‘चुनौतियों के बावजूद उम्मीदें बरकरार’

Friday, Jan 01, 2021 - 03:29 AM (IST)

कोविड- 19 महामारी तथा अन्य परेशान करने वाली घटनाओं का साक्षी रहा वर्ष 2020 समाप्त हो गया है। अब नया वर्ष कितना खुशगवार होगा इस बारे में अभी निश्चित तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल होगा। कई अच्छे और खराब मुद्दे हैं जो वर्ष 2021 में हमारी उम्मीदों को बरकरार रखते हैं, बशर्ते कि हमारे नेता अपने वायदों पर खरा उतरें और आर्थिक तथा विदेश नीति व मोर्चे पर देश के समक्ष नई चुनौतियों की गंभीरता को समझें। 

इस समय नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती किसानों का आंदोलन है। इस समय देश बड़ी उत्सुकता से यह देख रहा है कि सत्ताधारी दल के नेता कैसे किसानों की पेचीदा समस्याओं को हल करते हैं। हमारी शक्ति हमारी विश्वसनीयता है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि संविधान के तहत उदार, निष्पक्ष और निडर समाज व सरकार के रूप में हमारी जो पहचान दशकों से कायम है हम उस पर कैसे खरे उतरें। 

इस संबंध मैं अक्सर डब्ल्यू. राइडर की किताब पंचतंत्र को पढ़ता हूं जोकि संस्कृत की एक प्रसिद्ध किताब का अनुवाद है। इस किताब में शासक और शासित अच्छाई और बुराई, बलिदान और लालच, सच और झूठ तथा अन्य चीजों का उल्लेख है। यह किस्से वर्तमान समस्याओं के समाधान में सहायक साबित हो सकते हैं। मनुष्य के जीवन में पाशविक इच्छाओं और सच्चे मानवीय गुणों के बीच संघर्ष चलता रहता है। इनमें विवेकपूर्ण सीख से सही रास्ते का चयन ही सारी परिस्थिति को बदल देता है। 

यदि अच्छे और बुरे में अंतर करने का न हो विवेक
और यदि धर्म न सिखाए इच्छाओं पर रखना रोक
यदि वह रहे केवल भौतिक सुखों के ही लालच में
तो फिर अंतर क्या रह जाए पशु और मानव में? 

हमारे नीति शास्त्र तथा अन्य धार्मिक ग्रंथ हमें जीवन के रहस्य बताते हैं तथा हमारा मार्गदर्शन करते हैं जिससे हम सही और गलत, उचित और अनुचित में अंतर करना सीख पाते हैं। लेकिन कहीं न कहीं हम पंचतंत्र द्वारा दिखाए गए रास्ते को भूल गए हैं जिसमें जानवर रूपी पात्रों के माध्यम से बहुत ही काम की नीतिपूर्ण बातें समझाई गई हैं।

गलत-गलत है उसे बुद्धिमान सही मान नहीं सकता
चाहे जितना भी प्यासा हो, वह गली का पानी नहीं पी सकता। 

देश में मूल समस्या यह है कि शासन की गुणवत्ता लगातार कम हो रही है। भ्रष्टाचार के बढ़ते मामले इस बात के गवाह हैं कि सिस्टम में कितनी खराबी आ चुकी है। मैं यहां किसी पार्टी विशेष या उसके नेताओं की बात नहीं कर रहा। ऐसा नहीं है कि सारा सिस्टम ही फेल हो चुका है लेकिन बहुत से भ्रष्ट कृत्यों से सिस्टम की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास को आघात पहुंचा है। क्या भ्रष्ट तरीके से इकट्ठा किया गया धन भ्रष्ट लोकतंत्र का आधार नहीं बनेगा? इस सब के बावजूद जागरूक लोगों ने देश की शान को बचाकर रखा है। मैं इस बात को उठाना चाहता हूं कि समय-समय पर यह जो लोग सत्ता में आते हैं उनमें नैतिक मूल्यों का एक स्तर होना चाहिए।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि देश में मूल्यों पर प्रहार हो रहा है क्योंकि देश विभिन्न हितों के आपसी टकराव के बीच फंसा है। इससे ज्यादा दुखद क्या हो सकता है कि लोकतंत्र के नाम पर डीलर लोगों के भविष्य का फैसला करें। भगवान का शुक्र है कि अभी हम इतना नीचे नहीं गिरे हैं। मैं अभी निराश नहीं हुआ हूं। हमारा लोकतंत्र बहुत मजबूत है। मैं हर हालत में आशा की किरण देखता हूं, चाहे स्थिति कितनी भी ङ्क्षचताजनक क्यों न हो। कोई भी लोकतंत्र तभी जीवित रह सकता है यदि उसकी समस्याएं संविधान में निर्धारित अनुसार अपने वैधानिक कत्र्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करें। 

यह बात गर्व से स्वीकार करनी चाहिए कि व्यक्ति विशेष के मुकाबले संस्थाएं बड़ी होती हैं। इसी के साथ यह भी सच है कि कुछ लोग जनहित में ईमानदारी और दृढ़ता से कानून के अनुसार काम करके किसी संस्थान की विश्वसनीयता और सम्मान को बढ़ा सकते हैं। मैं पहले ही कह चुका हूं कि एक लोकतंत्र के रूप में भारत अब भी जीवंत है।

जरूरत इस बात की है कि सूचना के स्वतंत्र प्रसार, पारदर्शिता और शासन में चल रही गतिविधियों पर नजर रखते हुए हम सरकार पर उचित दबाव बनाकर रखें। मेरा मानना है कि देश और जनता के हित में हमें सत्य के लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। गोपनीयता जितनी कम होगी और पारदॢशता जितनी अधिक होगी उतना ही समानाधिकार को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह के उपायों से लोकतंत्र मजबूत होगा। बहरहाल जनता को हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाने के लिए एक सजग प्रहरी के रूप में काम करना होगा ताकि इन संस्थाओं को षड्यंत्रकारियों और माफिया से बचाया जा सके।-हरि जयसिंह
 

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