‘पहला’ नहीं है 29 सितम्बर का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

punjabkesari.in Thursday, Oct 27, 2016 - 01:43 AM (IST)

(अरुण श्रीवास्तव): पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) में भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक ने जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत छवि एक मजबूत नेता वाली बना दी है, वहीं भाजपा को अपनी राष्ट्रवादी छवि को नए सिरे से चमकाने और भारत के लोगों के मन में राष्ट्रवाद का नया जज्बा भरने के लिए राजनीतिक तौर पर उचित माहौल भी उपलब्ध करवाया है।

2 वर्षों से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर सुशोभित जिस नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक पेशकदमियों एवं कार्रवाइयों पर हाल ही के महीनों में टीका टिप्पणी शुरू हो गई थी और उन्हें अन्य कमजोर  प्रधानमंत्रियों जैसा ही समझा जा रहा था, उसी मोदी ने खुद का भारतीय राष्ट्रवाद के नए चेहरे तथा भारत वर्ष को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकने वाले एकमात्र नेता के रूप में कायाकल्प कर लिया है। उन्होंने भारतीय लोगों की कल्पना शक्ति को प्रज्वलित किया है। अब लोग उनकी गवर्नैंस की कांग्रेस और कथित सैकुलरवादी पार्टियों के गत 15 वर्ष के शासन से तुलना करने लगे हैं।

लेकिन दुर्भाग्यवश पी.ओ.के. में देश भक्ति भरी कार्रवाई की जीत पर खिली हुई बांछें उस समय सवालों में घिर गईं जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्तीफेन दुजार्रिक ने यह बयान दाग दिया: ‘‘भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यू.एन.एम.ओ. जी.आई.पी.) को नवीनतम घटनाक्रमों से संबंधित किसी भी तरह की गोलीबारी एल.ओ.सी. के पार सीधे तौर पर दिखाई नहीं दी है।’’

अपनी जगह पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी भारत के इन दावों को रद्द किया है कि इसकी सेना ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ की हैं। पाकिस्तान ने इन दावों को दृष्टि भ्रम कहकर रद्द किया लेकिन इतना जरूर माना कि इसके 2 सैनिक आर-पार की गोली में मारे गए थे। शरीफ ने ‘बिना किसी भड़काहट के भारतीय सेनाओं द्वारा किए गए निर्लज्ज्तापूर्ण हमले’ की कठोर शब्दों में निंदा की और यह प्रण दोहराया कि उनकी सेना ‘पाकिस्तान की सम्प्रभुता पर आघात करने वाले किसी भी शैतानी मंसूबे’ को विफल करने की क्षमता रखती है। किसी भी प्रकार का ढुलमुलपन पाकिस्तानी सेना की छवि को बहुत खतरनाक रूप में आहत करेगा जिसे पाकिस्तानी शासक किसी भी कीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं।

‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ तो मनमोहन सिंह के शासनकाल में भी हुई थीं लेकिन उन्होंने इसका श्रेय बटोरने के लिए ‘ट्विटर सेना’ प्रयुक्त नहीं की थी। इसके विपरीत मोदी के दक्षिण पंथी समर्थक तो बिजली की गति से हरकत में आ गए और अपने उदारपंथी विरोधियों का मुंह चिढ़ाने लगे।
 
जहां वे मोदी का जमकर यशोगान कर रहे थे, वहीं मोदी को एक राष्ट्रीय हीरो के रूप में स्थापित करने के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का बीड़ा हिन्दुत्व समर्थक मीडिया ने उठा लिया। आश्चर्य की बात है कि एक टी.वी. चैनल ने तो अपनी रिपोर्ट में मोदी को एक सुपर हीरो के रूप में प्रस्तुत किया, जैसे कि उन्होंने अकेले दम पर ही पूरे आप्रेशन की परिकल्पना, योजनाबंदी एवं निष्पादन किया हो। 

सबसे अधिक सनसनीखेज बात तो यह है कि मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में बहुत आसानी से यह अनदेखी करने और भूल जाने का प्रयास किया कि किस प्रकार यू.पी.ए. शासन के दौरान भी सेना ने नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी.) के पार  सॢजकल कार्रवाइयां की थीं। स्पष्ट तौर पर यह सवाल पैदा होता है कि मीडिया ने गलत जानकारी देने का यह अभियान क्यों चलाया? क्या मीडिया की पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा उनके शासनकाल को दागदार करने की किसी गहरी साजिश में भागीदारी है?

‘प्रथम’ सर्जिकल स्ट्राइक के लिए मोदी और उनके सहयोगियों ने अपनी पीठ थपथपानी शुरू की, उसके ऐन कुछ ही घंटे बाद पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने प्रमाणित रूप में यह बयान दिया कि इस प्रकार की सर्जिकल स्ट्राइकें भारतीय सैनिकों द्वारा पहले भी की जाती रही हैं। ऐसा ही आप्रेशन जनवरी 2013 में मनमोहन सिंह के यू.पी.ए. शासन दौरान तब किया गया था जब पाकिस्तानी 2 भारतीय सैनिकों के सिर काट कर ले गए थे। अब की बार अंतर यह है कि मोदी ने एल.ओ.सी. के पार की गई स्ट्राइक्स की जिम्मेदारी लेने का राजनीतिक रूप में आह्वान किया है। 2013 में तो किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई थी कि ऐसी कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुई भी है।

अब की बार फर्क इतना है कि मोदी ने अपने पक्ष में उन्माद पैदा करने के लिए हर हथकंडा प्रयुक्त किया। कांग्रेस ने तो इन कार्रवाइयों के बारे में अपने पार्टी नेताओं को सार्वजनिक रूप में बात करने की भी अनुमति नहीं दी थी। नतीजा यह हुआ कि लोग सरकार के इरादों और कार्रवाइयों के बारे में अंधेरे में ही रह गए।

यू.पी.ए शासन से एकदम विपरीत वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा और मीडिया ऐसा वातावरण सृजित कर रहे थे जिससे यू.पी.ए. सरकार और कांग्रेस पार्टी का कमजोर और डरपोक नेतृत्व के रूप में बहुत ही तरसयोग्य नक्शा पेश किया जा सके। सेना की भावनाओं और हितों के मामले में यह बात बहुत ही सनक भरी तथा नुक्सानदायक है कि मोदी के समर्थक, मीडिया और हिन्दुत्ववादी नेता यू.पी.ए. शासन दौरान जनरल बिक्रम सिंह द्वारा की गई उपलब्धियों को नकार रहे हैं। ऐसी स्थिति में डा. मनमोहन सिंह को देश की जनता के सामने असली स्थिति स्पष्ट करनी होगी और उन्हें हर हालत में मुखर होकर बोलना होगा और ऐसा उन्हें अवश्य ही करना चाहिए।
 
अब समय आ गया है कि देश को उस बात के बारे में बताया जाए जो हमेशा होती आई है और यू.पी.ए. शासन दौरान भी हुई है। इस रहस्योद्घाटन से किसी भी सरकारी गोपनीयता का उल्लंघन होने वाला नहीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि सेना प्रमुख ने सर्जिकल स्ट्राइक्स के बारे में सूचित करने के लिए सम्मेलन आयोजित किया था और यह तथ्य खुलकर स्पष्ट किया था कि 29 सितम्बर की सर्जिकल स्ट्राइक्स हर लिहाज से प्रथम घटना थी। यहां तक कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी यह कहा था कि इसे प्रथम सर्जिकल स्ट्राइक्स बताने के दावे वास्तविकता से कोसों दूर हैं क्योंकि यू.पी.ए. शासन दौरान भी सीमा पर धावा बोलकर ऐसी कई सर्जिकल स्ट्राइक्स की गई थीं लेकिन कभी भी इनको इतना बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत नहीं किया गया था जितना वर्तमान सरकार ने किया है।
 


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