वित्त मंत्री जी, एक कोयल की ‘कू-कू’ से बागों में बहार नहीं आ जाती

Monday, Jan 15, 2018 - 04:28 PM (IST)

संसद का विलम्बित सत्र जैसे-जैसे समाप्ति की ओर बढ़ रहा था वित्त मंत्री खुद को बहुत जटिल स्थिति में पा रहे थे। 4 जनवरी, 2018 को राज्यसभा ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक अल्पकालिक चर्चा को सूची में शामिल किया था और वित्त मंत्री को इस चर्चा के दौरान जवाब देने थे। बजट से 27 दिन पूर्व अर्थव्यवस्था की स्थिति पर लंबा-चौड़ा भाषण देने या कोई विश्वास दिलाने के लिए यह बिल्कुल ही अनुपयुक्त समय था।

वृद्धि दर, वित्तीय घाटा
1. वित्त मंत्री : ‘‘गत साढ़े तीन वर्ष से चार वर्ष दौरान सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं कि अर्थव्यवस्था के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया जनता और अर्थव्यवस्था दोनों के ही हित में हो और विश्वसनीय भी हो।’’

राजग सरकार की निर्णय प्रक्रिया या तो अपारदर्शी है (जैसा कि नोटबंदी के मामले में देखा गया) या फिर तुक्केबाजी है (जैसा कि जी.एस.टी. के मामले में देखा गया)। सरकार के वायदों से मुकरने के जितने उदाहरण सामने आए हैं उनके मद्देनजर निश्चय ही भरोसेमंदी या विश्वसनीयता वाली कोई बात नहीं रह गई। आर्थिक मंदी के रूप में परिणाम हमारे सामने हैं। अब सरकार भी अनमने ढंग से यह बात स्वीकार करती है।

जनवरी 2016 से शुरू होकर सकल मूल्य संवद्र्धन की लगातार 7 तिमाहियों की दर इस प्रकार रही-8.7, 7.6, 6.8, 6.7, 5.6, 5.6 और 6.1 प्रतिशत। इन सात तिमाहियों दौरान जी.डी.पी. भी 9.1 प्रतिशत से घटकर 6.3 प्रतिशत पर आ गई जबकि औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक लगभग एक ही जगह खड़ा रहा यानी 121.4 और 120.9 के बीच ही घूमता रहा।

2. वित्त मंत्री : ‘‘आप लोगों ने ङ्क्षचता व्यक्त की है कि क्या वित्तीय घाटे के कोई दूरगामी प्रभाव होंगे। आज हमें बिल्कुल मामूली सी फिसलन के लिए उलाहना सुनना पड़ रहा है लेकिन आप लोगों की सरकार के जमाने में तो वित्तीय घाटा 6 प्रतिशत तक पहुंच गया था।’’

2008 के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय  संकट के बाद यू.पी.ए. सरकार ने सार्वजनिक खर्च में बढ़ौतरी की थी और 2011-12 में वित्तीय घाटे को 5.9 प्रतिशत तक बढऩे दिया था।

अगले दो वर्षों दौरान इसे 4.9 और 4.5 प्रतिशत तक खींच लिया गया था। 31 मार्च, 2014 को वित्तीय घाटे की यही स्थिति थी।  राजग सरकार 31.3.2018 तक इसे 3.2 प्रतिशत पर लाने की बातें कर रही है। ये दोनों ही गिरावट प्रशंसनीय हैं चाहे यू.पी.ए. दौर के 2 वर्षों का  1.4 प्रतिशत आंकड़ा हो या  राजग के 4 वर्षों में 1.3 प्रतिशत वित्तीय घाटा कम होने का आंकड़ा हो। वित्त मंत्री वित्तीय घाटे को कम करने का अपना लक्ष्य राजग के 4 वर्ष पूरे होने तक हासिल करेंगे और 2017-18 के अंत पर मैं उन्हें बधाई दूंगा।

कारोबार करना तथा निर्यात
3.  वित्त मंत्री : ‘‘आपकी यू.पी.ए. सरकार तो ‘कारोबार करने की आसानी’ के मामले में भारत को कुल 168 देशों में से 142वेें स्थान पर धकेल कर गई थी। लेकिन हमारी सरकार देश को 142वें से उठाकर 100वें स्थान तक ले आई है। आप भी इसके प्रभाव के बारे में जानते हैं लेकिन आपका सोचने का तरीका उलटा है।’’

2011 में यू.पी.ए. शासन के दौरान 183 देशों में से भारत की रैंकिंग 134 थी और 2015 में राजग शासन दौरान 189 देशों में से 142वीं, 2017 में यह  ऊंची उठकर 189 देशों में से 130 तक पहुंच गई। यह बढिय़ा खबर है लेकिन यह सर्वेक्षणों पर आधारित है जो केवल दो शहरों में हुए हैं और इसके लिए अन्य कई मानकों में हुआ सुधार जिम्मेदार है। लेकिन जहां तक ‘प्रभाव’ की बात है वह संदिग्ध है।

4. वित्त मंत्री : ‘‘यह स्वाभाविक है कि जब विश्व की अर्थव्यवस्था कमजोर होगी तो खरीददारों द्वारा कम खरीद की जाएगी। ऐसे में हमारा निर्यात भी कम होगा लेकिन इस वर्ष निर्यात के आंकड़े बदल रहे हैं।’’

वैश्विक वृद्धि दर और निर्यातक माल की कीमत में किसी प्रकार का सीधा अनुपात नहीं। यहां तक कि जब वैश्विक वृद्धि दर में सुधार हुआ तो भी तैयार माल का निर्यात 300 बिलियन अमरीकी डालर से नीचे ही रहा। इसकी कोई व्याख्या नहीं।

निवेश तथा एन.पी.ए.
5. वित्त मंत्री : ‘‘आप लोग जिस पूंजी निर्माण के आधार पर कहते हैं कि सार्वजनिक निवेश की स्थिति बहुत चिंताजनक है वह अंतिम तिमाही के आंकड़ों से संबंधित है। अब यह फिर से सकारात्मक स्थिति में आ गया है और 4.7 प्रतिशत के नजदीक पहुंच रहा है तथा इसी तरह गैर खाद्य ऋण से संबंधित आंकड़े भी 10 और 11 प्रतिशत के बीच पहुंच गए हैं।’

जी.एफ.सी.एफ. 2014-15 की प्रथम तिमाही के 32.2 प्रतिशत के आंकड़े से लगातार गिरती आ रही है। 2017-18 की दूसरी तिमाही में यह 28.9 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी थी। ऋण वृद्धि भी 2014-15 की प्रथम तिमाही के 12.9 प्रतिशत के आंकड़े से आगे नहीं बढ़ पाई है बल्कि 2016-17 की चौथी तिमाही में यह 5.4 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई थी लेकिन 2017-18 की दूसरी तिमाही तक फिर से सुधर कर 6.5 प्रतिशत तक आ गई। लेकिन क्या दूसरी तिमाही के आंकड़े अर्थव्यवस्था की बहाली की ओर संकेत करते हैं। स्पष्ट तौर पर ऐसे किसी निष्कर्ष पर इतनी जल्दी नहीं पहुंचा जा सकता। एक कोयल की कू-कू से बागों में बहार नहीं आ जाती। 

6. वित्त मंत्री : ‘‘यही कारण है कि बैंकों के पुन: पूंजीकरण की विराट योजना बनाई गई है और हम इन बैंकों की क्षमताओं में वृद्धि कर रहे हैं।’’

गैर निष्पादित सम्पत्तियों (एन.पी.ए.) के संबंध में आंकड़े खुद अपनी कहानी बयां करते हैं। जहां 2013-14 में यू.पी.ए. सरकार के दौरान बैंकों का कुल एन.पी.ए. 2,63,372 करोड़ रुपए था वहीं सितम्बर 2017 में मोदी सरकार दौरान यह 7,76,087 करोड़ पर पहुंच चुका था। 43 महीने सत्ता में रह चुकने के बाद विरासत में मिली समस्या का उलाहना देने की कोई तुक नहीं बनती। अभी तक मोदी सरकार कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सकी कि 31 मार्च, 2014 तक जो ऋण निष्पादित स्थिति में थे वे गत 4 वर्षों दौरान गैर-निष्पादित कैसे बन गए हैं।

सच्चाई : सच्चाई यह है कि अर्थव्यवस्था का प्रबंधन बहुत घटिया ढंग से हो रहा है। यह न तो निवेश को आकॢषत कर रही है और न ही नए रोजगारों का सृजन कर रही है। यह कहना कि अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से या दुनिया में दूसरे नंबर की तेज गति से बढ़ रही है, सच्चाई को ठेंगा दिखाने के तुल्य है। ऊपर से कहा जा रहा है कि ‘‘हम दुनिया में श्रेष्ठतम हैं।’’ 

एक बार फिर मैं यह कहना चाहूंगा कि सच्चाई यह है कि 2017-18 के अंत तक 6.5 प्रतिशत वृद्धि दर ही हासिल होगी। शायद यह आंकड़ा इससे भी कम होगा और 2018-19 में बढ़ती कीमतें, घटता निवेश तथा बेरोजगारी सरकार के लिए चुनौती बन जाएंगे और तब लोग यह पूछने पर मजबूर हो जाएंगे- ‘‘आखिर गत 5 वर्षों दौरान हमने क्या हासिल किया है।’’

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