अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए जी-20 जैसे मंच जरूरी

Saturday, Jul 03, 2021 - 04:42 AM (IST)

राजनयिक संबंधों के लिए जी-20 जैसे अंतर-सरकारी मंच महत्वपूर्ण हैं। 2021 में इटली के पास इसकी अध्यक्षता है और अभी हाल ही में इस समूह की विदेेशमंत्री स्तरीय बैठक में वैश्विक शासन को लेकर विश्व समुदाय के लिए कई लाभदायक विचार प्रस्तुत किए गए, जो भविष्य के लिए सही रणनीति का विश्लेषण करने के लिए उपयोगी हैं। 

अमरीका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत समन्वय, सहयोग और भागीदारी की बात रखी। चीन की ओर से वैक्सीनेशन, चिकित्सा विज्ञान पर सहयोग, कोविड-प्रतिक्रिया प्रयासों का समन्वय, विकासशील देशों के लिए मजबूत समर्थन प्रदान करने पर प्रकाश डाला गया। वहीं भारत के विदेश मंत्री डा. एस. जयशंकर ने वर्तमान स्थिति को देखते हुए समय की आवश्यकता के अनुसार वैश्विक नीति निर्माण में सटीक प्रतिबिंब और साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए विनिर्माण तथा स्वास्थ्य के सन्दर्भ में  विकेन्द्रीकृत वैश्वीकरण की आवश्यकता को उजागर किया। 

जब पूरे विश्व के सामने महामारी के कारण काफी कठिन परिस्थितियां और प्रश्र सामने आए तो इस बैठक में हर देश की ओर से विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए ज्यादा से ज्यादा वैश्विक सहयोग और संस्थागत बहुपक्षवाद में विस्तार पर बल दिया गया। आज हर देश के सामने यही प्रमुख चुनौती है कि स्व-हित को सुरक्षित रखते हुए सहयोग के साथ वैश्विक विषयों का सामना करना।

वैश्वीकरण ने दुनिया के सामने अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों की पृष्ठभूमि को एकदम बदल दिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लेकर हर पल बदलती तकनीक ने हमारे जीवन को जोड़ा और साथ ही अध्ययन के दायरों पर नए आयाम स्थापित किए। जलवायु परिवर्तन, महामारी, आॢटफिशियल इंटैलीजैंस आदि जैसी कई समस्याओं ने ‘घरेलू क्या है और क्या अंतर्राष्ट्रीय कहा जा सकता है’, की सीमाओं पर सवाल उठाया। आज इसी जटिल वास्तविकता और वैश्विक स्तरों के दोहरे पक्ष हेतु, सहयोग की दिशा में एक सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अनिवार्य है। 

वैश्वीकरण को लेकर भी कई मंचों पर भारत की ओर से सुधार की गुहार लगाई गई है। इस प्रक्रिया ने हमें नि:संदेह फायदे तो दिए लेकिन साथ ही कुछ स्तर तक लाभ सीमित होना, ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी, पश्चिमी मूल्यों के प्रति झुकाव, बदलती अंतर्राष्ट्रीय तस्वीर का अधूरा प्रतिनिधित्व आदि जैसे कारणों के लिए इसकी आलोचना भी हुई है। बीते समय में दुनिया ने स्थानीय भावनावाद का उदय देखा, जहां पैरिस शांति समझौते से लेकर ना टा तक, अन्योन्याश्रयता और सहयोग के भाव को निराशा मिली। दुनिया एक बार फिर नए रास्ते पर है, जिसमें आवश्यक है कि हम प्राप्त किए गए लाभ को समेकित करें और गलतियों को भी सुधारें। 

वैश्विक शासन की चुनौतियां जटिल हैं जिसमें बहुआयामी रणनीति की जरूरत है, जो जमीनी चिंताओं की नींव पर आधारित हो। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विचार, जिसे बैठक में उजागर किया गया, उसके लिए इसी भावना को सामने रखकर काम किया जाना चाहिए। हमारी वैश्विक समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि इनको ठीक करने के किसी भी दृष्टिकोण को सभी देशों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अपनाना चाहिए। दुनिया उन समाधानों से समृद्ध नहीं हो सकती जो जमीनी हकीकतों को नजरअंदाज करके बनाए गए हों। 

यह प्रस्ताव कि बहुपक्षवाद और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जारी रहना चाहिए, स्वागत-योग्य है लेकिन भविष्य का रास्ता समावेशिता और समानता के आधार पर बनाया जाना चाहिए। यथार्थवादी धारणा है कि राज्य प्राथमिक अभिनेता है। नि:संदेह यह सही है लेकिन आज राज्यों को कोविड के बाद के समय में पुर्ननिर्माण के बड़े कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग, नागरिक समाज, अन्य संगठनों के समर्थन की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की इस सच्चाई को राजनेता नजरअंदाज नहीं कर सकते।-डॉ.आमना मिर्जा

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