किसान अनाज उगाता : सिस्टम उसे सड़ाता

Wednesday, Jun 15, 2022 - 04:58 AM (IST)

देश में भरपूर अनाज उग रहा है। विडंबना देखिए इसे सुरक्षित रखा जाना क्या कभी किसी की प्राथमिकता में रहा? ऐसा दिखा नहीं! माना कि यह मानसूनी महीना है लेकिन अप्रैल और मई माह में ही जहां-तहां खुले आसमान तले रखा लाखों टन गेहूं बेमौसमी बारिश से भीग गया, जिसका सही अंदाजा मुश्किल है। मानसून धीरे-धीरे बांहें फैला रहा है। लेकिन खुले में रखा अनाज कहां हट रहा है। बस यही चीज किसानों की मेहनत पर पानी फेरती है। 

जाहिर है कि न तो तूफान, न मौसम-बेमौसम बारिश रुकी है, न रुकेगी, न कोई रोक पाएगा। रुक सकती है तो खुले आसमान के नीचे पॉलीथीन की पन्नियों में ढंक कर भंडारण की बदहाल और भ्रष्ट व्यवस्था। लेकिन इससे आंकड़ों की बाजीगरी बेनकाब नहीं हो जाएगी? एकाएक बारिश आई, इतना अनाज भीग गया, सड़ गया, बह गया का वह अकाट्य तर्क कहां जाएगा, जिसका न कोई इलाज था न है न होगा! 

सड़ांध मारती अनाज भंडारण व्यवस्था या लीपापोती का जुगाड़, जो भी कहें, हर बार हजारों मीट्रिक टन अनाज खुले आसमान के नीचे भिगोकर ऐसा खराब करता है कि पशुओं का निवाला तक नहीं बन पाता। जिम्मेदार बड़ी ही आसानी से सारा दोष बारिश के मत्थे मढ़ कर बच या बचाए जाते हैं। हां, मिट्टी में मिलती है तो किसान की मेहनत जिसने बड़ी लगन से फसल उगाई, मंडियों तक पहुंचाई। 

विचारणीय है कि भारत में अवैज्ञानिक तरीकों से भंडारण का प्रचलन खुद सरकारें कराती हैं। खुले आसमान के नीचे कभी बोरों में या कभी यूं ही ढेरों में पड़ा अनाज प्राय: सभी ने देखा है। आंकड़े बताते हैं कि वाॢषक भंडारण हानि लगभग 7000 करोड़ रुपए की है, जिसमें 14 मिलियन टन खाद्यान्न बर्बाद होता है। हर वर्ष भारत में कुल गेहूं उत्पादन का करीब 2 करोड़ टन किसी न किसी तरह नष्ट हो जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक देश में करीब 93,000 करोड़ रुपयों का अनाज बर्बाद होता है। 

भारतीय खाद्य निगम की भी न तो गोदाम बनाने में तेजी आई न सहेजने की कोई पुख्ता व्यवस्था हो सकी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 का बजट पेश करते समय किसानों के लिए 16 सूत्री फार्मूले की घोषणा की थी, जिसमें वेयर हाऊस और कोल्ड स्टोरेज की चर्चा थी। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक द्वारा नए-नए वेयर हाऊस बनाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए पी.पी.पी. मॉडल का जिक्र था। 

ब्लॉक स्तर पर भंडारण केन्द्र बनाए जाने प्रस्तावित थे, लेकिन जमीन पर कुछ दिखा नहीं। फरवरी 2021 में एक संसदीय प्रश्नोत्तर में खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने बताया कि भारतीय खाद्य निगम ने 25 लाख मीट्रिक टन साइलो (थोक भंडारण का आधुनिक, सुरक्षित, यांत्रिकृत तरीका) क्षमता प्रदान की है। अडानी लॉजिस्टिक्स की क्षमता 4 लाख मीट्रिक टन (कुल का 16 फीसदी) जबकि राष्ट्रीय संपार्श्विक प्रबंधन सेवाओं, यानी एन.सी.एम.एस.एल. (नैशनल कोलेटरल मैनेजमैंट सर्विसेज लिमिटेड) की क्षमता 7 लाख मीट्रिक टन (कुल का 28 फीसदी) है। जाहिर है पैदावार के मुकाबले यह बेहद कम है। ऐसे में खुले में गेहूं का सडऩा नीयति नहीं तो और क्या है। 

देश में 249 स्थानों पर साइलो बनाने की योजना थी, ताकि 12,000 करोड़ रुपए के गेहूं का संग्रहण किया जा सके। लेकिन गति बेहद सुस्त है। शायद ऐसी योजनाओं की असफलता के पीछे दस्तावेजों के पुङ्क्षलदों के साथ बेहद कठिन खानापूर्तियां हैं, जो साधारण लोगों के बस की बात नहीं। एक बात और, मौजूदा ज्यादातर वेयर हाऊस या साइलो किनके हैं, देखते ही माजरा समझ में आने लगता है। यदि खास भंडारण गृहों में आम किसान की पूछ-परख होती तो क्या यह स्थिति होती? 

आखिर लुटा-पिटा भोला-भाला किसान आसान सरकारी संग्रहण या खरीदी केन्द्रों पर ही टूटता है। स्वाभाविक है कि भंडारण क्षमता से ज्यादा स्टॉक होगा जिससे जगह की कमी बताकर खुले में रखने का भ्रष्ट खेल खूब फलेगा-फूलेगा और बाद में एकाएक आई बारिश से सड़े अनाज की व्यथा-कथा और रहस्यों के बीच सरकारी धन के नाश और खुद के विकास का खेल हो सकेगा। 

सरकारी भंडारण गृहों के बनाने पर तेजी से काम किया जाता तो एक बार के ही निवेश से ये 100 साल से भी ज्यादा काम आ पाते और आपदा में राहत का पिटारा बनते। यदि हिसाब लगाया जाए तो इनकी लागत खाद्यान्न भीगने, सडऩे या कीट-पक्षियों से होनी वाली एक साल की क्षति से कम बैठेगी। ऐसे में क्या मुनासिब नहीं है कि बर्बाद हो रहे उपजे अनाज को बचाने के लिए जरूरत के मुताबिक बड़े-बड़े व अत्याधुनिक संसाधनों से लैस गोदाम बनते? सवाल फिर वही कि बेहद साधारण सी इस कोशिश के लिए गंभीर प्रयास कब होंगे। लगता है कि अनाज उगाता किसान और अनाज सड़ाती लालफीताशाही व्यवस्थाएं ही हमारा सच है। क्या अनाज भिगाने का अंतहीन सिलसिला यूं ही जारी रहेगा? काश किसी के पास होता इसका जवाब।-ऋतुपर्ण दवे
 

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