भारत के गहरे दोस्त जापान के पूर्व प्रधानमंत्री ‘शिंजो आबे’ नहीं रहे

punjabkesari.in Saturday, Jul 09, 2022 - 04:13 AM (IST)

जापान एक शांतिप्रिय देश के रूप में जाना जाता है। इसीलिए जब 8 जुलाई को इसके पूर्व प्रधानमंत्री 67 वर्षीय ‘शिंजो आबे’ की ‘तेतसुया यामागामी’नामक एक पूर्व सैनिक ने गोली मार कर हत्या कर दी तो समूची दुनिया स्तब्ध रह गई। ‘शिंजो आबे’ के पीछे ही लगभग 10 फुट की दूरी पर खड़े हमलावर ने हमले के लिए पारम्परिक बंदूक का नहीं बल्कि कैमरे की शक्ल जैसी विशेष रूप से बनाई गई बंदूक का इस्तेमाल किया। 

पहली गोली चूक जाने के बाद उसने दोबारा उन पर गोली चलाई। गोली लगते ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह अत्यंत गंभीर हालत में जमीन पर गिर कर बेहोश हो गए। उन्हें तुरंत हैलीकाप्टर द्वारा ‘नारा मैडीकल यूनिवर्सिटी अस्पताल’ में पहुंचाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। घटना के समय ‘शिंजो आबे’ जापान की संसद के उच्च सदन के लिए 10 जुलाई को होने वाले चुनाव के सिलसिले में ‘नारा’ शहर में सड़क के किनारे आयोजित एक चुनाव प्रचार सभा को संबोधित कर रहे थे। 

सर्वाधिक लम्बे समय तक जापान पर शासन करने वाले ‘शिंजो आबे’ पहले 2006 में एक वर्ष और फिर 2012 से 2020 तक 8 वर्ष देश के प्रधानमंत्री रहे। उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए समूचा जापान ही नहीं बल्कि अधिकांश विश्व समुदाय प्रार्थना कर रहा था। 

पुलिस ने घटनास्थल से हमलावर को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन जापान जैसे शांत देश में हुए इस हमले को लेकर अनेक प्रश्र खड़े हो गए हैं कि क्या हमलावर जापान में बढ़ रही महंगाई को लेकर नाराज था, क्या यह विपक्ष की कोई साजिश है, क्या इस हमले के पीछे विदेशी ताकतें (जैसे चीन या उत्तर कोरिया) शामिल हैं, क्या यह हमला भ्रष्टाचार के विरुद्ध ‘शिंजो आबे’ की कठोर नीतियों से परेशान किसी संगठन की ओर से करवाया गया? 

‘शिंजो आबे’ ने कई ऐसे फैसले किए जिनसे भ्रष्टाचार तथा अन्य गलत काम करने वाले प्रभावित हुए। उन्होंने जापान में आॢथक सुधार लागू करने के लिए काफी काम किया। इन सुधारों की बदौलत जापान दुनिया की  प्रमुख अर्थव्यवस्था बन पाया। उन्होंने देश की प्रतिरक्षा और विदेश नीति के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए। वह जापान की सैन्य प्रतिरक्षा को भी विस्तार देना चाहते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापानी सैनिकों को पहली बार विदेशी धरती पर लडऩे के लिए भेजने की स्वीकृति देना भी उनकी उपलब्धियों में दर्ज है। 

4 देशों भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमरीका पर आधारित संगठन ‘क्वाड’, जिसे चीन एशिया में अपने लिए एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखता है, के गठन के संबंध में पहल करने का श्रेय भी ‘शिंजो आबे’ को ही जाता है। ‘क्वाड’ का वास्तविक उद्देश्य चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगा कर उसे उसकी सीमाओं तक ही सीमित करना, उस पर रणनीतिक दृष्टि से नजर रखना और उससे सुरक्षा की नीति बनाना रहा है। इसीलिए चीन इस संगठन को अपने लिए न सिर्फ खतरा बल्कि सबसे बड़ा दुश्मन भी मानता है। 

‘शिंजो आबे’ के शासनकाल में भारत के साथ जापान के संबंधों में मजबूती आई। जापान को भारत का भरोसेमंद मित्र और प्रमुख आॢथक सहयोगी बनाने में ‘शिंजो आबे’ का बड़ा योगदान था तथा जापान की ओर से भारत को ‘बुलेट ट्रेन’सहित अनेक बड़ी परियोजनाओं में सहयोग प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने उनके निधन पर 9 जुलाई को एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। 

‘शिंजो आबे’ जैसे विवाद रहित नेता की हत्या से एक बार फिर यह सिद्ध हो गया है कि शांति विरोधी नकारात्मक शक्तियां आज लगभग समूचे विश्व पर किस कदर हावी होती जा रही हैं। जापान में गन कल्चर नहीं है तथा वहां किसी हथियार का लाइसैंस प्राप्त करना लगभग असंभव होने के कारण यह सुरक्षा के लिहाज से विश्व के सबसे बेहतर देशों में एक माना जाता है परंतु अब पूर्व प्रधानमंत्री ‘शिंजो आबे’ की हत्या की घटना ने जापान की सुरक्षा प्रणाली पर गंभीर प्रश्र चिन्ह लगा दिया है।—विजय कुमार 


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