महाराष्ट्र में धुंधली पड़ती राजनीति

punjabkesari.in Friday, Jun 23, 2023 - 05:08 AM (IST)

एक आम कहावत है ‘राजनीति दुष्टों की अंतिम शरणस्थली है’ लेकिन राजनीतिक क्षेत्र भी एक ऐसी जगह है जहां बड़े लोग बचकाने खेल खेलते हैं। करदाता इस तरह की मौज-मस्ती को नजरअंदाज कर सकता है लेकिन तब नहीं जब वह सरकारी खजाने की कीमत पर हो रही हो। 

बहुत विलम्ब से होने वाले नगर निगम चुनावों और निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों की प्रत्याशा में, एकनाथ शिंदे जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में एक वर्ष के कार्यकाल में हैं, ने खुद को ‘कवचधारी शूरवीर’ के रूप में देखना शुरू कर दिया। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि जैसे ही उन्हें और उनके 40 लोगों को उस ‘सेना’ का अपना संस्करण बनाने के लिए ठाकरे शिवसेना से अलग कर दिया गया, वे उच्च पद पर आसीन हो जाएंगे। उस विभाजन के मुख्य सूत्रधार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के देवेन्द्र फडऩवीस थे। वह नई गठबंधन सरकार के बड़े घटक भाजपा का नेतृत्व करते हैं। स्वाभाविक रूप से उन्हें उम्मीद थी कि दिल्ली में उनकी पार्टी के बड़े नेता उन्हें प्रमुख के रूप में नियुक्त करेंगे। लेकिन बड़े लोगों के विचार कुछ और ही थे। 

उन्होंने जातीय विन्यास को अवश्य ध्यान में रखा होगा। शिंदे बहुसंख्यक मराठा जाति से हैं जबकि गरीब फडऩवीस ब्राह्मण हैं। अगर फडऩवीस  को आकार में छोटा करने का इरादा होता तो मुझे पता नहीं चलता और यह मुद्दे से परे है। एक सिद्ध प्रशासक फडऩवीस को नंबर 2 पर गिरा दिया गया। फडऩवीस के पास पदावनति  को सहजता से लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। यह इतनी परिपक्व थी कि बदली हुई व्यवस्था के साथ तालमेल बिठा सके। उन्होंने अपने नए बॉस जिन्हें उन्होंने अकेले ही तैयार किया था, के साथ सार्वजनिक समारोहों में मंच सांझा करके और सम्मान पाकर खुद को संतुष्ट किया। 

बड़े पैमाने पर जनता को लगा कि वास्तव में राज्य में दो मुख्यमंत्री थे और चूंकि वे एक-दूसरे के करीब नहीं आ रहे थे इसलिए सब कुछ अस्त-व्यस्त था। और फिर बहुत अचानक से और अप्रत्याशित रूप से पोस्टर आया। यह एक सुहानी सुबह में मेरे शहर मुम्बई की सभी सड़कों के कोनों पर दिखाई दिया। हमारे सर्वव्यापी प्रधानमंत्री के साथ केवल मुख्यमंत्री शिंदे को ही पोस्टर में जगह मिली। बेचारे फडऩवीस का कोई निशान नहीं जिनकी तस्वीर प्रशासन द्वारा लगाए गए पिछले सभी पोस्टरों में एकनाथ शिंदे के साथ हमेशा छपी थी। चूंकि पोस्टर भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) सरकार के कार्यकाल के पहले वर्ष का जश्र मनाने के लिए था और इसकी उपलब्धियों का गुणगान किया गया था। ऐसे में डिप्टी सी.एम. की पिक्चर गैलरी से गायब दिखी। पर इस पर तुरन्त ध्यान दिया गया क्योंकि यह चूक बेहद स्पष्ट थी। 

इसके अलावा पोस्टर में स्पष्ट रूप से एक टी.वी. चैनल द्वारा तैयार किए गए सर्वेक्षण का जिक्र किया गया है जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वेक्षण में शामिल लोगों द्वारा शिंदे को फडऩवीस से ऊपर अधिक लोकप्रिय नेता के रूप में दर्जा दिया गया था। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जिस एजैंसी को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसे शिंदे या उनके करीबियों ने चुना और नियुक्त किया था। देखते ही देखते यह पोस्टर वायरल हो गया। मैं जानता हूं कि प्रत्येक महाराष्ट्रीयन को यह बेहद मनोरंजक लगा। नि:संदेह देवेंद्र फडऩवीस खुश नहीं थे। उनके पास अप्रसन्न होने का हरेक कारण था। वह ही शिंदे को अंधेरे से उजाले की ओर लेकर आए थे। यह उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने उन्हें और भाजपा को धोखा देने के लिए उद्धव को भुगतान किया था। राकांपा को साथ लेकर कांग्रेस ने महाविकास अघाड़ी का गठन किया। हालांकि भाजपा और शिवसेना ने चुनाव मिलकर लड़ा था इसलिए अपने ही शिष्य द्वारा इस अपमानजनक तरीके से बदला लिया जाना कुछ अप्रत्याशित और अस्वीकार्य भी था। 

ऐसा लगता है कि मामला अगले ही दिन दोनों नेताओं के बीच सुलझ गया क्योंकि पोस्टर को शुरूआती दिखने के तीसरे ही दिन हर जगह से हटा दिया गया था लेकिन नुक्सान हो चुका था। दुश्मनी के बीज बोए जा चुके थे। आने वाले वर्ष में यह किसी न किसी रूप में प्रकट होगा। इसकी गूंज बी.एम.सी. में और भी जोरदार तरीके से सुनी जाएगी। इस साल के अंत में चुनाव के बाद से भाजपा और शिंदे शिवसेना के अलग-अलग संस्थाओं के रूप में स्थानीय चुनाव लडऩे की संभावना है। 
संयोग से इस सप्ताह प्रकाशित न्यूज  एरेना इंडिया नामक संस्था का ताजा सर्वेक्षण फडऩवीस को शिंदे से काफी आगे रखता है जिसमें शिंदे के लिए 12 प्रतिशत के मुकाबले 35 प्रतिशत लोगों का शेयर फडऩवीस को मिला। कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण और राकांपा के अजीत पंवार भी 21 प्रतिशत के साथ शिंदे से आगे हैं। उद्धव ठाकरे 9 प्रतिशत के साथ पीछे चल रहे हैं। 

महाराष्ट्र में महत्व रखने वाली 5 पाॢटयों की चुनावी संभावनाएं इस विशेष मोड़ पर अथाह हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा की नाक ऊंची है। खासकर मुम्बई, पुणे और नागपुर के शहरी समूहों में 4 अन्य शहर हैं ठाणे, शोलापुर, अकोला और औरंगाबाद जहां भाजपा जमीन हासिल कर लेगी। बी.एम.सी. में चुनावों में संभावना यह है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट को दूसरे स्थान पर धकेल देगी। राकांपा और कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगी। उनके कार्यकत्र्ता उन क्षेत्रों में अधिक सक्रिय हैं जहां व्यक्तिगत नेताओं का वर्चस्व है। शिंदे की शरणस्थली ठाणे में शिवसेना का शिंदे गुट मजबूत है। अंदरुनी तौर पर ठाकरे शिवसेना को सर्वश्रेष्ठ बनाने के उनके प्रयास विशेष रूप से सफल नहीं रहे हैं। 

कांग्रेस ने अन्य दलों की तुलना में अधिक हठधर्मिता दिखाई है और कर्नाटक में जीत के बाद से तो यह और भी अधिक अडिय़ल हो गई है। इसके अन्य दो सांझेदार एस.एस. (उद्धव) और राकांपा अब तक ग्रैंड ओल्ड पार्टी से बेहतर दावेदार है। अगर गांधी परिवार 2024 के चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी को उनकी नींद से वंचित करने के लिए प्रतिबद्ध है तो उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति के तूफानी पानी से निपटने के लिए और अधिक राजनीतिक ज्ञान प्राप्त करना होगा।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
    


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