शिरोमणि अकाली दल में गुटबंदी
punjabkesari.in Friday, Jul 14, 2023 - 05:55 AM (IST)

क्या शिरोमणि अकाली दल (शिअद) अपनी वर्तमान स्थिति से उभर पाएगा? क्या सांसद सिमरनजीत सिंह मान बादल अकाली से समझौता करने पर सहमत होंगे? क्या बीबी जगीर कौर और चरणजीत सिंह अटवाल जैसे नेता फिर सुखबीर सिंह बादल से हाथ मिलाएंगे? क्या रवि इन्द्र सिंह वापस घर आ पाएंगे? ढींडसा ग्रुप या ब्रह्मपुरा ग्रुप के बागी सुखबीर सिंह की अधीनता स्वीकार करेंगे? पहले इन प्रश्रों का उत्तर सुखबीर सिंह बादल देंगे तो फिर भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन के बारे में विचार होगा।
बसपा से सुखबीर सिंह बादल का गठबंधन तो है, परन्तु 2022 के विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर पाया। दूसरा, बरगाड़ी जैसे कांड सुखबीर सिंह को अदालतों से बाहर नहीं आने देंगे। इन हालात में शिअद को गहन ङ्क्षचतन करना पड़ेगा। विचारणीय है कि शिरोमणि अकाली दल सौ सवा सौ सालों से अधिक का हो गया है। अब प्रकाश सिंह बादल, गुरचरण सिंह टोहरा, मास्टर तारा सिंह या संत फतेह सिंह जैसे नेता शिरोमणि अकाली दल को ढूंढने से नहीं मिलेंगे। जगदेव सिंह तलवंडी और संत लौंगोवाल को कहां से लाया जाए? नेतागिरी का एक भयानक अभाव शिअद में दिखाई दे रहा है।
इस पर तुर्रा यह कि तीन किसानी कानूनों की ओट में शिअद भाजपा से गठबंधन तोड़ चुका है। अकाली दल में गुटबंदी आज चरम पर है। वैसे तो अकाली दल का इतिहास ही गुटबंदी से भरा पड़ा है। पंजाब की राजनीति से शिअद को निकाल दें तो राजनीति फीकी नजर आएगी। अकाली दल पंजाब का एक प्रमुख प्रादेशिक दल है। सिर्फ गुरुद्वारों को ही महंतों से मुक्त नहीं करवाया, बल्कि आजादी के आंदोलन में महान योगदान दिया। अकाली दल के जन्मदाता मास्टर तारा सिंह और बाबा खड़क सिंह थे।
यह दोनों नेता कांग्रेस की रीति-नीति के विरुद्ध थे। सन् 1952 के आम चुनावों में शिरोमणि अकाली दल ने काफी सफलता प्राप्त की थी। इसी बीच अकाली दल ने अलग ‘पंजाबी सूबे’ की मांग रख दी, जिस पर शिरोमणि अकाली दल दो गुटों में बंट गया। एक गुट की रहनुमाई मास्टर तारा सिंह और दूसरे गुट के नेता थे संत फतेह सिंह। मास्टर तारा सिंह ‘सिख होमलैंड’ चाहते थे, परन्तु संत फतेह हिन्दू-सिख भाईचारे के प्रतीक थे।
नवम्बर 1966 को मास्टर तारा सिंह की मांग को मानते हुए पंजाब का बंटवारा हो गया। मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह की गुटबंदी जग जाहिर थी। 1967 में पंजाब में पहली बार अकाली नेता गुरनाम सिंह के नेतृत्व में अकाली दल, कम्युनिस्ट और जनसंघ ने मिलकर पंजाब मंत्रिमंडल बनाया। 1968 में मास्टर तारा सिंह का देहांत हो गया। 1970 में शिअद में लक्ष्मण सिंह अपना गुट बना गए और गुरनाम सिंह को जाना पड़ा।
1972 में संत फतेह सिंह की मृत्यु हो गई और अकाली दल की गुटबंदी प्रकाश सिंह बादल और गुरचरण सिंह टोहरा के हाथ आई। 1977 में शिरोमणि अकाली दल ने जनता पार्टी से मिलकर सरकार बनाई। 1980 में मंत्रिमंडल भंग हो गया। शिअद दो दलों में बंट गया। एक का नेतृत्व जगदेव सिंह तलवंडी और दूसरे का संत लौंगोवाल के हाथ आया। 1980-1992 के 12 वर्ष उग्रवाद की भेंट चढ़ गए। 1985 में राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ तो सरकार सुरजीत सिंह बरनाला ने बनाई।
1986-87 में कृषि मंत्री राजा अमरेंद्र सिंह दरबार साहिब के मसले पर बरनाला सरकार को छोड़ गए। शिरोमणि अकाली दल में स्थायित्व तभी आया जब भारतीय जनता पार्टी और अकाली आपस में मिलकर चले। भाजपा और शिअद मिलकर चलें तो पंजाब का भला होता है। शिअद ने बरनाला सरकार खुद गुटबंदी में तोड़ दी। पंजाब में 1997 में एक बार पुन: भाजपा और शिअद ने सरकार बनाई। सरकार बढिय़ा चली। पंजाब अपने पैरों पर खड़ा होने लगा।
प्रकाश सिंह बादल पंजाब में एक नाम बन गया, परन्तु किसानी कानूनों की ओट में समझौता टूट गया। शिअद को बारी-बारी बड़े-बड़े नेता छोडऩे लगे। शिअद के प्रधान श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी में फंसते चले गए। आज शिरोमणि अकाली दल मरणासन्न स्थिति में है, जिसे सुखबीर सिंह बादल को बाहर निकालना है। वैसे भी अकाल तख्त से जत्थेदार मनजीत सिंह के प्रयत्नों से 1 मई, 1994 को अकाली दल (पंथक), अकाली दल (काबुल), अकाली दल (मान), बब्बर अकाली दल (मंजीत ग्रुप) अकाली दल (लौंगोवाल) तथा अकाली दल (तलवंडी) के विलय से नई अकाली पार्टी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) का गठन हुआ, परन्तु इसमें अकाली दल (बादल) शामिल नहीं हुआ।
परन्तु प्रो. मनजीत सिंह के सतत प्रयत्नों से 14 अप्रैल, 1995 को शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) और शिरोमणि अकाली दल के विलय से सुखबीर सिंह और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला वर्तमान शिरोमणि अकाली दल अस्तित्व में आया। प्रकाश सिंह बादल को नए अकाली दल का अध्यक्ष बनाया गया। इतना कुछ होने पर भी प्रकाश सिंह के धड़े को सिमरनजीत सिंह मान धड़ा मान्यता नहीं देता। विधानसभा के भूतपूर्व स्पीकर रवि इन्द्र सिंह आज भी अपना राग अलाप रहे हैं।
विधानसभा चुनावों में शिरोमणि अकाली दल को भारी पराजय के बावजूद शिअद अपनी गुटबंदी नहीं छोड़ रहा। अभी मैं गुरचरण सिंह टोहरा के अकाली दल को छोड़ गया, जिसे 26 जून, 1999 को चुनाव आयोग ने पंजीकृत किया था। मैंने इतिहास के पन्ने इसलिए उलट-पुलट किए, ताकि सुखबीर सिंह बादल सबक लें। अपने मतभेद भुलाकर सभी धड़ों को इक्ट्ठा करें। शिअद (बादल) की मान्यता, सम्मान तभी कायम होगा यदि आप सभी धड़ों को एक प्लेटफार्म पर ले आओगे। आपके पीछे तो आपके पिता प्रकाश सिंह की लीगेसी खड़ी है। मन मजबूत करो। सबको साथ लो और पंजाब की राजनीति में अपना स्थान बनाओ। -मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)