चीन से फारूक की ‘खानदानी मोहब्बत’ घातक

Tuesday, Oct 20, 2020 - 03:24 AM (IST)

फारूक अब्दुल्ला द्वारा जम्मू-कश्मीर में पुराने दिन लौटाने के लिए चीन से सहायता लेने के बयान पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। चीन से उनके खानदान का गहरा रिश्ता रहा है। वह तो भारत सरकार की उदारता रही है कि हर बार फारूक की दगाबाजी के बावजूद सत्ता सुख लेने दिया। इन दिनों फारूक के लिए आंसू बहाने वाले कुछ बड़े नेता और मीडिया के दिग्गज पिछले 6 दशकों में शेख अब्दुल्ला परिवार के प्रामाणिक रिकार्ड को या तो याद नहीं रखना चाहते हैं या अनजान हैं। भारत, चीन और पाकिस्तान सरकारों की फाइलों में दर्ज है। 

जनवरी 1965 में कराची में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री ने चीन के विदेश मंत्री को दिए रात्रि भोज के अवसर पर घोषणा की थी कि ‘‘जल्द ही कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए शेख अब्दुल्ला और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाइ के बीच मुलाकात होगी। चीन शेख साहब को निमंत्रित करेगा।’’ पाकिस्तान तो उस समय शेख को कश्मीर की निर्वासित सरकार के मुखिया की तरह मान रहा था। इस ऐलान पर अमल दो महीने बाद हो गया। 

31 मार्च 1965 को शेख अब्दुल्ला और चाउ एन लाइ की लम्बी गुप्त षड्यंत्र वाली बैठक अल्जीयर्स में हुई। इस बैठक के बाद चीन ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह कश्मीर को भारत से अलग होने के स्व-निर्णय का पूरा समर्थन करेगा। शेख ने भी इस समर्थन का स्वागत करते हुए शुक्रिया अदा किया। इधर भारत में उदार लेकिन राष्ट्र हित के दृढ़ निश्चयी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी सहित सरकार, संसद और सम्पूर्ण देश विचलित और क्रोधित हुआ। शास्त्री जी ने संसद में विश्वास दिलाया कि इस अपराध के लिए शेख अब्दुल्ला पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

सरकार ने तत्काल उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया। फिर 8 मई को उसके भारत में प्रवेश करते ही हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया। अब्दुल्ला खानदान का मददगार पाकिस्तान इससे तिलमिलाया और उसने न केवल सरकारी स्तर पर इसका विरोध किया बल्कि 20 मई को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शिकायत दर्ज की। नेहरू, शास्त्री, इंदिरा गांधी के सत्ता काल में दगाबाजियों और शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के कई दौर रहे। 

बाद में केंद्र सरकारों ने भारतीय संविधान के दायरे और शपथ के साथ शेख के नवाबजादे फारूक अब्दुल्ला और फिर उसके बेटे उमर अब्दुल्ला को कश्मीर में राज करने के अवसर दिए हैं। इसका लाभ कश्मीर की भोली-भाली गरीब जनता को तो नहीं मिला, लेकिन फारूक परिवार और उनके नजदीकी साथियों को अरबों रुपयों की सम्पत्ति जुटाने, पाकिस्तान और चीन से रिश्ते रखने, आतंकवादी संगठनों को पर्दे के पीछे और जरूरत होने पर राज्य सरकार से मदद करने का मजा मिला। वास्तव में अब्दुल्ला परिवार राजनीति और कश्मीर के नाम पर केंद्र सरकारों से सौदेबाजी में लगा रहता है। सत्ता रहने पर लुटाने की पूरी छूट और सत्ता में न  रहने पर उनके भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव बनाते हैं। 

अब जम्मू-कश्मीर को धारा 370 हटाने के संसद के निर्णय को लागू  होने के साल भर बाद वापसी की मूर्खतापूर्ण मांग पूरी नहीं होने का एहसास शायद फारूक और उनके अपने या कांग्रेस सहित समर्थक दलों के नेताओं को भी है लेकिन इस बहाने वे अपने काले कारनामों की फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल देने, जेल नहीं भेजने की दुहाई दे रहे हैं। तथ्य यह भी है कि कश्मीर को लूटने में कभी उनके साथ, कभी दूर रहने वाली महबूबा मुफ्ती की पी.डी.पी. और गुलाम नबी आजाद की कांग्रेस पार्टी के नेता भी समय-समय पर कुछ हिस्सा पाते रहे हैं। इसलिए कांग्रेस बाहर से साथ दे रही है। वहीं पी.डी.पी. और छोटे-मोटे दल अपने-अपने स्वार्थों के लिए फारूक के कदमों में बैठ रहे हैं।

फारूक परिवार का पहली बार एक कठोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वासता पड़ा है, जो किसी सौदेबाजी के लिए तैयार नहीं है और कश्मीर में किए गए भ्रष्टाचार के मामलों को रफा-दफा करने को राजी नहीं है। इस समय सबसे गंभीर प्रामाणिक मामला 2002 से 2011 के सत्ता काल का है। इस अवधि में राज्य सरकार ने प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को करीब 112 करोड़ रुपयों का अनुदान दिया। फारूक अब्दुल्ला स्वयं इस संगठन के अध्यक्ष भी थे। सारी चालाकियों के बावजूद इसमें से 43 करोड़ रुपयों की गड़बड़ी के आरोप सामने आने पर 2015 में सी.बी.आई. ने प्रकरण दर्ज किया। हां, इसे राजनीतिक इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के आदेश पर यह कार्रवाई हो रही है। 

भ्रष्टाचार के मामले में यदि लालू यादव या ओम प्रकाश चौटाला जेल जा सकते हैं तो जम्मू-कश्मीर या संवेदनशील सीमावर्ती पूर्वोत्तर राज्य के नेताओं को क्या अदालतें अपराध सिद्ध होने पर भी माफ कर देंगी या माफ कर दिया जाना चाहिए क्योंकि चीन या पाकिस्तान अपने मोहरे पर कार्रवाई से नाराज हो जाएंगे? फारूक और महबूबा या उनके समर्थक भारत विरोधी संगठनों की सारी धमकियों के बावजूद कश्मीर में कोई आग नहीं लग पाई है। दोनों महीनों तक सभी सुख-सुविधाओं के साथ घरों में नजरबंद रहकर हाल में साथ बैठने-निकलने लगे हैं। इसलिए उन्हें न्यायालयों और जनता की अदालत के फैसलों का इंतजार करना चाहिए। चीन और पाकिस्तान से हमलों का इंतजार करना उनके लिए आत्मघाती होगा।-आलोक मेहता

Advertising