हरियाणा में ‘रोजगार के दावे’ और हकीकत

punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2019 - 12:45 AM (IST)

पूरे देश में मंदी का आलम है। हर कोई सहमत है कि मंदी का पहला असर रोजगार पर पड़ेगा। अभी से कई कम्पनियां कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर चुकी हैं। ऐसे में बेरोजगारी देश का सबसे बड़ा सवाल बनती जा रही है। 

क्या यह सवाल आने वाले विधानसभा चुनाव में निर्णायक बनेगा? इस सवाल का जवाब देने के लिए हरियाणा में बेरोजगारी के मुद्दे पर गौर करना होगा। भाजपा के सहयोगियों के बयानों और सरकार के विज्ञापनों में बार-बार यह दावा किया जाता है कि उनकी हरियाणा सरकार ने रोजगार के मोर्चे पर कुछ अनूठा कर दिखाया है। दावा यह किया जाता है कि सरकार ने 69000 नौकरियां दी हैं, सक्षम योजना के तहत बेरोजगार युवकों को 100 घंटे का रोजगार दिया है और रोजगार देने में ‘पर्ची और खर्ची’ यानी सिफारिश और रिश्वत खत्म कर दी है। 

क्या ये दावे सही हैं? इनमें से एक बात सच है। ग्रुप डी की 18,000 नियुक्तियां करते समय भाजपा सरकार ने उस किस्म की धांधलेबाजी, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार नहीं किया जिसके लिए इनैलो और कांग्रेस सरकारें बदनाम थीं। जनता ने उन्हें उनके कुकर्मों की सजा दी। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला तो नौकरी घोटाले में जेल में सजा काट रहे हैं लेकिन क्या इस आधार पर भाजपा को रोजगार के मोर्चे पर सफल घोषित कर सकते हैं? 

भाजपा का चुनावी घोषणापत्र
इस प्रश्न का उत्तर देने की शुरूआत भाजपा के 2014 के विधानसभा चुनाव घोषणा पत्र से होनी चाहिए। भाजपा ने हरियाणा की जनता से रोजगार संबंधी दो बड़े वादे किए थे। पहला वादा सरकारी नौकरी के बारे में था: ‘सभी सरकारी और अर्ध सरकारी विभागों में नौकरियों का बैकलॉग भरा जाएगा।’ दूसरा वादा सरकारी नौकरी के बाहर रोजगार से जुड़ा था: ‘प्रदेश के रोजगार कार्यालयों की सूची में दर्ज बेरोजगार सभी युवक-युवतियों को नौकरी या काम के बदले मानदेय दिया जाएगा और इस तरह बेरोजगारों की सूची को रोजगार कार्यालयों से समाप्त कर दिया जाएगा।’ सवाल है कि भाजपा ने क्या इन दोनों बड़े वादों में कुछ भी पूरा किया है? पूरा करना छोडि़ए, क्या इन दोनों में हरियाणा सरकार ने बड़ी प्रगति भी की है? 

रिपोर्ट के आंकड़े 
सच यह है कि हरियाणा में बेरोजगारी की दर देशभर के बड़े राज्यों में सबसे अधिक है। सैंटर फार मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) द्वारा जनवरी 2019 से अप्रैल 2019 में बेरोजगारी की स्थिति पर जारी रिपोर्ट unempolymentinindia.cmie.com के अनुसार जहां पूरे देश में बेरोजगारी दर 6.9 प्रतिशत थी, वहीं हरियाणा में यह 20.5 प्रतिशत थी जो कि अन्य किसी भी बड़े राज्य से अधिक थी। हरियाणा से अधिक बेरोजगारी दर सिर्फ त्रिपुरा में थी। इसी संगठन की अगस्त 2019 के अंतिम सप्ताह की रिपोर्ट के अनुसार भी यही स्थिति बरकरार थी। 

भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर प्रकाशित होने वाली इस सबसे विश्वसनीय रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2019 में हरियाणा में कुल 19 लाख बेरोजगार थे, जिनमें से 16.14 लाख दसवीं पास थे और 3.88 लाख उच्च शिक्षा प्राप्त थे (ग्रैजुएट या ऊपर)। बेरोजगारी की बुरी अवस्था का परिचायक यह भी है कि 10वीं या 12वीं पास युवाओं में बेरोजगारी दर 29.4 प्रतिशत जैसे ऊंचे स्तर पर है। सबसे भयावह स्थिति 20 से 24 वर्ष के उन युवाओं की है जो पढ़ाई पूरी कर अब रोजगार ढूंढ रहे हैं। इस वर्ग में 17 लाख में से 11 लाख युवा बेरोजगार हैं और बेरोजगारी की दर रिकॉर्डतोड़ 64 प्रतिशत है। इतने भयावह आंकड़े पर दुनिया में कहीं भी मीडिया की सुर्खियां बनतीं, सड़क पर आंदोलन होते लेकिन हरियाणा में अजीब चुप्पी है। 

अगर सिर्फ सरकारी आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल भारत सरकार के राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भी हरियाणा में राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी बेरोजगारी थी। आंकड़ों को भूल भी जाएं तो हर गांव और मुहल्ले में बेरोजगार युवकों की फौज देखी जा सकती है। सरकारी नौकरी का बैकलॉग भरने के वादे की स्थिति यह है कि सरकार इन प्रश्नों का जवाब देने से बच रही है: सत्ता ग्रहण करते समय सरकारी विभागों और अर्ध सरकारी विभागों में नौकरियों का कितना बैकलॉग था? उनमें से कितनी नौकरियां अब तक भरी गईं और कितने पद आज भी रिक्त पड़े हैं? भाजपा शासनकाल में सरकार ने कितने स्थायी पदों को निरस्त किया और कितने नए सरकारी पदों का सृजन हुआ? कितनी नियमित नौकरियों को सरकारी और अर्ध सरकारी विभागों में आऊटसोर्स किया गया? 

रोजगार कार्यालय से बेरोजगारों की सूची समाप्त करने के वादे की हकीकत तो और भी कड़वी है। आर.टी.आई. से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के 15 जिलों में ही 15 लाख से अधिक बेरोजगार थे। रोजगार कार्यालय में पंजीकृत इन युवाओं में से मात्र 647 को रोजगार मिला। इस गंभीर स्थिति पर कार्रवाई या सुधार करने की बजाय भाजपा की सरकार ने सूचना देने वाले अधिकारियों पर ही कार्रवाई कर दी। बाद में 26 फरवरी 2019 को विधानसभा में दावा किया कि पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या केवल 6.18 लाख है। इनमें भी सरकार केवल 2461 युवाओं को ही काम दिलवा पाई थी। यानी कि आर.टी.आई. सूचना की मानें या विधानसभा के जवाब को, यह स्पष्ट है कि हरियाणा सरकार रोजगार कार्यालय में पंजीकृत 1 प्रतिशत युवाओं को भी रोजगार नहीं दे पाई। 

मुख्यमंत्री का हास्यास्पद दावा
अंतिम वादा बेरोजगारों को सौ घंटे काम और मानदेय देने का था। हरियाणा सरकार ने इस उद्देश्य से ‘सक्षम योजना’ बनाई। वादा था कि रोजगार कार्यालय में पंजीकृत जिस भी युवा को रोजगार नहीं मिल सकेगा उसे कम से कम इस योजना के तहत मानदेय दिया जाएगा। सरकारी दावे के अनुसार इस योजना के तहत 40 हजार से कम युवाओं को मानदेय मिला। इस दावे के बारे में कई सवाल उठे हैं। इस योजना में चुने गए युवा अपनी समस्याएं लेकर आंदोलन करने पर मजबूर हुए हैं। 

अगर सरकार के दावे को मान भी लिया जाए तो क्या सरकार ने अपना वादा पूरा कर दिया? कितने बेरोजगारों को नौकरी दिलवाई गई? मुख्यमंत्री ने विधानसभा में यह हास्यास्पद दावा किया कि ओला, उबर और प्राइवेट गार्ड की नौकरियों को भी इसमें जोड़ लिया जाए। उसे मान भी लें तो हरियाणा में 49 हजार नौकरियां दिलाई गईं लेकिन सरकारी आंकड़ों के हिसाब से रोजगार कार्यालय में कम से कम 6.18 लाख युवा पंजीकृत थे। तो बाकी 5,29,000 बेरोजगारों का क्या हुआ? उन्हें न तो सरकारी नौकरी मिली, न प्राइवेट, न ही सक्षम योजना के तहत मानदेय मिला। देखना यह है कि क्या यह सच्चाई हरियाणा के चुनावी कुरुक्षेत्र में निर्णायक हो पाएगी या फिर बेरोजगारी का सच प्रचार तंत्र के बोझ में दब जाएगा?-योगेन्द्र यादव
 


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