पर्यावरण से जुड़े अपराध का शीघ्र निपटारा हो

punjabkesari.in Tuesday, Jul 09, 2024 - 05:47 AM (IST)

ज्यों -ज्यों भारत समेत पूरा विश्व विकसित होता जा रहा है, त्यों-त्यों पर्यावरण की सेहत बिगड़ती जा रही है। हालात यह बता रहे हैं कि विकसित होते विश्व में पर्यावरण केवल संगोष्ठियों का मुद्दा बन कर रह गया है। यही कारण है कि लगातार पर्यावरण की स्थिति बद से बदतर हो रही है। एक तरफ अनेक लोग और संगठन पर्यावरण को बचाने के लिए काम कर रहे हैं तो दूसरी ओर कई लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर पर्यावरण की स्थिति को बिगाडऩे पर तुले हैं। ऐसे लोग पर्यावरण से संबंधित अपराधों में लिप्त रहकर भी समाज के जिम्मेदार पदों पर रहते हुए भाषणबाजी कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि देश की विभिन्न अदालतों में पर्यावरण से संबंधित अपराधों के अनेक मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं। इस दौर में जिस गति से पर्यावरणीय अपराध बढ़ रहे हैं उस गति से इनका निपटारा नहीं हो पा रहा है। 

आज पर्यावरण का क्षेत्र एक बड़ा आपराधिक क्षेत्र बनता जा रहा है लेकिन इसे दूसरे अपराधों की तुलना में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है। यही कारण है कि पर्यावरणीय अपराधों के निपटारे में लापरवाही बरती जाती है। कुछ समय पहले गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन ‘सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंट’ ने एक रिपोर्ट में बताया था कि देश में पर्यावरण से जुड़े अपराध 4 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। हालांकि इन मामलों का निस्तारण बहुत धीमी गति से हो रहा है। अगर यही हाल रहा तो इन मामलों के निपटारे में कई दशक लग जाएंगे। अदालतों द्वारा रोज इस तरह मामलों का निपटारा किया जा रहा है लेकिन बैक लॉग खत्म करने के लिए ज्यादा मामलों का निपटारा होना जरूरी है। 

कुछ समय पूर्व ‘सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंंट’ द्वारा जारी यह रिपोर्ट पर्यावरण के क्षेत्र में पनप रहे खोखले आदर्शवाद की तरफ  भी इशारा करती है। क्या कारण है कि भाषणों में पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से पर्यावरणीय अपराधों में लिप्त लोग खुलेआम घूमते रहते हैं। दरअसल विश्व स्तर पर कुछ प्रचलित पर्यावरणीय अपराध माने जाते हैं। वन्यजीव अपराध अफ्रीका, एशिया और लातिन अमरीका में लगातार बढ़ता जा रहा है। इस अपराध से सभी प्रकार की प्रजातियां-स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप और उभयचर, कीड़े और पौधे प्रभावित होते हैं।

अवैध रूप से वृक्षों की कटाई ने दुनिया में सभी महाद्वीपों को प्रभावित किया है और यह चीन,  भारत और वियतनाम जैसे सभी ऊष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों में व्यापक रूप से हो रही है। विश्व के कई भागों में अवैध रूप से मछली पकडऩा इसी अपराध की श्रेणी में आता है। पर्यावरणीय अपराधों में प्रदूषण संबंधी अपराधों का भी बड़ा दायरा है। अवैध कचरे की तस्करी तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन,हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और अन्य ओजोन क्षयकारी पदार्थों का अवैध उत्पादन और उपभोग भी इसी श्रेणी में आता है। 

अवैध खनन के पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए इसे पर्यावरण अपराध की श्रेणी में रखा गया है। पर्यावरण अपराधों की अन्य सूचियों में कचरा और अपशिष्ट निपटान, तेल रिसाव, जल स्रोतों में अनुचित  निष्कासन, आद्र्र भूमि  वैटलैंड, विनाश, कीटनाशकों का अनुचित निष्कासन आदि शामिल हैं। दरअसल पर्यावरण के मुद्दों को निपटाने के लिए बहुत से कानून अस्तित्व में हैं लेकिन उनका ठीक ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। अनेक पर्यावरणीय अपराधों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन.जी.टी.) की स्थापना की गई थी। हालांकि एन.जी.टी. एक अद्र्धन्यायिक निकाय है और इसके पास सीमित शक्तियां हैं। सामान्य अदालतों पर बोझ कम करने के लिए एन.जी.टी. बनाया गया था। इसके पास कानून-प्रवर्तन एजैंसियों के समान अधिकार हैं लेकिन यह एक सामान्य अदालत की तरह नहीं है। एन.जी.टी. अपराध की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर सजा के लिए सिफारिशें जारी कर सकता है। 

हालांकि इस तरह की सजा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। आज एन.जी.टी. को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एन.जी.टी. अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा की जरूरत है। आमतौर पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायिक सदस्यों के रूप में नियुक्त किए जाते हैं। इसके साथ ही 15 साल के अनुभव वाले भौतिक विज्ञान या जीव विज्ञान में डॉक्टरेट तथा इंजीनियरिंग स्नातकोत्तर व्यक्तियों को भी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया जाता है। सवाल यह है कि विशेषज्ञों को किताबी ज्ञान के अलावा कितना व्यावहारिक ज्ञान होता है? आज जरूरत इस बात की है कि प्राधिकरण और अदालतों में व्यावहारिक ज्ञान वाले पर्यावरण विशेषज्ञों और जजों की नियुक्ति भी की जाए। पर्यावरण के संदर्भ में जजों की समझ विकसित करने के लिए निश्चित अंतराल पर कार्यशालाएं भी आयोजित की जा सकती हैं। पर्यावरणीय अपराधों के शीघ्र निस्तारण के लिए सरकार को भी पर्यावरणीय न्यायालयों में और ज्यादा संसाधन बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।-रोहित कौशिक   
 


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