यूरोप के अस्तित्व और अस्मिता के लिए भस्मासुर है ‘इस्लामीकरण’

Wednesday, Nov 27, 2019 - 01:43 AM (IST)

यूरोप में बढ़ता इस्लामीकरण अब एक विस्फोटक राजनीतिक प्रश्न बन गया है और इस प्रश्न ने यूरोप की बहुलतावादी संस्कृति और उदारतावाद को लेकर एक नहीं, बल्कि अनेकानेक आशंकाएं और चिंताएं खड़ी कर दी हैं। संकेत बड़े ही विस्फोटक हैं, घृणात्मक हैं, अमानवीय हैं और भविष्य के प्रति असहिष्णुता प्रदॢशत करते हैं। जब इस्लामीकरण को लेकर यूरोप की मुस्लिम आबादी खतरनाक तौर पर अपनी भूमिका सक्रिय रखेगी और यूरोप की मूल आबादी अपनी संस्कृति के प्रति सहिष्णुता प्रकट करते हुए प्रतिक्रिया में हिंसक होगी, तकरार और राजनीतिक बवाल खड़ा करेगी तो फिर यूरोप में राजनीति, कूटनीति और अर्थव्यवस्था की स्थिति कितनी अराजक होगी, कितनी हिंसक होगी, इसकी उम्मीद की जा सकती है। 

यूरोप के सिर्फ  एकाध देश ही नहीं, बल्कि कई देश इस्लामीकरण की चपेट में खड़े हैं और यूरोप की पुरातन संस्कृति खतरे में पड़ी हुई है। यूरोप ने विगत में दो-दो विश्व युद्धों का सामना किया है, यूरोप के लाखों लोग दोनों विश्व युद्धों में मारे गए थे। दो विश्व युद्धों का सबक लेकर यूरोप ने शांति का वातावरण कायम रखने की बड़ी कोशिश की थी। यूरोप में लोकतंत्र सक्रिय रहा, शांति और सद्भाव भी विकसित हुआ। धार्मिक आधार पर भी यूरोप सहिष्णुता ही प्रदॢशत करता रहा है। धार्मिक आधार पर भेदभाव यूरोप में निचले क्रम पर ही रहा। मुस्लिम देशों और अफ्रीका से पलायन कर गई आबादी को यूरोप में फलने-फूलने का अवसर दिया गया, उन्हें लोकतांत्रिक अधिकार प्रदान किए गए। 

इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम देशों और अफ्रीका से गई आबादी भी गोरी आबादी के सामने खड़ी हो गई, उनकी समृद्धि भी उल्लेखनीय हो गई, उनकी आबादी भी लोकतंत्र को प्रभावित करने की शक्ति हासिल करने लगी। स्थिति विस्फोटक तो तब हो गई जब मुस्लिम आतंकवादी संगठन एक साजिश के तहत मुस्लिम आबादी को शरणार्थी के तौर पर यूरोप में घुसाने और यूरोप के लोकतंत्र पर कब्जा करने के लिए सक्रिय हो गए। आज पूरा यूरोप मुस्लिम आतंकवाद और इस्लामीकरण की आग में जल रहा है। 

नार्वे की विस्फोटक स्थिति ने दुनिया का ध्यान खींचा
वर्तमान में विस्फोटक स्थिति नार्वे में खड़ी हुई है। इस विस्फोटक स्थिति ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है, पूरी दुनिया नार्वे की स्थिति को लेकर ङ्क्षचतित हुई है और इस घटना का यथार्थ खोजा जा रहा है और यह ङ्क्षचता व्यक्त की जा रही है कि नार्वे की विस्फोटक घटना की  पुनरावृत्ति न केवल नार्वे में फिर से हो सकती है, बल्कि इसकी आग यूरेाप के अन्य देशों तक पहुंच सकती है। समय- समय पर नार्वे जैसी स्थिति फ्रांस, इटली व जर्मनी में भी हुई है और मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर नई-नई विस्फोटक, खतरनाक और घृणात्मक सोच विकसित हो रही है जिसे किसी भी तरह शांति व सद्भाव के लिए सकारात्मक नहीं माना जा सकता है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि नार्वे की घटना किस प्रकार से विस्फोटक है, यह घटना क्या है, इस घटना को लेकर मुस्लिम देशों की गोलबंदी के यथार्थ क्या हैं। नार्वे की घटना को लेकर मुस्लिम देशों की गोलबंदी को क्या इस्लामीकरण की पक्षधर नीति माना जाना चाहिए, असफल और मुस्लिम आतंकवाद की शरणस्थली बना पाकिस्तान नार्वे के विवाद में क्यों कूदा, क्या पाकिस्तान इस विवाद में कूद कर मुस्लिम आतंकवाद, मुस्लिम अतिवाद को बढ़ावा दे रहा है? 

मुस्लिम आबादी भी सक्रिय हुई
 नार्वे में अभी ‘स्टॉप इस्लामीकरण ऑफ नार्वे’ नामक अभियान और आंदोलन गंभीर रूप से सक्रिय हैं, ये अभियान और आंदोलन धीरे-धीरे ङ्क्षहसक हो रहे हैं और असहिष्णुता को प्रदर्शित कर रहे हैं। नार्वे की स्थिति तो उस समय विस्फोटक हो गई जब नार्वे के एक शहर में कुरान जलाने की अप्रिय और असहिष्णु घटना घटी। ‘स्टॉप इस्लामीकरण ऑफ  नार्वे’ अभियान के नेता लार्स थार्सन ने कृश्चयनस्टेंड शहर में सैंकड़ों प्रदर्शनकारियों के सामने कुरान जलाने जैसी अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया। कुरान जलाने की घटना के खिलाफ  नार्वे की मुस्लिम आबादी भी सक्रिय हो गई। 

हम सब को मालूम है कि मुस्लिम आबादी के लिए कुरान का महत्व कितना है। कुरान का अपमान मुस्लिम आबादी किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं करती है। दुनिया में जिसने भी कुरान का अपमान किया या फिर इस्लाम के प्रेरक पुरुषों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां कीं, उसकी बर्बरता से हत्या कर दी गई। इतिहास में दर्ज घटना के अनुसार इस्लाम पर आधारित कार्टून छापने वाली पत्रिका के पत्रकारों को मार डाला गया, अभी-अभी भारत में घटी एक घटना को भी संज्ञान में लिया जा सकता है। लखनऊ के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी ने विवादित टिप्पणी की थी, उस टिप्पणी को लेकर तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार ने कमलेश तिवारी पर रासुका लगा कर जेल में डाल दिया था। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में बर्बरतापूर्ण ढंग से कमलेश तिवारी की हत्या हो गई, हत्या तालिबानी और आई.एस. शैली में हुई थी। 

कुरान का अपमान करने वाले के खिलाफ फतवे पर फतवे जारी
कुरान का अपमान करने वाले लार्स थार्सन के खिलाफ  भी पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी खड़ी हो गई है, लार्स थार्सन को दंडित करने की मांग खतरनाक तौर पर उठी है। कई मुस्लिम देश भी इस विवाद में कूद चुके हैं। खासकर तुर्की और पाकिस्तान आग में घी का काम कर रहे हैं। पाकिस्तान में इस घटना को लेकर खतरनाक विरोध शुरू हो गया है।

पाकिस्तान में कई प्रदर्शन हो चुके हैं, प्रदर्शनकारी लार्स थार्सन की मौत की मांग कर रहे हैं, फतवे पर फतवे जारी हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने नार्वे के राजदूत को बुला कर कुरान का अपमान करने वाले लार्स थार्सन पर कार्रवाई करने की मांग ही नहीं की, बल्कि चेतावनी भी दी कि ऐसी घटना नार्वे के लिए ठीक नहीं होगी। पाकिस्तान और तुर्की अभी दो ऐेसे देश हैं जो मुस्लिम दुनिया का नेता बनने के लिए मुस्लिम आतंकवाद को न केवल बढ़ावा देते हैं, बल्कि मुस्लिम आबादी को आतंकवादी गतिविधियों के लिए प्रेरित करने हेतु ईंधन का भी काम करते हैं। पाकिस्तान और तुर्की जैसे देश यह नहीं सोचते कि उनके खतरनाक और विस्फोटक समर्थन से यूरोप में निवास कर रही मुस्लिम आबादी के प्रति असहिष्णुता की खाई बढ़ेगी? 

इसके विपरीत दुनिया की जनमत और फतवा विरोधी शक्तियां भी सक्रिय हो गई हैं, सलमान रुशदी जैसी हस्तियां भी हत्प्रभ हैं। सलमान रुश्दी जैसी हस्तियोंकी चिंता लार्स थार्सन के सुरक्षित जीवन को लेकर है। एक विचार यह भी सक्रिय हो रहा है कि आखिर लार्स थार्सन ऐसी घटना को अंजाम देने के लिए बाध्य क्यों हुए हैं, ऐसी स्थितियां तो रातों-रात उत्पन्न नहीं हुईं, ऐसी स्थितियों के लिए किसी न किसी रूप से मुस्लिम आबादी भी जिम्मेदार है। नार्वे की यह आग ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों तक पहुंच रही है। देशज शक्तियां भी इस्लामीकरण के खिलाफ गोलबंदी शुरू कर रही हैं। अगर ऐसा हुआ तो फिर यूरोप की स्थिति कितनी भयानक होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। एक तरफ मुस्लिम आबादी होगी और दूसरी तरफ  ईसाई आबादी। दोनों आबादियां एक-दूसरे के खिलाफ मार-काट पर उतारू हो सकती हैं। 

सिर्फ नार्वे की ही बात नहीं है, बल्कि पूरे यूरोप की बात है। यूरोप का अतिमानववाद अब गंभीर दुष्परिणाम भुगतने की कसौटी पर खड़ा है। अति-मानवतावाद के चक्कर में यूरोप की संस्कृति खतरे में है। यूरोप ने विगत में यह सोचा-समझा ही नहीं कि वह जिस आबादी का स्वागत कर रहे हैं, वह उनके अस्तित्व और उनकी अस्मिता के लिए ही भस्मासुर बन जाएगी। मुस्लिम शरणार्थी सिर्फ स्वयं ही नहीं आते हैं, बल्कि अपने साथ फतवा और कट्टरता की संस्कृति भी लेकर आते हैं, ऐसी आबादी जब तक कमजोर होती है तब तक इन्हें लोकतंत्र चाहिए, इन्हें शांति चाहिए।

लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब ऐसी आबादी अपने आप को सम्पूर्ण तौर पर शक्तिशाली समझ लेती है और लोकतंत्र को प्रभावित करने की शक्ति हासिल कर लेती है तब वह शरण देने वाली आबादी और देशों के लिए काल बन जाती है, फिर इन्हें लोकतंत्र नहीं चाहिए, इन्हें तो सिर्फ और सिर्फ मजहबी शासन चाहिए, इस्लामिक देश चाहिए। हरसंभव मुस्लिम आबादी और ईसाई आबादी के बीच बढ़ती खाई रोकी जानी चाहिए। यूरोप को इस्लामीकरण और देशज संस्कृति की खतरनाक दीवार नहीं बनने दिया जाना चाहिए।-विष्णु गुप्त
 

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