चीनियों की मांसखोरी से ‘अगली महामारी की आशंका’

punjabkesari.in Sunday, Nov 29, 2020 - 05:00 AM (IST)

पूरी दुनिया को अपने वायरस से बर्बाद कर देने वाले चीन ने अब भी अपने कानून में कोई खास ऐसा प्रावधान नहीं किया है जिससे दुनिया किसी अगली महामारी की गिरफ्त में न आए। वर्ष 2020 इतिहास में एक भयंकर महामारी के लिए जाना जाएगा, चीन के वुहान से शुरू हुई कोरोना महामारी ने दुनियाभर के 6 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस मनुष्यों में चमगादड़ से फैला है, हम यह भी जानते हैं कि चीनी लोग संपूर्ण मांसाहारी होते हैं और वे चींटी, दीमक, गोंजर, बिच्छू, ङ्क्षझगुर से लेकर, समुद्री खीरा (एक प्रकार का जीव), समुद्री घोड़ा (सी-हॉर्स), स्क्विड, ऑक्टोपस, शार्क, बिल्ली, कुत्ते, सुअर, गधा, ऊंट जैसे जानवरों का मीट खाते हैं। किसी भी कीमत पर चीनी लोग अपने खाने की आदतों को छोड़ नहीं सकते। कोरोना वायरस फैलने के बाद चीन की सरकार ने मांस बेचने वाली दुकानों को बंद कर दिया था लेकिन अब सारी दुकानें खुली हैं और लोग फिर से हर तरह का मांस खा रहे हैं, हालांकि इस समय शंघाई के साथ दूसरे शहरों में फिर से कोरोना लौट आया है लेकिन चीनी लोग अपनी जुबान के चटखारे के आगे कुछ भी सोचने को तैयार नहीं हैं। 

वुहान, मध्य चीन का वह शहर है, जहां के मांस बेचने वाले बड़े बाजार से निकले कोरोना वायरस ने लाखों लोगों की जान ले ली और करोड़ों के जीवन को पटरी से उतार दिया, इतना ही नहीं कोरोना महामारी ने कई देशों की अर्थव्यवस्था को भी चरमरा दिया है। चीनियों की हर तरह का मांस खाने की आदत ने कई जानवरों और कीट-पतंगों का प्राकृतिक निवास खत्म कर दिया, इस वजह से पर्यावरण में बदलाव और धरती के बढ़ते तापमान से हमें दो-चार होना पड़ा, औद्योगिक पशुधन की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ा, वन्यजीव संपदा का अत्यधिक दोहन किया गया। इससे मानव जाति को दो तरह के नुक्सान का सामना करना पड़ा-पहला जैव विविधता का संकट गहरा गया और दूसरा महामारी का खतरा हम सबके सामने आ खड़ा हुआ।

महामारी फैलने के बाद चीन ने दिखावे के लिए वन्यजीवों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाई और कई वन्यजीवों के बाजारों को बंद कर दिया लेकिन सच्चाई यह है कि वन्यजीवों की तस्करी लंबे समय से चीन में होती रही है। इसमें विलुप्त प्राय: जीव भी शामिल हैं लेकिन न तो इस पर सरकार ने कोई लगाम लगाई और न ही इसे मुद्दा बनाया। इसके अलावा चीनी ग्राहकों तक उनका मनपसंद व्यंजन उन तक पहुंच रहा है, इसमें तस्करों से लेकर चीनी मांस व्यापारी तक पैसा कमाते हैं और इससे चीन के कुछ लोगों को रोजगार भी मिलता है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।  खाने के अलावा चीनी आयुर्वैदिक दवाओं में भी समुद्री घोड़े, बाघ और तेंदुए की हड्डियां, कछुए का कवच, मछली की वसा, गैंडे के सींग, शेर के नाखून, सूखे चमगादड़ का बुरादा जैसी तमाम वस्तुएं शामिल हैं। 

अगर चीन में राजनीतिक इच्छाशक्ति और नैतिकता के आधार पर वन्यजीवों की तस्करी पर प्रतिबंध लगाया जाता तो यह समस्या खत्म हो जाती लेकिन जहां चीन को लाभ होता है वहां कोई भी कानून चीन के विरुद्ध नहीं बनाया जा सकता। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में पैंगोलिन की खाल के लिए 7 लाख 50 हजार पैंगोलिनों को तस्करी के माध्यम से चीन में भेजा गया जिसका इस्तेमाल चीनी पारंपरिक दवाओं के लिए किया जाता है, यह जानवर विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है लेकिन इस बात की परवाह चीन को नहीं है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2016 में ही पैंगोलिन की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध लग गया था। 

हालांकि तेंदुए की खाल की तस्करी और उसके दांत, नाखून और हड्डियों का चीनी आयुर्वेदिक दवाओं में पुरुषों की यौन शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल तेंदुए की तस्करी का बड़ा कारण है और बड़े पैमाने पर इसके ग्राहक चीन में मौजूद हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेंदुए के व्यापार को वर्ष 1975 में प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन तेंदुए की तस्करी आज भी बदस्तूर जारी है।

चीनी प्रशासन इस बात की इजाजत देता है कि उन पारंपरिक चीनी वाइन और शक्तिवर्धक पेय का उत्पादन और बिक्री जारी रहेगी जिसमें तेंदुए की हड्डियां मिलाई गई हैं। इसके अलावा जिन दूसरी विलुप्त प्राय: वन्यजीवों से बनी वस्तुओं को चीन ने वैधता प्रदान की है उनमें हिरन के सींग, भालू का पित्त और शेर की खाल शामिल है। हालांकि जहां पर वन्यजीवों को सुरक्षित रखकर उनके प्रजनन को बढ़ावा देने के बाद उनका इस्तेमाल पारंपरिक औषधियों में किया जाता है इससे भी पशुधन में बढ़ौतरी नहीं होती बल्कि बड़े पैमाने पर वन्यजीव संपदा और पर्यावरण को भी नुक्सान पहुंचता है।

दरअसल चीन का वन्यजीव रक्षा कानून पूरी तरह अयोग्य है और बीजिंग में एक छोटे से निर्णायक दल के साथ इनका व्यापार करने वाले एक छोटे से वर्ग को लाभ पहुंचाता है लेकिन बड़े पैमाने पर यह वन्य जीव और पर्यावरण के लिए भयानक परिणाम लाने वाला है। इन सबके बावजूद वर्ष 2021 में चीन पहली बार पर्यावरण सम्मिट की मेजबानी करने जा रहा है, जैविक विविधता पर कन्वैंशन के लिए पाॢटयों का सम्मेलन आयोजित करेगा। 

हालांकि चीन का वन्य जीव कानून सीधे तौर पर उनके लिए खतरा है और वन्यजीवों की मौत के लिए जिम्मेदार है। चीन दुनिया को दिखाने के लिए अपने देश में अगले वर्ष वन्यजीवों की रक्षा पर एक सम्मिट का आयोजन कर रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि चीन में घरेलू स्तर पर वन्य जीवों का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है वहीं विश्व के दूसरे देशों से भी तस्करी के माध्यम से वन्य जीवों को चीन में पहुंचाया जा रहा है क्योंकि चीनी लोगों में इनकी मांग बहुत ज्यादा है। जब तक चीन ईमानदारी से वन्य जीवों की रक्षा के लिए कानून नहीं बनाता तब तक धीरे-धीरे वन्य जीव इस धरती से विलुप्त होते रहेंगे। 


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