चों-छात्रों के भारी-भरकम स्कूली बैग से न केवल बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है बल्कि वे पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते, इस  भारी बैग से छात्रों को मुक्त करने के लिए गैर-जरूरी पाठ्यक्रम और विषयों की हर कक्षा के हर स्तर पर पहचान जरूरी है इसके लिए सभी राज्यों में पाठयक्रम बनाने वाली रैगुलेटरी बॉडी आगे आए तो बेहतर होगा।-डा. वरिन्द्र भाटिया
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News