सख्त कोविड लॉकडाउन के चलते चीन छोड़ने को मजबूर विदेशी

punjabkesari.in Sunday, Nov 13, 2022 - 05:58 AM (IST)

चीन में सख्त लॉकडाऊन से तंग आकर विदेशी चीन छोड़कर भागने को मजबूर हो गए हैं। दो दशक पहले जब चीन अपनी आर्थिक तरक्की की राह पर अग्रसर था तो विदेशी कंपनियां चीन के अलग-अलग शहरों में अपने कार्यालय खोल रही थीं, अपने विनिर्माण केंद्र चीन में स्थापित कर रही थीं और इसके साथ बड़ी संख्या में विदेशियों ने चीन को अपना पड़ाव बना लिया था। 

चीन आने वालों में न सिर्फ उद्योगपति, बल्कि व्यापारी, विद्यार्थी और शोधकर्मी भी शामिल थे। इनमें से कई विदेशियों ने चीनी लड़कियों से शादी कर यहीं अपना घर बसा लिया था, लेकिन चीन से शुरू हुई कोविड महामारी और उसके बाद चीन सरकार की तरफ से लगाए गए सख्त लॉकडाऊन के कारण चीन में रहने वालों का जीना मुश्किल हो गया है। 

देसी-विदेशी कंपनियों का व्यापार पूरी तरह से ठप्प हो गया है, फैक्टरियों में कर्मचारी लॉकडाऊन के कारण काम नहीं कर सकते, बंदरगाहों और गोदामों में तैयार उत्पाद रखा हुआ है लेकिन उसे विदेशों में पहुंचाने के लिए न तो मालवाहक जहाज चीन आ रहे हैं और न ही यहां से कोई सामान विदेशों में जा रहा है। ऐसे में कई विदेशी कंपनियों ने चीन से उड़ान भर कर वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड और भारत जैसे देशों का रुख कर लिया, जहां से आपूर्ति शृंखला के बाधित होने की कोई आशंका नहीं है। 

वर्ष 2004 से ही चीन ने प्रतिभाशाली विदेशियों को पश्चिमी दुनिया की तर्ज पर अपने देश में न्यौता देना शुरू किया था, जिससे प्रतिभाशाली और प्रशिक्षित विदेशियों के आगमन से चीन में तरक्की की रफ्तार और तेज होगी। इसके 4 वर्ष बाद ही वर्ष 2008 में चीन ने एक कार्यक्रम चलाया था, जिसका नाम था ‘अ थाऊजैंड टैलेंट्स प्रोग्राम’, यानी एक हजार प्रतिभाशाली कार्यक्रम। इसे बहुत तेजी के साथ शुरू किया गया था, जिससे बहुत-से प्रशिक्षित विदेशी चीन आने लगे, जिसके बाद उच्च तकनीकी क्षेत्र में शोध और नवाचार के क्षेत्र में नए स्टार्टअप खोले जा सके। 

वर्ष 2015 में चीन सरकार ने प्रशिक्षित विदेशियों के लिए चीन आने की प्रक्रिया को और सरल बनाया, जिससे उन्हें आसानी से चीनी वीजा, रैजिडैंट परमिट और आव्रजन में बहुत सुविधा मिली और ढेर सारे प्रशिक्षित विदेशी चीन आकर अपना कारोबार करने लगे। इसका लाभ चीन को भी मिला, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से उड़ान भरने लगी। लेकिन अब स्थिति एकदम बदल गई है। चीन में वर्ष 2020 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार वहां 8,45,000 विदेशी और हांगकांग, मकाऊ और ताईवान के लोग रहते थे, जिन्हें मिलाकर कुल संख्या 14 लाख प्रवासियों की थी। अंतर-आर्थिक आंकड़ों के अनुसार यह संख्या पश्चिमी दुनिया में रहने वाले विदेशी प्रवासियों की तुलना में बहुत कम है। 

मार्च 2020 के बाद से चीन के अंदर और चीन से आने-जाने के साथ क्वारंटाइन और चीन द्वारा वीजा नियमों को सख्त करने, प्रवासी लोगों के चीन आने पर रोक लगाने के कारण लोगों को बहुत ज्यादा परेशानी होने लगी। वर्ष 2021 में चीन में और चीन से बाहर यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 79 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके साथ ही विदेशियों के चीन छोडऩे की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ी कि वर्ष 2019 की तुलना में उनकी संख्या घटकर महज 4.9 प्रतिशत ही रह गई थी। वहीं इस वर्ष अगस्त में जर्मन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सर्वे के अनुसार 25.4 प्रतिशत विदेशी प्रोफैशनल चीन छोड़कर जा चुके थे। 

चीन में लगे सख्त लॉकडाऊन के चलते 22.4 प्रतिशत जर्मन उद्योगों को इस बात की आशंका थी कि उन्हें विदेशों से प्रशिक्षित कामगार नहीं मिलेंगे। अप्रैल 2022 में चीन में लॉकडाऊन में फंसे विदेशियों पर हुए एक सर्वे में पता चला कि 950 विदेशियों में से 85 प्रतिशत एक बार सामान्य स्थिति बहाल होने के बाद गंभीरता से चीन को लेकर अपने भविष्य के बारे में विचार करेंगे। इनमें से 26 प्रतिशत विदेशियों ने कहा कि वे हमेशा के लिए चीन छोड़कर चले जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दर्जा पा चुके शंघाई में लॉकडाऊन के चलते लोगों को दो वक्त का खाना नहीं मिल पा रहा, डॉक्टरों से लोग इलाज नहीं करवा सकते, बच्चों को उनके माता-पिता से जबरन अलग कर दिया गया है। बुजुर्गों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, जिनमें से कई असहाय होकर मर चुके हैं। 

इस वर्ष के मध्य में जब शंघाई में लॉकडाऊन लगा तो विदेशियों के चीन छोडऩे की बाढ़ सी आ गई थी। इसके साथ ही चीन में विदेशी निवेश को लेकर जो आशा बंधी थी वह भी चली गई। चीन में इस समय बहुत कम विदेशी बचे हैं, जो बचे हैं वे भी जल्दी ही चीन छोडऩा चाहते हैं, फिर कभी चीन न आने के लिए। जापान की तोशीबा, ब्रिटेन की सुपरड्राई और एच एंड एम, दक्षिण कोरिया की लाते पहले ही चीन में अपना सारा काम बंद कर नई उड़ान भर चुकी हैं। ये सभी कंपनियां इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ दूसरे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का रुख कर चुकी हैं। 

यूरोपियन यूनियन ऑफ चाइना ने 372 यूरोपीय कंपनियों का एक सर्वे किया, जिसमें पाया गया कि इनमें से 23 प्रतिशत कंपनियां चीन से हमेशा के लिए बाहर चली जाना चाहती हैं। 78 प्रतिशत कंपनियां चीन में और निवेश की इच्छुक नहीं हैं। इसके साथ ही चीन का ताईवान अभियान भी विदेशी कंपनियों और पेशेवरों को डरा रहा है। ऐसे वातावरण में भविष्य में चीन का आर्थिक तरक्की करना लगभग असंभव दिख रहा है।


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