राजनीतिक घटनाक्रमों से रोचक बने पाकिस्तान के चुनाव

Friday, Jul 06, 2018 - 02:25 AM (IST)

आगामी 25 जुलाई को पाकिस्तान में आम चुनाव होना है। 10.5 करोड़ मतदाता (जिसमें 4.6 करोड़ युवा हैं) तय करेंगे कि सत्ता किसे मिले। यदि यह चुनाव सम्पन्न होता है और नई सरकार बनती है तो यह पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी बार होगा, जब देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सत्ता का हस्तांतरण होगा, किंतु उससे पहले वहां के राजनीतिक घटनाक्रमों और खुलासों ने इस चुनाव को रोचक बना दिया है। 

पाकिस्तान में मुख्य रूप से त्रिकोणीय मुकाबला होना है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पी.एम.एल.-एन) का शीर्ष नेतृत्व हाल ही में बदला है, किंतु दोनों परिवारवाद की जकड़ में अब भी हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ  (पी.टी.आई.) के नेता इमरान खान अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान, सेना-इस्लामी कट्टरपंथियों से निकटता, कश्मीर और अपने भारत विरोधी तेवरों के कारण पाकिस्तान के 2 प्रमुख राजनीतिक दलों को चुनौती दे रहे हैं। किंतु इमरान पर हो रहे खुलासों ने पी.टी.आई. को असहज कर दिया है। 

पूर्व क्रिकेटर और 1992 क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम के कप्तान रहे इमरान खान ने कभी सोचा नहीं होगा कि अपनी 22 वर्षों की राजनीति में जब वह स्वर्णिम दौर में प्रवेश कर रहे होंगे, तब उनका निजी जीवन इसके आड़े आ जाएगा। इमरान ने 3 शादियां (1995 में यहूदी मूल की ब्रितानी पत्रकार जेमिमा गोल्डस्मिथ से, 2015 में पत्रकार रेहम खान से और तीसरी इसी वर्ष 5 बच्चों की मां व 45 वर्षीय ‘पिंकी पीर’ बुशरा मानिका से) की हैं। पहले 2 निकाह क्रमश: 9 वर्ष और केवल 10 माह तक चले तो तीसरी शादी भी तलाक की चौखट पर है। 

इमरान की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में अड़चन का मुख्य कारण उनकी दूसरी पत्नी रहीं रेहम खान की ‘‘टैल ऑल’’ नामक वह अप्रकाशित पुस्तक है, जिसके कुछ अंश गत दिनों इंटरनैट पर लीक हो गए। जो दावे उस पुस्तक में रेहम ने किए हैं, उनका प्रभाव पी.टी.आई. के चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता है। रेहम ने आरोप लगाया है कि निकाह से पहले इमरान खान ने उनका यौन उत्पीडऩ किया था। रेहम बताती हैं, ‘‘इमरान खान ने शादी से पहले मुझे अपने घर आने का न्यौता दिया था। उनके साथ मेरी यह दूसरी मुलाकात थी, इसलिए मैं इस बात को लेकर चिंतित थी कि उन्होंने मुझे अपने घर क्यों बुलाया है? मैंने सावधानी बरतते हुए अपनी एक सहेली को बानी गाला (इस्लामाबाद का वह क्षेत्र, जहां इमरान का घर स्थित है) के बाहर रुके रहने को कहा। मैंने उससे कहा था कि कुछ भी अप्रिय घटना होने पर मैं उसे फोन करूंगी और फिर वहां से चले जाएंगे।’’ 

आगे रेहम लिखती हैं, ‘‘बानी गाला पहुंचने पर इमरान ने मुझे साथ में टहलने को कहा। तब उन्होंने मेरी ऊंची हील वाली सैंडल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह इसे पहन कर कैसे चल पाती हैं? इस पर मैंने उन्हें उतार कर अपने बैग में रख लिया और दूसरी जूतियां पहन लीं। इमरान कुछ समय तक राजनीति और बच्चों के बारे में बात करते रहे, फिर मेरी तारीफ  करने लगे। जब हम दोनों ने खाना खाया, तब उन्होंने मेरा यौन उत्पीडऩ करने का प्रयास किया।’’ रेहम ने लिखा, ‘‘मैं डर गई थी और सोच रही थी कि मैं यहां क्यों आई। मैंने इमरान को खुद से दूर करने के लिए धक्का दे दिया।’’ इस पर इमरान ने कहा, ‘‘मैं मानता हूं कि तुम वैसी लड़की नहीं हो, इसलिए मैं तुमसे निकाह करना चाहता हूं।’’ इस पर मैंने कहा कि आप पागल हो गए हैं, मैं आपको जानती भी नहीं और आप मुझसे निकाह करने की बात कर रहे हैं।’’ 

रेहम ने अपनी आने वाली किताब में इमरान खान को समलैंगिक भी बताया है और लिखा है कि उन्होंने अपनी पार्टी के कई नेताओं और पाकिस्तानी फिल्म अभिनेता हमजा अली अब्बासी से संबंध बनाए हैं। इसके अतिरिक्त, रेहम ने पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज वसीम अकरम के बारे में भी अपनी पुस्तक में कुछ बेहद चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इस किताब में रेहम ने वसीम के बारे में लिखा है कि उनकी यौन-वासना कुछ ऐसी है, जिसमें वह अपनी मृत पत्नी के साथ संबंध बनाने के लिए एक काले व्यक्ति की व्यवस्था कर दोनों को संभोग करते हुए देखते थे। अब इन खुलासों से जिन-जिन पर व्यक्तिगत गाज गिरी है, उन्होंने रेहम को कानूनी नोटिस थमा दिया है, तो अपनी जान को खतरा बताकर रेहम पाकिस्तान छोड़ चुकी हैं। 

ऐसा पहली बार नहीं है कि जब इमरान विवादों में फंसे हों। गत वर्ष एक अगस्त को उनकी पार्टी की नेता आयशा गुलाली इमरान पर उत्पीडऩ करने और फोन पर अश्लील संदेश भेजने का आरोप लगा चुकी है। यही नहीं, वर्ष 2016 में एक टी.वी. इंटरव्यू में उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी मानने से मना कर दिया था। पी.एम.एल.-एन की स्थिति भी ठीक नहीं है। दल के सर्वोच्च नेता और भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी नवाज शरीफ  ‘‘इस्लामी निषेधाज्ञा’’ का उल्लंघन करने के कारण गत वर्ष अयोग्य घोषित हो चुके हैं, तो अब उनके दानियाल अजीज के चुनाव लडऩे पर अदालत ने प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं नवाज के भतीजे हमजा शरीफ  को चुनाव लड़ाने पर पार्टी के वरिष्ठ नेता जईम कादरी बगावत पर उतर आए हैं। 

26/11 मुंबई हमले में पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकारना, विदेश नीति में नागरिक सरकार का प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश और अल्पसंख्यकों, विशेषकर ङ्क्षहदुओं-सिखों की स्थिति सुधारने के कारण नवाज और उनका दल, सेना-इस्लामी कट्टरपंथी गठजोड़ की आंख का कांटा बन चुके हैं। एक रोचक तथ्य है कि गत वर्ष अदालत द्वारा ही गठित जिस 6 सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर नवाज को अयोग्य घोषित किया गया था, उसमें एक आई.एस.आई. और एक सैन्य अधिकारी को शामिल किया गया था। 

वहीं पाकिस्तान की राष्ट्रीय राजनीति में अप्रासंगिक होते जा रहे पी.पी.पी. की अगुवाई भुट्टो परिवार के उत्तराधिकारी 29 वर्षीय बिलावल भुट्टो कर रहे हैं। अब चुनाव में उनके पिता और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी लाभ पहुंचाएंगे या फिर नुक्सान, इस पर बकौल मीडिया रिपोर्टस, कुछ विश्लेषकों और दल के कुछ नेताओं का मानना है कि भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों और जरदारी की दागदार छवि से पार्टी को चुनावों में नुक्सान हो सकता है, क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी और विपक्ष के नेता इमरान खान भ्रष्टाचार को बड़ा चुनावी मुद्दा बना चुके हैं। पी.एम.एल.-एन को सत्ता से दूर रखने के लिए चुनाव के बाद इमरान-बिलावल के बीच समझौता होने की चर्चा है। 

पाकिस्तानी चुनाव आयोग से कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को स्वीकृति नहीं मिलने के बाद वह दूसरी जुगत में है। उसने 200 से अधिक अपने  प्रत्याशियों को एक अन्य पंजीकृत दल अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक के बैनर तले उतारने का फैसला किया है। कोई हैरानी नहीं, हाफिज के अधिकतर उम्मीदवार अच्छा प्रदर्शन करें क्योंकि जहां भारत सहित शेष विश्व अजहर मसूद और हाफिज सईद जैसे खूंखार आतंकियों को मानवता के लिए खतरा मानता है, वहीं पाकिस्तान के अधिकांश लोग उन्हें ‘‘खलीफा’’ या फिर अपना ‘‘नायक’’ मानते हैं। इनके लिए सच्चा मुसलमान वही है, जो गैर-मुस्लिम (काफिर)को मौत के घाट उतारे, उनका मजहब बदले और उनके पूजास्थलों को नष्ट करे। 

इस इस्लामी राष्ट्र का चिंतन दो स्तम्भों पर टिका है- पहला इस्लाम, तो दूसरा भारत के प्रति घृणा। इसलिए वहां जनता द्वारा निर्वाचित सरकार की भूमिका सीमित है। भले ही वहां लोकतंत्र का ढोल पीटा जाता हो, किंतु जिस विषाक्त मानसिकता ने पाकिस्तान को जन्म दिया, उसने कभी वहां लोकतंत्र की जड़ों को बढऩे नहीं दिया। इस देश में 36 वर्षों तक सैन्य तानाशाही रही है, जिसमें जिया-उल-हक ने औपचारिक रूप से सत्ता-अधिष्ठानों का इस्लामीकरण (शरीयत आधारित) कर दिया। 

पाकिस्तान में चुनाव के नतीजे क्या होंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा किंतु इस अशांत देश में कुछ बातें अपरिवर्तित रहेंगी। पहली- देश पर सेना का नियंत्रण बना रहेगा। दूसरी- सत्ता के केन्द्र में इस्लामी कट्टरपंथ का दबदबा होगा। तीसरी- पाकिस्तान ‘‘हजारों घाव देकर भारत को मौत के घाट उतारना’’ के अंतर्गत प्रपंचों का जाल बुनता रहेगा। चौथी- अमरीका से तिरस्कृत पाकिस्तान चीन पर आश्रित रहेगा और पांचवीं- वहां की जनता गरीबी और कठमुल्लों के चंगुल से बाहर नहीं निकल पाएगी।-बलबीर पुंज

Pardeep

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