स्वामी विवेकानंद में सब कुछ सकारात्मक, नकारात्मक कुछ भी नहीं
punjabkesari.in Wednesday, Sep 11, 2024 - 06:23 AM (IST)
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्याख्यानों में से एक, स्वामी विवेकानंद जी के भाषण की तारीख 11 सितंबर, 1893। क्या था वह भाषण, जिसने अमरीका नहीं, पूरे पश्चिम को भारत का मुरीद बना दिया। नरेंद्र नाथ दत्त, जिन्हें पूरा विश्व विवेकानंद के नाम से याद करता है। उस दिन सनातन संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित किया गया था। 11 सितंबर को न्यूयार्क के लिए नहीं, शिकागो के लिए याद किया जाना चाहिए। विध्वंस के लिए नहीं, विश्व शांति के लिए याद किया जाना चाहिए। आतंकवाद के लिए नहीं, सनातन संवाद के लिए याद किया जाना चाहिए। लादेन के लिए नहीं, नरेंद्र के लिए याद किया जाना चाहिए।
शब्दों के जादूगर : विवेकानंद के संवाद का यह जादू शब्दों के पीछे छिपी चिर पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म व उस युवा के त्यागमय जीवन का था, जो शिकागो से निकला व पूरे विश्व में छा गया।
स्वामी विवेकानंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमरीकी प्रैस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था- उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे।
चिर पुरातन नित्य नूतन के वाहक : ‘अतीत को पढ़ो, वर्तमान को गढ़ो और आगे बढ़ो’ विवेकानंद जी का मूल संदेश रहा। जो समाज अपने इतिहास एवं वांग्मय की मूल्यवान चीजों को नष्ट कर देता है, वह निष्प्राण हो जाता है और यह भी सत्य है कि जो समाज इतिहास में ही डूबे रहते हैं, वे भी निष्प्राण हो जाते हैं। वर्तमान समय में तर्क और तथ्य के बिना किसी भी बात को सिर्फ आस्था के नाम पर आज की पीढ़ी के गले नहीं उतारा जा सकता। भारतीय ज्ञान को तर्क के साथ प्रस्तुत करने पर पूरी दुनिया आज उसे स्वीकार करती हुई प्रतीत भी हो रही है। विवेकानंद ने शिकागो भाषण में इस बात को चरितार्थ भी करके दिखाया था, जहां मंच पर संसार की सभी जातियों के बड़े-बड़े विद्वान उपस्थित थे।
डॉ. बरोज के आह्वान पर 30 वर्ष के तेजस्वी युवा का मंच पर पहुंचना। भाषण के प्रथम चार शब्दों ‘अमरीकावासी भाइयो तथा बहनो’ को सुनते ही जैसे सभा में उत्साह का तूफान आ गया और 2 मिनट तक 7,000 लोग उनके लिए खड़े होकर तालियां बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया।
युवा दिलों की धड़कन : उम्र महज 39 वर्ष, अपनी मेधा से विश्व को जीतने वाले, युवाओं को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले, अपनी संस्कृति व गौरव का अभिमान विश्व पटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद, जिनमें सब कुछ सकारात्मक है, नकारात्मक कुछ भी नहीं। उस नौजवान में गुलामी की छाया न विचार में थी, न व्यवहार में और न वाणी में। भारत मां की जागृत अवस्था को जिसने अपने भीतर पाया था। एक ऐसा महापुरुष जो पल-दो-पल में विश्व को अपना बना लेता है, जो पूरे विश्व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। जो विश्व को अपनत्व की पहचान दिलाता है और जीत लेता है। वेद से विवेकानंद तक, उपनिषद से उपग्रह तक हम इसी परंपरा में पले बढ़े हैं।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी : कैसे एक बालक विवेकानंद, योद्धा संन्यासी विवेकानंद के रूप में पूरे विश्व की प्रेरणा बन गया। स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व का धनी रहा। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, स्वदेशी का भाव, भारत का भविष्य आदि।
भारत बोध की प्रेरणा : दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। सी. राजगोपालाचारी के अनुसार, ‘स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की’। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा ‘विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता हैं’। महात्मा गांधी मानते थे कि ‘विवेकानंद ने उनके देशप्रेम को हजार गुणा कर दिया। स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक भारत के लिए कीमती और चमकता हीरा साबित किया है। उनके योगदान के लिए उन्हें युगों और पीढिय़ों तक याद किया जाएगा’। जवाहर लाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है- ‘विवेकानंद दबे हुए और उत्साहहीन हिन्दू मानस में एक टॉनिक बनकर आए और उसके भूतकाल में से उसे आत्मसम्मान व अपनी जड़ों का बोध कराया’।
यदि यह कहा जाए कि स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता थे, तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। स्वामीजी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु भारतवासियों के मनों में एक स्वाभिमान का माहौल निर्मित किया। आज के समय में विवेकानंद के मानवतावाद के रास्ते पर चलकर ही भारत एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। वे बराबर कहा करते थे कि हमें ऐसे युवकों और युवतियों की जरूरत है, जिनके अंदर ब्राह्मणों का तेज तथा क्षत्रियों का वीर्य हो। हम भाग्यवान हैं कि हमारे पास एक महान विरासत है। उस महान विरासत के गौरव को आधार बना युवा मन के साथ संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़ें। आज चारों ओर जिस प्रकार का बौद्धिक विमर्श दिखाई दे रहा है, उसमें युवा होने के नाते अपनी मेधा व बौद्धिक क्षमता का परिचय हम को देना ही होगा। यही वास्तव में आज हमारी ओर से सच्ची आहुति होगी। -डॉ. पवन सिंह