चीन से चार-पांच दशक पीछे हम

Tuesday, Jul 02, 2019 - 04:32 AM (IST)

नेपोलियन बोनापार्ट ने कभी कहा था, ‘‘भीमकाय चीन अभी सो रहा है, उसे सोने दो क्योंकि जब वह उठेगा तो संसार हिलने लगेगा।’’ वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में शायद ही ऐसा कोई कोना हो जहां चीन के उत्थान पर बहस न हो रही हो। अभी हाल ही में मुझे दक्षिण-पश्चिमी चीन में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने का अवसर मिला। 

इस चीन प्रवास के दौरान मेरा सामना वहां के समाज, संस्कृति और आॢथक प्रगति के विभिन्न पहलुओं से हुआ जिससे हमारे देश के अधिकांश लोग अपरिचित हैं। वैसे तो दक्षिणी पश्चिमी भाग को मुख्य चीन से कम विकसित माना जाता है लेकिन वहां की चकाचौंध से कोई भी आकॢषत हुए बिना नहीं रह सकता। पूरे साल रहने वाले सुहावने मौसम के कारण कुनमिंग को ‘सिटी ऑफ सिं्प्रग’ या ‘सिटी ऑफ इंटर्नल सिं्प्रग’ भी कहा जाता है। योजनाबद्ध विकास, आधारभूत संरचना और सुविधाएं, हरियाली, साफ-सफाई और स्वच्छ हवा की मौजूदगी इसे दिल्ली से कई मायनों में बेहतर बनाती है। गगनचुम्बी इमारतों की बेशुमार संख्या, साफ-सुथरी और चौड़ी सड़कों तथा अन्य सुख-सुविधाओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि भारत चीन से कोई चार-पांच दशक पीछे है। 

चीन ने न केवल अपनी ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को संजोकर रखा है बल्कि देशी और विदेशी सैलानियों को ध्यान में रखते हुए ऐसे क्षेत्रों को समुचित रूप से विकसित भी किया है। अपने इस अल्प चीन प्रवास के दौरान मैंने मुख्य रूप से च्युश्यांग प्राकृतिक क्षेत्र और प्राचीन डाली शहर के पर्यटन स्थलों को देखा। कुनमिंग से च्युश्यांग प्राकृतिक क्षेत्र और प्राचीन डाली शहर जाते हुए रास्तों में प्रकृति की अनुपम छटा के दर्शन होते हैं। पहाड़ों के बीच से गुजरता हुआ हाईवे आपको एक अलग ही दुनिया का अहसास करवाता है। पहाड़ों को काट कर या उनमें छेद करके बनाई गई तीन-चार किलोमीटर लम्बी सुरंगें चीन के लोगों की मेहनत और उनकी प्रगति को दर्शाती हैं। कुनमिंग से प्राचीन डाली शहर जाने वाली सड़क उसी हाईवे का हिस्सा है, जिसे चीन अब बी.आर.आई. के अन्तर्गत बी.सी.आई.एम. (बंगलादेश, चीन, इंडिया और म्यांमार) का भाग बनाना चाहता है। 

च्युश्यांग प्राकृतिक क्षेत्र अद्भुत एवं अद्वितीय कास्र्ट गुफाओं तथा तंग नदी घाटियों से भरा हुआ है तथा यहां पर चीनी परिपाटी और सांस्कृतिक परिदृश्य का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। इन संकरी गुफाओं और घाटियों में चीन के स्थानीय व्यापार मॉडल से भी सामना होता है। इस क्षेत्र में कुछ चित्रोपम स्थल भी हैं जहां पेशेवर छायाकार सैलानियों को मुफ्त में फोटो ङ्क्षखचवाने के लिए बुलाते रहते हैं। जो भी अपनी फोटो ङ्क्षखचवाते हैं उन्हें चाबी के छल्ले में एक बहुत ही छोटी फोटो लगाकर मुफ्त में दी जाती है और जो उसका बड़ा प्रतिरूप चाहते हैं उन्हें 40 चीनी युआन (लगभग 400 रुपए) का भुगतान करना पड़ता है। चूंकि ये तस्वीरें बहुत ही आकर्षक होती हैं इसलिए लोग उन्हें अक्सर खरीद लेते हैं। मैं भी इस मुफ्तखोरी का शिकार हुआ और 40 युआन देकर बड़ी तस्वीर ली। कुछ इसी तरह का वाक्या तब पेश आया जब मैं रोपवे में बैठकर प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेते हुए गुफा से बाहर आ रहा था। एक अंतर यह था कि इस बार मेरी बिना इजाजत के ही तस्वीर खींच ली गई थी। 

एक अन्य बात, जिसने मुझे काफी आश्चर्यचकित किया वह थी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर भी शोर-शराबे का अभाव। सामान्यत: पर्यटन स्थलों और बाजारों में जमा भीड़ के कारण शोर-शराबा आम होता है लेकिन चीन में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। साथ ही देर रात में भी चीनी युवतियां बिना किसी सुरक्षा संबंधी ङ्क्षचता के पर्यटन स्थलों के आसपास छोटे-मोटे सामान बेच रही थीं। यह मेरे लिए अपने आप में एक नया अनुभव था। वर्ष 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब यूनान प्रांत गए थे तो अपने लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि हरे पहाड़ और साफ पानी हमारे लिए सोने-चांदी से कम नहीं हैं, इसलिए इनका संरक्षण करना अनिवार्य है। चीनी लोगों, जो अपने नेता की बहुत इज्जत करते हैं, ने इसे पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है। इसकी झलक हमें उनके पर्यटन स्थलों में मिलती है जहां किसी भी तरह की गंदगी और कूड़े का नामो-निशान तक नहीं मिलता। डाली में अर्खाइ झील और वहां की पर्वतमालाएं इसकी गवाही देती हैं। 

चीनी लोग समय के पाबंद
चीनी लोग समय के बड़े पाबंद होते हैं और एक तरह से मशीनी समयनिष्ठ होते हैं। जल्दी उठना और जल्दी सो जाना उनकी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है। जहां तक उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का प्रश्र है, चीन उनका समुचित दोहन करता है। प्राचीन डाली शहर से पहले हमें सड़कों के किनारे सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा से संचालित सड़कों को अंधेरे में रोशन करने वाली बत्तियां दिखीं, साथ ही दूर पहाड़ों पर बड़ी-बड़ी पवनचक्कियों का समूह भी दिखा। यह इस ओर इशारा करता है कि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों पर चीन अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है। 

आमतौर पर लोग विदेशी पर्यटकों से हिलते-मिलते नहीं हैं और न ही बातचीत में दिलचस्पी दिखाते हैं। या तो यह भाषायी विकलांगता के कारण है या चीनी व्यवस्था के अन्तर्गत हुई उसकी ट्रेङ्क्षनग का परिणाम है। चीन के ज्यादातर विश्वविद्यालय तीन या चार वर्षीय पाठ्यक्रम ही संचालित करते हैं और शिक्षा पर आने वाला खर्च सामान्य लोगों के लिए वहन करना आसान नहीं है। शायद यही कारण है कि अधिकतर लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने की बजाय रोजगार पाने को ज्यादा तरजीह देते हैं। ऐसी व्यवस्था चीन में श्रम आधारित उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक बनाती है। 

च्युश्यांग प्राकृतिक क्षेत्र से लौटते समय एक जगह हम लोग रास्ता भटक गए और एक स्थानीय बाजार से होते हुए निकले। यहां आकर ऐसा लगा कि शहर और पर्यटन स्थलों की चकाचौंध अचानक मद्धम पडऩे लगी। बाजार में छाए सन्नाटे ने चीनी अर्थव्यवस्था में आ रहे ठहराव की ओर इशारा किया। चीन में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कुछ विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जब कभी भी बातचीत के दौरान उनका जिक्र आया तो मैंने यह महसूस किया कि कहीं न कहीं बहुसंख्यक लोग उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं और उनसे भेदभाव करते हैं, उन्हें ई-पीपल, वा-पीपल और बाई-पीपल कह कर बुलाते हैं। मुझे चीन के अंदर सड़क मार्ग से यात्रा करने के दौरान पहाड़ों पर छोटी-छोटी मंदिरनुमा संरचनाएं दिखाई दीं, जो वास्तव में मरे हुए अल्पसंख्यक लोगों की कबें्र थीं। बातचीत में पता चला कि अब अल्पसंख्यक लोग अपने मरे हुए लोगों को दफना नहीं सकते क्योंकि सरकार ने जमीन और पहाड़ों को बचाने के लिए इस पर रोक लगा दी है। 

अंत यही कि चीन का एक वैश्विक ताकत के रूप में उभरना कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि एक यथार्थ है। चीन के अनुभव और विशेषज्ञता से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन, सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण, प्राकृतिक स्थलों को पर्यटन के लिए उपयुक्त बनाना और उन्हें साफ-सुथरा रखना चीन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि चीन के समक्ष कोई समस्या और मुद्दे नहीं हैं। बुनियादी तौर पर दिखाई देने वाले विकास का चरमोत्कर्ष संभवत: हो चुका है और इस संदर्भ में अब बहुत कुछ किया नहीं जा सकता। चीन की अर्थव्यवस्था में अब एक तरह का ठहराव दिखाई दे रहा है और शायद यही वजह है कि उससे निपटने के लिए तथा आर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए वह बी.आर.आई. जैसी बड़ी बहुराष्ट्रीय परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है। 

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