अक्षय ऊर्जा क्रांति विकसित देश बनने की राह आसान बना सकती है

Saturday, Feb 25, 2023 - 05:15 AM (IST)

हमारे देश में जब कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति हुई थी तो हम खाद्यान्न के लिए विदेशों पर निर्भर थे। जमीन से अधिक उपज लेना ही इस स्थिति से बाहर निकाल सकता था। इसके लिए खेतीबाड़ी में बदलाव जरूरी थे जिससे किसान को अपनी मेहनत का सही मुआवजा मिले और देश भुखमरी के चंगुल से बाहर निकल सके। आज वैसी ही स्थिति ऊर्जा के क्षेत्र में है।

पूरी दुनिया पर इसका असर दिखाई दे रहा है। कोयले, डीजल, पैट्रोल और दूसरे परंपरागत साधनों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा न केवल महंगी होती जा रही है बल्कि उससे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन तथा उससे होने वाले दुष्प्रभाव जीवन पर संकट बनकर सामने आ रहे हैं। औद्योगिक भारत बनाने के लिए विद्युत उत्पादन के नवीन स्रोतों को खोजना और उनका भरपूर इस्तेमाल करना ही अनिवार्य विकल्प है।

अक्षय ऊर्जा का महत्व : इंगलैंड, अमरीका, आस्ट्रेलिया, चीन जैसे देशों ने बहुत पहले अनुमान लगा लिया था कि अक्षय ऊर्जा का उत्पादन ही एकमात्र विकल्प है जो इस परेशानी से मुक्ति दिला सकता है। उनकी कोशिश थी कि कैसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को खोजकर इस दिशा में अग्रणी बना जाए। सूर्य, जल, पवन से असीमित रूप से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल ही एकमात्र उपाय है जो वर्तमान और भविष्य का आधार बनकर उद्योगों का कायाकल्प कर सकता है।

इन सभी देशों की अधिकांश औद्योगिक प्रगति सौर ऊर्जा पर आधारित हो रही है। इसके विपरीत भारत जिस पर सूर्य और पवन देवता की महत्ती कृपा है, वह अभी सोचने तक ही सीमित है और मामूली प्रयत्न ही कर पा रहा है। हमारा ज्यादातर औद्योगिक विकास प्रदूषण फैलाने वाली कोयले के इस्तेमाल से निर्मित होने वाली ऊर्जा पर ही निर्भर है। हमारे उद्योग जल से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का भी सही प्रबंध नहीं कर पा रहे हैं।

हालांकि हमारे देश में 80 के दशक में वैकल्पिक ऊर्जा के साधन तैयार करने और उन्हें जन सामान्य तक सुलभ कराने के लिए अलग से विभाग और मंत्रालय बना दिए गए थे लेकिन उनके अब तक के किए गए कामों को देखा जाए तो निराशा ही हाथ लगती है। इसका एक कारण यह है कि सरकार कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से प्राप्त होने वाली बिजली के मोह से बाहर नहीं निकल पाई है। विडंबना यह है कि सोलर प्लांट लगाना और उससे प्राप्त बिजली की आपूर्ति करना इतना महंगा है कि चाहे उद्यमी हो या साधारण नागरिक, वह इसका इस्तेमाल करने में कोई रुचि नहीं दिखाता।

ग्रीन हाइड्रोजन : भारत की भौगोलिक स्थिति और मजबूत हो रही आर्थिक क्षमता इस बात का प्रतीक है कि हम ग्रीन हाइड्रोजन हब बन सकते हैं। सूर्य और पवन देवता की मेहरबानी इतनी है कि ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना कोई मुश्किल काम नहीं है बशर्ते कि सरकार इसके लिए समुचित संसाधन बहुत कम कीमत पर उपलब्ध कराए। हाइड्रोजन को सस्ता बनाना जरूरी है क्योंकि यह औद्योगिक ईंधन का कारगर विकल्प है।

इसी के साथ लोगों को इसके इस्तेमाल तथा उपयोगिता के बारे में अभियान चलाना होगा और इसकी तकनीक हासिल करना सुगम बनाना होगा। यह बहुत तकनीकी विषय है लेकिन इसे सामान्य भाषा में समझने की जरूरत है। नैशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इसी का एक कदम है। सामान्य व्यक्ति के लिए इतना जानना काफी है कि यह उन स्रोतों से प्राप्त किया जाता है जो अक्षय हैं जैसे कि सूर्य, जल और वायु। इसकी खास बात यह है कि इससे कार्बन नहीं बनता और इसलिए प्रदूषण नहीं फैलता।

दूसरे देशों से मंगवाए जाने वाले फॉसिल ईंधन यानी कोयले पर निर्भरता कम हो जाती है जिस पर अभी एक लाख करोड़ रुपया खर्च होता है। स्थानीय स्तर पर इसका निर्माण किए जाने से यह पैसा बचेगा और इसके साथ ही इसमें रोजगार की बहुत अधिक संभावनाएं हैं। दूसरे देशों को इसका निर्यात हो सकता है। इसी के साथ बिजली से चलने वाली गाडिय़ों का निर्माण और उनका चलना सुगम हो जाएगा। यदि देश को ईंधन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है तो यही एक विकल्प है।

अभी तक हम सौर ऊर्जा का ही पूरा लाभ नहीं उठा पाए हैं जबकि इसकी संभावनाएं इतनी हैं कि पूरे देश की बिजली की जरूरत पूरी की जा सकती है। कह सकते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन आधुनिक और विकसित भारत का निर्माण करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। ग्लोबल मार्कीट लीडर की भूमिका में भारत आ सकता है। सरकार को चाहिए कि इसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रचार और प्रसार की मजबूत व्यवस्था करे ताकि आम जनता समझ सके कि इसके क्या लाभ हैं और कैसे इससे तरक्की की जा सकती है। -पूरन चंद सरीन

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