पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी पार्टी को क्या ‘नसीहत’ दें

Sunday, Feb 14, 2016 - 01:24 AM (IST)

(अरुण जेतली): भूतपूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कभी-कभार ही सार्वजनिक तौर पर बयान देते हैं, लेकिन जब वे कोई बात कहते हैं तो देश को पूरी तन्मयता से उन्हें सुनना चाहिए। वे राष्ट्र के विवेक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनसे दलगत राजनीति से परे होने की उम्मीद  की जाती है, रचनात्मक सलाह की अपेक्षा की जाती है और यहां तक कि उनसे समय-समय पर व्यापक राष्ट्रीय हित में कार्य करने के उद्देश्य से अपने राजनीतिक दल को भी एक सशक्त संदेश देने की उम्मीद की जाती है। पूरे सम्मान के साथ मैं पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से ऐसी ही अपेक्षा रखता हूं। 

 
मैंने ‘इंडिया टुडे’ के नवीनतम संस्करण में उनका साक्षात्कार पढ़ा, विशेष रूप से उनकी इस चिन्ता के बारे में कि प्रधानमंत्री और सरकार विपक्ष से संवाद स्थापित नहीं करती। उनका मानना है कि सरकार देश की अर्थव्यवस्था को और सुदृढ़ करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर रही है।
 
मुझे यकीन है कि अगर डा. सिंह ने निष्पक्षतापूर्वक वर्तमान सरकार का विश्लेषण किया होता, तो वास्तव में उनको एहसास हुआ होता कि भारत में एक ऐसी सरकार है जहां प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम समझा जाता है, जहां प्राकृतिक संसाधनों का बिना भ्रष्टाचार के पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से आबंटन होता है, जहां उद्योगपतियों को अपनी फाइलों के निपटारे अथवा किसी निर्णय के लिए नार्थ ब्लाक का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ता, जहां पर्यावरण संबंधी मंजूरी नियमित तौर पर निष्पादित की जाती है, न कि इन्हें किसी दुवचारों अथवा पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर रोका जाता है। क्या वाकई सरकार की कार्य संस्कृति में कोई बदलाव नहीं आया है? 
 
यू.पी.ए. सरकार के दौरान, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को न तो नार्थ ब्लाक द्वारा और न ही स्वयं के बोर्डों द्वारा चलाया जा रहा था बल्कि वे 24,अकबर रोड से नियंत्रित होते थे। ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की बुनियादी चुनौतियों को यू.पी.ए. सरकार के दौरान सुलझाया नहीं गया। यह वर्तमान सरकार है जो विगत की इन चुनौतियों का समाधान कर रही है।
 
कई ठप्प पड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं अब शुरू हो चुकी हैं। बड़ी चुनौतियों के बावजूद विश्व पटल पर भारत की छवि पालिसी पैरालाइसिस से निकलकर बेहतर संभावनाओं वाले देश के रूप में परिवर्तित होने की यात्रा, सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के रूप में आगे बढऩे की है।
 
विपक्ष के साथ विचार-विमर्श के दौरान कांग्रेस को छोड़कर लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने जी.एस.टी. का समर्थन किया था, लेकिन कांग्रेस ने यू-टर्न ले लिया। संसदीय मामलों के मंत्री और खुद मैंने संसद में हर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के साथ जी.एस.टी. पर विचार-विमर्श किया है। क्या कांग्रेस की ‘संवैधानिक कैम्प’ पर स्थिति राजनीति से प्रेरित नहीं है? एक अर्थशास्त्री के तौर पर डा. सिंह को अपनी पार्टी को सलाह देनी चाहिए कि संविधान में कर की दरें निर्धारित करने की व्यवस्था नहीं की गई है। राष्ट्र वरिष्ठ नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे राजनीतिज्ञों से यही अपेक्षा रखता है। 
 
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