राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना और स्वंतत्रता संग्राम

punjabkesari.in Saturday, Aug 13, 2022 - 06:26 PM (IST)

भारत को अंग्रेजों से आजादी मिले 75 वर्ष पूरे होने वाले हैं। साल 2025 में संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे। गांधी जी ने सत्याग्रह के माध्यम से, चरखा और खादी के माध्यम से सर्व सामान्य जनता को स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी होने का एक सरल एवं सहज तरीका, साधन उपलब्ध कराया और लाखों की संख्या में लोग स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ सके। परन्तु सारा श्रेय एक ही आंदोलन या पार्टी को देना यह इतिहास से खिलवाड़ है और अन्य अन्य सभी के प्रयासों का अपमान है।

इतिहास से भविष्य के लिए समुचित दृष्टि का निर्माण संभव हो पाता है। किसी भी समाज के लिए अपने इतिहास का यथार्थ मूल्यांकन आवश्यक है। आर.एस.एस. के सह सरकार्यवाहक डा. मनमोहन वैद्य के अनुसार, एक योजनाबद्ध तरीके से देश को आधा इतिहास बताने का प्रयास चल रहा है कि स्वतंत्रता संघ के सिर्फ कांग्रेस की वजह से मिली, और किसी कहते हैं कि ने कुछ नहीं किया। सारा श्रेय एक पार्टी को बैठक में क्रां देना, इतिहास से खिलवाड़ है।"

इतिहासकारों का कहना है कि संघ के संस्थापक डाक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार पड़ा था। 1921 खुद एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वह ऐसे कुछेक में चले असहय आंदोलनकारियों में शुमार हैं जिन्होंने भारतीय ने महती भूमिक स्वतंत्रता संघर्ष के तीनों प्रमुख आंदोलनों (असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन वह जेल 2025 में और भारत छोड़ो आदोलन) में भाग लिया था।  हेडगेवार पहले कांग्रेस से जुड़े हुए थे और और 1920 के नागपुर अधिवेशन में एक प्रांतीय नागपुर में जनता को नेता के तौर पर उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव समारोह में का एक दिया था, जिसे कांग्रेस ने नकार दिया था। आर.एस.एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत स्वतंत्र आंदोलन के अनुसार, “संघ स्थापना के 5 साल पहले को डा. हेडगेवार नागपुर अधिवेशन के व्यवस्थापक थे।

गांधी जी उस अधिवेशन के अध्यक्ष थे। पहला प्रस्ताव था गौ हत्या बंदी। और दूसरा प्रस्ताव था कांग्रेस अपने ध्येय घोषित करे कि आत्म-नि भारत का संपूर्ण स्वातंत्र्य हमारा ध्येय है।” संघ के सर संघचालक मोहन भागवत कहते हैं कि "1921 में प्रांतीय कांग्रेस की बैठक में क्रांतिकारियों की निंदा करने वाला प्रस्ताव रखा गया था। तब डा. हेडगेवार के के संघ के जबरदस्त विरोध के कारण प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। 1921 में महात्मा गांधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में डा. हेडगेवार ने महती भूमिका निभाई थी। देश को आंदोलनों कराने के लिए अन्य क्रांतिकारियों की तरह वह जेल जाने से भी नहीं चूके। 19 अगस्त 1921 से 11 जुलाई 1922 तक कारावास में रहे। जेल से बाहर आने के बाद 12 जुलाई को नागपुर में उनके सम्मान में आयोजित सार्वजनिक समारोह में कांग्रेस के नेता मोतीलाल नेहरू, राजगोपालाचारी जैसे अनेक नेता मौजूद थे।"

स्वतंत्रता प्राप्ति का महत्व तथा प्राथमिकता को समझते हुए भी एक प्रश्न डा. हेडगेवार को सतत् सताता रहता था कि, 7000 मील से दूर व्यापार करने आए मुद्री भर अंग्रेज, इस विशाल देश पर राज कैसे करने लगे ? जरूर हममें कुछ दोष होंगे। उनके ध्यान में आया कि हमारा समाज आत्म-विस्मृत, जाति प्रान्त-भाषा-उपासना पद्धति आदि अनेक गुटों में बंटा हुआ, असंगठित और अनेक कुरीतियों से भरा पड़ा है जिसका लाभ लेकर अंग्रेज यहां राज कर सके। स्वतंत्रता मिलने के बाद भी समाज ऐसा ही रहा तो कल फिर इतिहास दोहराया जाएगा।

वे में हमारा सबसे कहते थे कि नागनाथ जाएगा तो सांपनाथ आएगा" इसलिए इस अपने राष्ट्रीय समाज को आत्मगौरव युक्त, जागृत, संगठित करते हुए सभी दोष, कुरीतियों से मुक्त करना और राष्ट्रीय गुणों से युक्त करनाअधिक मूलभूत आवश्यक कार्य है और यह कार्य राजनीति से अलग, प्रसिद्धि से दूर, मौन रहकर सातत्यपूर्वक करने का है, ऐसा उन्हें प्रतीत हुआ। उस हेतु 1925 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक की स्थापना की। संघ स्थापना के पश्चात भी सभी राजनीतिक या सामाजिक नेताओं, आंदोलन एवं गतिविधि के साथ उनके समान नजदीकी के और आत्मीय संबंध थे।

संध के पूर्व प्रचारक नरेंद्र सहगल के शब्दों में संघ अपने नाम से कुछ नहीं करता था। अपना नाम ओर संस्था के नाम से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में आजादी से जुड़े कांग्रेस के सभी आंदलनों में स्वंयसेवकों ने भाग लिया है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार खुद दो बार साल-साल भर के लिए जेल में रहे। पूरे सत्याग्रह के अंदर संघ के 16 हजार संव्यसेवक जेल में थे! 1942 के मूवमैंट जाएगा हमारा सबसे ज्यादा हिस्सा था, लेकिन संघ नाथ आएगा के नाम से नहीं था। " संघ के स्वतंत्रता आंदोलन में अमूल्य योगदान को आने वाली पीढ़ी के आगे ईमानदारी से लाना ही होगा।


 

 


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