किसान को दान नहीं दाम चाहिए

punjabkesari.in Thursday, Apr 15, 2021 - 04:31 AM (IST)

इधर फसल की कटाई शुरू हो गई है। उधर किसान की जेब की कटाई शुरू हो गई है। इधर सरकार बड़े-बड़े विज्ञापन देकर दावे कर रही है कि फसल की खरीद एम.एस.पी. पर हो रही है। उधर सरकार की अपनी वैबसाइट इस दावे की पोल खुल रही है। इधर किसान आंदोलन के जवाब में प्रधानमंत्री की घोषणा है कि एम.एस.बी.टी.एम. एस.पी. है और एम.एस.पी. रहेगी। उधर किसान की आशंका है कि जो एम.एस.पी. सिर्फ कागज पर थी, वह आज भी कमोबेश कागज पर है और लगता है कि कागज पर ही रहेगी। 

पिछले एक महीने में सत्ता और किसान के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चली बहस ने एक नया रूप ले लिया है। जबसे रबी की फसल कटने के बाद बाजार में आनी शुरू हुई तब से संयुक्त किसान मोर्चा ने ‘एम.एस.पी .दिलाओ’ की मांग के साथ सरकारी दावों का भंडाफोड़ करना शुरू किया। जय किसान आंदोलन ने प्रतिदिन ‘एम.एस.पी. लूट कैलकुलेटर’ के नाम से एक रिपोर्ट जारी करनी शुरू की है। 

इस रिपोर्ट का आधार है सरकारी वैबसाइट एगमार्कनेट डॉट गॉव डॉट इन। जिसमें देश की हजारों मंडियों में प्रतिदिन हर जिन्स की खरीद-फरोख्त के आंकड़े दर्ज किए जाते हैं। इस वैबसाइट में आप किसी भी मंडी का ब्यौरा देख सकते हैं कि कल उस मंडी में कौन सी फसल की कितनी आवक हुई और उसका औसत बिक्री मूल्य क्या रहा। इस आधार पर यह गणना की जा सकती है कि कितनी फसल एम.एस.पी. या उसके ऊपर बिकी और कितनी फसल एम.एस.पी. से कितनी नीचे बिकी। सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे बेचने पर किसान को कुल कितना घाटा हुआ, इसे जय किसान आंदोलन ‘किसान की लूट’ की संज्ञा देकर प्रतिदिन इसके आंकड़े जारी कर रहा है।सबसे पहले रबी की सबसे प्रमुख फसल गेहूं को लें। गेहूं की खरीद करना सरकार की मजबूरी है क्योंकि यह सस्ते राशन के डिपो से जुड़ा है। इसलिए सरकार बढ़-चढ़कर गेहूं की खरीद के दावे करती है। 

नवीनतम सरकारी विज्ञापन बताता है कि 12 अप्रैल तक सरकार ने लगभग 4 लाख किसानों की गेहूं फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी1975 प्रति क्विंटल देकर खरीदा था। विज्ञापन यह नहीं बताता कि कुल कितनी खरीद हुई थी और उसमें से कितनी फसल एम.एस.पी. पर खरीदी गई। यह आंकड़ा एगमार्कनेट की वैबसाइट से मिलता है। हम पाते हैं कि 12 अप्रैल के दिन पंजाब और हरियाणा में गेहूं की पूरी फसल एम.एस.पी. पर खरीदी गई। उस दिन मध्यप्रदेश में गेहूं की कुल आवक का 41प्रतिशत एम.एस.पी. से नीचे बिका। महाराष्ट्र में यह मात्रा 46 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 52प्रतिशत थी। राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ में तो उस दिन कुल आवक का 5 प्रतिशत भी एम.एस.पी. पर नहीं बिका था। 

इन राज्यों में किसान को प्रति क्विंटल 1975 रुपए की बजाय 1700 से 1800 के बीच दाम मिला, यानी हर क्विंटल पर दो से अढ़ाई सौ रुपए की लूट हुई। पूरे मार्च के महीने में गेहूं की फसल में किसान की 196 करोड़ रुपए की लूट हुई थी। कुल मिलाकर देश में चने के किसानों को मार्च के महीने में 273 करोड़ रुपए की लूट सहनी पड़ी। मक्का की फसल पिछले साल भर से बहुत कम दाम में बिक रही है। मार्च के महीने में मक्का अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 की बजाय औसतन 1514 में बिकी। 

देशभर में किसानों की 106 करोड़ रुपए की लूट हुई। सर्दी के मौसम का हाल और ज्वार की फसल भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे बिकी। जिन किसानों ने पिछले मौसम का बाजरा बेहतर दाम की उम्मीद में बचा रखा था, उन्हें भी निराशा हाथ लगी और बाजरा कोई 1200 में बेचना पड़ा। इस मौसम में सिर्फ सरसों की फसल है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर बिक रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य 4650 है और देश के अधिकांश इलाकों में सरसों 5000 से अधिक दाम पर बिक रही है। लेकिन इसका श्रेय सरकार को नहीं बाजार को जाता है। 

यह मामला केवल इस साल का नहीं है सच यह है कि किसान को या तो मौसम की मार पड़ती है या फिर बाजार की। सच यह है कि हर साल एम.एस.पी. के नाम पर यह मजाक चलता रहता है। सच यह है कि इस साल अगर किसान आंदोलन के बावजूद भी यह स्थिति है तो बाकी सालों में तो स्थिति इससे भी खराब रहती है। इसीलिए किसान आंदोलन में तीन कानूनों को रद्द करने के अलावा एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी की मांग की है। किसान समझ रहे हैं कि एम.एस.पी. का कागज पर होना और उसकी रस्मी घोषणा का कोई मतलब नहीं है जब तक बाजार में उसकी खरीद की व्यवस्था नहीं होती। सवाल यह है कि क्या इस ऐतिहासिक आंदोलन से किसान अपनी इस ऐतिहासिक मांग को मनवा पाएंगे? किसान को दान नहीं दाम चाहिए।-योगेन्द्र यादव
 


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